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यह कैसा सन्यास!

राजस्थान की राजधानी जयपुर में जैन समुदाय के साधु-साध्वियों, संतों-सतियों के चातुर्मास प्रवेश के साथ ही चातुर्मास कार्यक्रमों की शुरूआत हो चुकी है। कुछ का चातुर्मास मंगल प्रवेश हो चुका है और कुछ साधु-साध्वियों, संतों-सतियों के चातुर्मास प्रवेश आगामी 22 जुलाई तक हो जायेंगे।

जैन समुदाय में चातुर्मास का समय हर एक श्रावक-श्राविका के लिये आत्म मंथन का होता है श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय मुनि मणिप्रभ सागर के शब्दों में चातुर्मास आता है अराधना का तीव्र प्रभाव लेकर! उनका संदेश है कि चातुर्मास में कषायों का कूडा-करकट बहा देना है और निर्मल हो जाना है।

दूसरा महत्वपूर्ण संदेश है, खरतगच्छ के ही मुनि मनितप्रभ सागर का। वे एक जगह लिखते हैं कि केवल प्रवचन देने वाला ही समाज का प्रहरी नहीं है। अपितु पर्वत के शिखर पर साधनारत मौनी साधु भी आर्य एवं अहिंसक संस्कृति की अपने सदाचरण से सुरक्षा कर रहा है। वे आगे लिखते हैं कि प्रवचन बाद में प्रभाव दिखाता है, प्रवर्तन पहिले ही प्रभाव छोड़ जाता है।

जैन समुदाय के एक घटक खरतरगच्छ संघ के इन सन्यासियों ने चंद शब्दों में ही चातुर्मास और पर्युषण पर्व एवं दसलक्षण पर्व के महत्व को प्रतिपादित कर दिया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि पर्युषण पर्व एवं दसलक्षण पर्व व्यक्ति को अपनी आत्मशुद्धि के लिये प्रेरित करते हैं। सिर्फ प्रेरित ही नहीं करते, बल्कि ये पर्व व्यक्ति को निर्देशित भी करते हैं कि वे अपने दुष्कर्मों को त्याग कर सद्कर्मों की राह पर चलें!

लेकिन चांदी की चमक, प्रचार का लालच जैन समुदाय के कुछ साधु-सन्यासियों में इस कदर ठूंस-ठूंस कर भर गया है कि उसके आगे वे चातुर्मास, पर्युषण पर्व और दसलक्षण पर्व के महत्व को भी दरकिनार करने से नहीं चूक रहे हैं। हम मुनि मनितप्रभ सागर के इस सोच से सहमत हैं कि जैन साधु का प्रमुख लक्ष्यआत्मकल्याण है और परकलयण गौण लक्ष्य है। व्यक्ति जब गृहस्थी को त्याग कर सन्यास लेता है तो उसका प्रमुख लक्ष्य आत्मकल्याण होता है। सन्यास लेने के बाद जो अनुभव वह सन्यासी के रूप में प्राप्त करता है उसे वह समाज के साथ बांटता है और परकल्याण में भी उसका उपयोग करता है।

लेकिन हमारे सामने एक अन्य उदाहरण खरतरगच्छ संघ के ही महोपाध्याय ललितप्रभ सागर एवं चंद्रप्रभ सागर ने प्रस्तुत करने की शायद कोशिश की है! महोपाध्या ललितप्रभ सागर और चंद्रप्रभ सागर के जयपुर चातुर्मास के दौरान चातुर्मास आवास वैधानिक रूप से विचक्षण भवन-शिवजीराम भवन (श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ का मुख्यालय) होना चाहिये! जहाज मंदिर कार्यालय से जारी की गई खरतरगच्छ संघ साधु-साध्वी चातुर्मास-2013 सूची में साफ-साफ लिखा है कि ललितप्रभ सागर एवं चंद्रप्रभ सागर का चातुर्मास आवास स्थल विचक्षण भवन होगा। यह सूची खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिन कैलाश सूरीश्वर के आदेशानुसार जारी की गई है।

लेकिन सूत्र बताते हैं कि महोपाध्याय ललितप्रभ सागर एवं चंद्रप्रभ सागर ने विचक्षण भवन में चातुर्मास करने से पिछले दिनों जोधपुर प्रवास के दौरान ही मना कर दिया बताया जाता है। उनके इस निर्णय को जयपुर खरतरगच्छ संघ के निजी स्वार्थों में लिप्त पदाधिकारियों ने आम श्रावक-श्राविकाओं से छुपाया और अब उनके चातुर्मास आवास स्थल को बदला जा रहा है आखरी क्यों?

अगर विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों को सही माना जाये तो महोपाध्याय ललितप्रभ सागर एवं मुनि चंद्रप्रभ सागर का चातुर्मास आवास जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर सोनी हॉस्पिटल के पास संतोषचंद्र झाडचूर के बंगले में रखा गया बताया जाता है। इस बंगले के नीचे ही सुमेर सिंह बोथरा के नायाब ज्वेल्स का शो रूम भी है। महोपाध्याय ललितप्रभ सागर और चंद्रप्रभ सागर केवल पर्युषण पर्व हेतु 02 सितम्बर से 09 सितम्बर तक ही विचक्षण भवन में प्रवास करेंगे! श्री जैन श्वेताम्बर दादाबाडी मोतीडूंगरी रोड़ पर भी पर्युषण पर्व क्रियाऐं इन दोनों में से कोई एक अथवा उनके साथ जयपुर आये तीसरे मुनि करवा सकते हैं!

अब सवाल यह भी उठता है कि 28 जुलाई से 01 सितम्बर तक महोपाध्याय ललितप्रभ सागर और चंद्रप्रभ सागर आखीर करेंगें क्या? जैसा कि अग्रगामी संदेश ने अपने गत 8 जुलाई के अंक में मुनि तरूण सागर के कार्यक्रम को साया किया था, उस कार्यक्रम को सही माना जाये तो एसएमएस इन्वेस्टमेंट ग्राउण्ड पर 28 जुलाई से 01 सितम्बर के बीच 15 दिन तो अकेले मुनि तरूण सागर के ही प्रवचन होंगे। प्रवचन मंच पर भी एक ही प्रवचनकर्ता के लिये स्थान निर्धारित किया गया है। ऐसी स्थिति में जब मुनि तरूण सागर मंच से प्रवचन कर रहे होंगे तब महोपाध्याय ललितप्रभ सागर मंच पर कहीं विराजेंगे और उनकी मंच पर क्या भूमिका होगी! एक तरफ जहां श्री जैन श्वेतामबर खरतरगच्छ संघ के धार्मिक स्थल पर कोई भी साधु-साध्वी चातुर्मास आवास नहीं कर पायेंगे वहीं संघ के धार्मिक स्थल पर स्थान उपलब्ध होने के बावजूद महोपाध्याय ललितप्रभ सागर एवं मुनि चंद्रप्रभ सागर द्वारा उसे चातुर्मास स्थल के रूप में स्वीकार न कर किसी सेठिये के बंगले को अपना चातुर्मास आवास बनाना अत्यन्त आपत्तिजनक है। शर्मनाक स्थिति यह रही कि जब हमने उपाध्याय मणिप्रभ सागर के कार्यकर्ता मुकेश जी से मोबाइल नम्बर 09825105823 पर बात की तो उन्होंने बताया कि जयपुर चातुर्मास से सम्बन्धित जानकारी जयपुर मे ही मिलेगी। लेकिन जब उनसे ललितप्रभ सागर और चंद्रप्रभ सागर के द्वारा किसी सेठिये के बंगले पर प्रवास करने की बात बता कर उनसे सवाल किया तो वे अचकचा गये और मोबाइल बंद कर दिया। उधर जहाज मंदिर तीर्थ से जुडे सूत्रों ने बताया कि मुनि ललितप्रभ सागर और मुनि चंद्रप्रभ सागर के कार्यक्रमों का नियन्त्रण उनके सांसारिक रिश्ते में भाई दफ्तरी जी करते हैं।

अब यहां सवाल यह उठता है कि व्यक्ति सन्यास क्यों लेता है? और यह कैसा सन्यास है? हम इस सम्बन्ध में विस्तार से आगे लिखेंगे! क्रमश:

 
AGRAGAMI SANDESH

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