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साध्वी प्रगुणाश्री प्रकरण के दोषी स्वंय प्रायश्चित करें!

पिछली बार हमने साध्वी प्रगुणाश्री के ट्रक ट्रोला एक्सीडेंट से जुड़े कुछ सवालों पर प्रश्रचिन्ह अंकित किये थे। साध्वीश्री के अंतिम संस्कार से जुड़े कुछ मार्मिक पहलुओं को भी हमने उजागर किया था। साध्वी प्रगुणाश्री के दाहसंस्कार की स्पष्ट तौर पर जुम्मेदारी श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की थी, इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता है। इस जुम्मेदारी को वहन करने में किसी साध्वी की आड़ लेकर आनाकानी करना भी अत्यन्त शर्म की बात है। जिन संस्कृति में उत्पन्न प्रत्येक प्राणी को अपने जीवन में सोलह संस्कारों की रेखाओं को पार करना होता है। प्रथम जन्म संस्कार से लेकर अंतिम (सोलहवें) संस्कार तक सोलह संस्कार पूरी तरह सामाजिक क्रियाऐं होती है और उन्हें पूरी करवाना समाज का दायीत्व होता है। लेकिन जैन समुदाय में पंजीकृत सोसायटियों का बोलबाला होने के बाद सामाजिक व्यवस्थाओं का तानाबाना टूटता ही चला गया और आज हमें साध्वी प्रगुणाश्री हादसे से दो-चार होना पड़ा! आखीर जयपुर के खरतरगच्छ संघ के पदाधिकारियों ने क्यों किसी साध्वी की आड़ लेकर साध्वी प्रगुणाश्री के दाहसंस्कार की जुम्मेदारी लेने से आनाकानी की? जयपुर के खरतरगच्छ संघ के पदाधिकारी घटना स्थल पर क्यों नहीं पहुंचे? विधिवत दाहसंस्कार की व्यवस्था क्यों नहीं की गई! ये वे मुद्दे हैं जिन पर समाज में बैठ कर गम्भीर चर्चा होनी चाहिये। हमें यह भी समझ लेना चाहिये कि समाज समाज होता है और उसे पंजीकृत सोसायटी की तरह नहीं चलाया जा सकता है। सामाजिक सरोकारों के लिये यतिवरों की एक संस्था होती है। सामाजिक कर्मकाण्डों के सारे कृत्य जैसे मंदिरों की प्रतिष्ठाा, सन्यासियों के अंतिम संस्कार सहित अन्य धार्मिक कर्मकाण्डों के निर्वहन की सारी जुम्मेदारियां यतिकुल की होती है। यतिकुल वह संस्था है जो व्यक्ति-परिवार को सामाजिक सरोकारों से जोड़ कर रखता है। लेकिन हमारे यतिकुल संस्था का सत्यानाश कर दिया गया है। जयपुर में आचार्य धरर्णेन्द्रसूरि एवं कोतवाल मोतीचंद जी के देवलोकगमन के दसियों साल बीत जाने के बाद भी पूरा खरतरगच्छ संघ एक यति को स्थापित नहीं कर पाया। बल्कि उपआश्रय की प्रथम मंजिल पर कॉमर्शियल गतिविधियां शुरू करवा दी गई! इससे निहायत शर्मनाक बात ओर क्या हो सकती है, क्या जवाब है, सामाजिक संगठनों पर सांप की तरह कुंडली जमाये बैठे मठाधीशों के पास?

अब हम आपको एक और शर्मनाक घटना से अवगत कराना चाहेंगे और उससे भी शर्मनाक शिवजीराम भवन के मैनेजर वी.आर.भंडारी की टिप्पणी से भी अवगत करवायें! कोटा और जैसलमेर से तीन वाहनों में साध्वी प्रगुणाश्री के सांसारिक पक्ष के परिजन आये थे। दाहसंस्कार क्रिया खत्म होने के बाद वे आटो कर शमशान से शिवजीराम भवन पहुंचे और वहां स्नान से निवृत होकर तैयार हुए तो शिवजीराम भवन में उपस्थित कर्मचारियों ने बताया कि उनके खाने की व्यवस्था यात्री निवास जे.के.लोन अस्पताल के पास है। महाराज श्री के सांसारिक परिजन खरतरगच्छ संघ के कर्मचारी को लेकर यात्री निवास पहुंचे तो वहां उन्हें भोजन देने से इन्कार कर दिया गया और कहा गया कि जिनके लिये कहा गया था वे खाना खाकर जा चुके हैं और आपके लिये व्यवस्था नहीं हो सकती है। नतीजन उन्हें बाजार में जाकर खाना खाना पड़ा! इस एपीसोड का एक शर्मनाक पहलू यह भी है कि इस यात्री निवास की व्यवस्था का जुम्मा श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के उपाध्यक्ष राजेन्द्र कुमार छाजेड़ के पास है।

इन निकम्मे उपाध्यक्ष की यह जुम्मेदारी बनती थी कि दु:ख की इस बेला में आये शोक सम्तप्त परिवारों को सहयोग करते और उनको भोजन आदि उपलब्ध करवाते। लेकिन इन बेशर्म उपाध्यक्ष राजेन्द्र कुमार छाजेड को अपने पेट भरने से फुरसत मिले तो आगे सोचे!  मेरा इनसे एक सवाल है कि अगर ऐसा ही हादसा उनके या उनके किसी परिजन के साथ हो जाता तो क्या उनका परिवार जौहरी बाजार के किसी होटल में बैठ कर खाना खाता! समाज में मठाधीश बने बैठे इन महाशय को अपनी जिंदगी के अंतिम चरण में शायद इस तरह के कृत्य पर थोडी सी शर्म तो आयेगी? वैसे इन्हें समझ लेना चाहिये कि प्रकृति किसी को भी क्षमा नहीं करती है। वह अपने दण्ड विधान पर अटल रहती है।

एक ओर शर्मनाक हकीकत से हम अवगत कराना चाहेंगे। जब खरतरगच्छ संघ के दफ्तर में बैठे व्यवस्थापक (मैनेजर) वी.आर.भण्डारी ने हमें बताया कि दिल्ली से आये 27 लोगों ने खाना खाया था। कई तो बिना स्नान किये ही खाना खा कर चले गये। जब हमने उनके कथन पर आपत्ति जताई तो जिद गये। अब हम इन मैनेजर वी.आर.भंडारी से ही सवाल करते हैं कि उनके परिवार में मौत हो जाती है तो दाहसंस्कार करने के बाद उनके परिजन स्नानादि कर शुद्ध होने के बाद खाना खाते हैं या फिर बिना स्नान किये सीधे शमशान से आकर भोजन कर लेते हैं! जवाब अहंकारी वी.आर.भंडारी को देना है। लेकिन उनसे यही कहा जा सकता है कि खरतरगच्छ संघ सामाजिक धार्मिक आस्था का केंद्र है और इसे व्यापारिक या निजी लाभ कमाने का स्थान न बनाया जाये तो ठीक रहेगा।

उम्मीद है, दोषी अपने कृत्यों के लिये स्वयं प्रायश्चित करेंगे! उसी में उनकी भलाई है।

 
AGRAGAMI SANDESH

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AGEAGAMI SANDESH

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