उत्तराखण्ड विधानसभा के अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल ने दावा किया है कि केदारनाथ धाम सहित जंगल चट्टी, रामबाड़ा, गौरी कुण्ड सहित अन्य क्षेत्रों में मृतकों की संख्या दस हजार से ज्यादा हो सकती है। अग्रगामी संदेश ने अपने गत 24 जून के अंक में मृतकों की संख्या 15 हजार से ज्यादा बताई थी। यह संख्या ज्यादा भी हो सकती है, क्योंकि बचाव टीमें आज तक क्षेत्र के अंदरूनी इलाकों में नहीं पहुंच पाई है। राज्य सरकार और उसके स्थानीय प्रशासन का अपने क्षेत्रों से कोई सीधा सम्पर्क नहीं है। सारा प्रशासन ठप्प है। उधर केंद्र और राज्य सरकार सिर्फ धार्मिक श्रद्धालुओं को ही त्रासदी क्षेत्र से निकालने में अपना ध्यान लगाये हुए है। राज्य और केंद्र सरकार ने लगता है कि स्थानीय लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया है। नतीजन स्थानीय निवासियों के बारे में हकीकत आज तक किसी को पता नहीं है कि कितने जिंदा हैं और कितनों की मौत हो गई! जब भी राहतकर्मी और नुकसान का आंकलन करने के लिये राज्यकर्मी केदारनाथ घाटी के अंदरूनी इलाकों में जायेंगे तब वहां की भयावह स्थिति से उनका सामना होगा।
लेकिन शर्मनाक स्थिति यह है कि देश का एक प्रदेश भयावह प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है, हजारों मौत की नींद सो चुके हैं, हजारों लापता हैं और हमारे प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस त्रासदी को नजरन्दाज कर पहुंच गये काश्मीर की वादियों में एक टनल का उद्घाटन करने! क्या उनका यह फैसला शर्मनाक नहीं है?
लेकिन एक बात साफ है कि कुछ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों से, जिसमें डॉलर-रूपये का रिश्ता भी शामिल है, ध्यान बटांने के लिये जानबूझ कर राज्य और केंद्र सरकारें इस भयानक त्रासदी से निपटने में कोताही बरत रही है, जोकि निन्दनीय है!
लेकिन शर्मनाक स्थिति यह है कि देश का एक प्रदेश भयावह प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है, हजारों मौत की नींद सो चुके हैं, हजारों लापता हैं और हमारे प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस त्रासदी को नजरन्दाज कर पहुंच गये काश्मीर की वादियों में एक टनल का उद्घाटन करने! क्या उनका यह फैसला शर्मनाक नहीं है?
लेकिन एक बात साफ है कि कुछ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों से, जिसमें डॉलर-रूपये का रिश्ता भी शामिल है, ध्यान बटांने के लिये जानबूझ कर राज्य और केंद्र सरकारें इस भयानक त्रासदी से निपटने में कोताही बरत रही है, जोकि निन्दनीय है!