धर्म की आड़ में आस्था का दोहन कर श्रद्धालुओं को ब्लैकमेल करने की नौटंकी पर हम विस्तार से आगे चर्चा करेंगे! लेकिन जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त करने में रोडा अटकाने वाले बिल्डर माफिया, भूमाफिया, टैक्स चोर, विदेशी बैंकों में कालाधन जमा करने वाले पूंजीतियों, सरमायेदारों ने भी अपने निजी आर्थिक फायदों के लिये भ्रष्ट, निकम्मे, नाकारा राजनेताओं की किनारी पकड़ कर स्वार्थों की वैतरणी पार करने के लिये कमर कस कर पूरी तैयारी कर ली है। यही नहीं भ्रष्ट पूंजीपतियों और राजनेताओं के गठजोड़ के जरिये इनके छुटभैय्या दुमछल्लों ने भी राज्य के आने वाले विधानसभा चुनावों के लिये खम ठोकना शुरू कर दिया है। कोई लोकसभा चुनाव में अपनी मूंडकी दिखाना चाहता है तो कोई विधानसभा चुनावों में अपने जलवे दिखाने की तैयारी में है।
जिसने गृहस्थ त्याग कर सन्यास ले लिया है और दिशाऐं जिनका वस्त्र है, ऐसे सन्यासी भी चातुर्मास की आड़ में अपने चमचों-दुमछल्लों के जरिये करोड़ों के पैकेज पर धर्म को कुर्बान करने में लगे हैं। धर्म की आड़ में आस्था का दोहन कर चातुर्मास के नाम पर करोड़ों के पैकेज पर काम करने वालों का सच तो अब उजागर होना ही है, लेकिन सन्यास लेकर माया के पीछे दौडऩे वालों से हमारा सीधा-सीधा सवाल है कि क्या वे जिन संस्कृति (जैन संस्कृति) का इतिहास जानते हैं? जो कुछ हमारे सन्यासी कर रहे हैं वह जैन संस्कृति के स्थापित पांच नियमों सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य के अनुकूल है! यदि नहीं तो फिर सन्यास लेने का औचित्य ही क्या है?
जो लोग, चाहे वे सन्यासी हों अथवा गृहस्थ सामाजिक प्राणी, अगर वह अपने समाज के मध्यम वर्ग, निम्र मध्यम वर्ग, गरीब तकबों के शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक उत्थान की बात को नकार कर प्रचार के जरिये अपने पाखण्ड के भ्रमजाल को फैला कर अपने स्वार्थ की सिद्धि करता है तो उसे जैन समुदाय के किसी भी सम्मानित पद पर रहने का कोई औचित्य ही नहीं है!
श्वेताम्बर-दिगम्बर जैन एकता का पाखण्ड कर नोट बटोरने वालों से आग्रह है कि जैन समुदाय के शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक उन्नयन के लिये जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये, समाज के उत्थान के लिये अपनी ऊर्जा लगायें। चंद पत्थरों को तराशने और उसके जरिये अपने आपको भौतिक रूप से स्थापित करने की मोहमाया में उलझ कर करोड़ों के पैकेज की नौटंकी को बन्द करने में ही, ऐसे मायाजाल में उलझे लोगों की भलाई है!
जिसने गृहस्थ त्याग कर सन्यास ले लिया है और दिशाऐं जिनका वस्त्र है, ऐसे सन्यासी भी चातुर्मास की आड़ में अपने चमचों-दुमछल्लों के जरिये करोड़ों के पैकेज पर धर्म को कुर्बान करने में लगे हैं। धर्म की आड़ में आस्था का दोहन कर चातुर्मास के नाम पर करोड़ों के पैकेज पर काम करने वालों का सच तो अब उजागर होना ही है, लेकिन सन्यास लेकर माया के पीछे दौडऩे वालों से हमारा सीधा-सीधा सवाल है कि क्या वे जिन संस्कृति (जैन संस्कृति) का इतिहास जानते हैं? जो कुछ हमारे सन्यासी कर रहे हैं वह जैन संस्कृति के स्थापित पांच नियमों सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य के अनुकूल है! यदि नहीं तो फिर सन्यास लेने का औचित्य ही क्या है?
जो लोग, चाहे वे सन्यासी हों अथवा गृहस्थ सामाजिक प्राणी, अगर वह अपने समाज के मध्यम वर्ग, निम्र मध्यम वर्ग, गरीब तकबों के शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक उत्थान की बात को नकार कर प्रचार के जरिये अपने पाखण्ड के भ्रमजाल को फैला कर अपने स्वार्थ की सिद्धि करता है तो उसे जैन समुदाय के किसी भी सम्मानित पद पर रहने का कोई औचित्य ही नहीं है!
श्वेताम्बर-दिगम्बर जैन एकता का पाखण्ड कर नोट बटोरने वालों से आग्रह है कि जैन समुदाय के शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक उन्नयन के लिये जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये, समाज के उत्थान के लिये अपनी ऊर्जा लगायें। चंद पत्थरों को तराशने और उसके जरिये अपने आपको भौतिक रूप से स्थापित करने की मोहमाया में उलझ कर करोड़ों के पैकेज की नौटंकी को बन्द करने में ही, ऐसे मायाजाल में उलझे लोगों की भलाई है!