पिछले अंकों में हमने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की थी। हमने जैन समुदाय के दिगम्बर और श्वेताम्बर धडों को एक सूत्र में पिरोने की चलाई जा रही नौटंकी नुमा मुहिम की भी जानकारी साया की थी। इम इस पर आगे चर्चा करेंगे।
महावीर के परिनिर्माण के 500 साल बाद तक जैन समुदाय एक सूत्र में विरोध हुआ था। न कोई श्वेताम्बर था और न ही कोई दिगम्बर! लेकिन महावीर के परिनिर्वाण के 500 साल बाद दो गुरू भाइयों भद्रबाहू और स्थूलभद्र में वर्चस्व की लडाई को लेकर जैन समुदाय दो भागों में विभक्त हो गया। दिगम्बर और श्वेताम्बर धडों में विभक्त इस जैन समुदाय के विभाजन के पीछे कोई ठोस तर्क नहीं था। नतीजन भद्रबाहू के धडे ने अपने आपको दिगम्बर और स्थूलभद्र धडे ने अपने आप को श्वेताम्बर घोषित कर दिया। इस सम्बन्ध में इतिहास में काफी सामग्री उपलब्ध है। तब से अब तक जैन समुदाय में दिगम्बर और श्वेताम्बर धडे आज तक एक नहीं हो पाये हैं। यह बात दीगर है कि दोनों धडों के साधु-सन्यासियों के कई प्रवचनों से दोनों ही धडों में कटुता जरूर बढ़ जाती है।
जयपुर में जैन समुदाय के दोनों धडों के साधुओं ने आगामी चातुर्मास एक साथ करने की सहमति दी है। हम समग्र जैन समाज की एकता के हिमायती हैं और अगर दोनों धडों में एकता होती है तो हम उस का तहेदिल से स्वागत करते हैं। लेकिन जो हकीकत छन-छन कर सामने आ रही है, उससे साफ होता जा रहा है कि जैन एकता की आड़ में कोई राजनैतिक शतरंजी चाल चली जा रही है और यह शतरंजी चाल जैन समुदाय की एकता की आड में क्या पूंजीपतियों उनके पिछलग्गू सरमायेदारों, टैक्स चोरों, बिल्डरों, भू-माफियाओं और कालेधन के कुबेरों को फायदा पहुंचाने के लिये तो नहीं चली जा रही? यह चिंतन का मुद्दा है!
हमें असलियत से रूबरू होने के लिये शताब्दियों या वर्षों पीछे जाने की जरूरत नहीं है। गत 23 अप्रेल, 2013 से ही शुरू करें। गत 23 अप्रेल, 2013 को महावीर जयन्ती के जो कार्यक्रम हुए उसमें दिगम्बर और श्वेताम्बर समुदाय की एकता का नजारा सभी ने देखा होगा। दोनों धडों में छत्तीस का आंकड़ा दिखा! दिगम्बर और श्वेताम्बर एकता की नौटंकी को किनारे करें तो समग्रा श्वेताम्बर समाज ने मिल कर महावीर जयन्ती उत्सव नहीं मनाया। जो लोग श्वेताम्बर-दिगम्बर जैन एकता का पाखण्ड रच रहे हैं, हम उन्हें एक बात ओर याद दिला दें कि भारत सरकार और राजस्थान सरकार ने पाश्र्वनाथ जयन्ती पर ऐच्छिक अवकाश घोषित किया है। जिन लोगों ने पाश्र्वनाथ जयन्ती पर ऐच्छिक अवकास घोषित करवाने के लिये पापड़ बेले थे, उन्हें पता है कि कथित जैन एकता का पाखण्ड करने वालोंं में से एक भी उनके साथ नहीं था। समग्र श्वेताम्बर समाज का एक संगठन बना था श्री जैन श्वेताम्बर संघ! जब तक श्वेताम्बर समाज का यह संघ उमरावमल चौरडिया के बूते पर चला, कुछ न कुछ कार्यक्रम होते रहे। उनके पराभव के बाद सबकुछ ठप्प। निकल गया जैन एकता का जनाजा!
अब जैन एकता का कथित परचम उठाये उछल कूद करने वालों से हमारा एक सवाल है और यह सवाल नैतिकता से जुडा है। श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के विधान (संविधान) की धारा-5 साधारण सदस्यों का सदस्यता से मुक्त होना,की उपधारा (ग) में साफ-साफ लिखा है कि अगर खरतरगच्छ संघ जयपुर का सदस्य स्थानकवासी, तेरापंथी या तपागच्छ का सदस्य होगा तो उसकी संघ की सदस्यता समाप्त हो जायेगी। जिस संगठन के विधान (संविधान) में समग्र जैन एकता को तोडऩे, उसे नष्ट करने के प्रावधान हों उस संगठन के पदाधिकारी या पूर्व में रहे पदाधिकारी किस मुंह से समग्र जैन समुदय की एकता की नौटंकी करते हैं, इसका खुलासा तो वे खुद ही कर सकते हैं! हां, हम यह जरूर कह सकते हैं की संगठन के पदाधिकारियों को अपने गिरेहबां में जरूर झांक कर आत्म विश्लेशण कर ही लेना चाहिये।
जबरिया दादागिरी से समाज की सम्पत्ति पर एक छत्र राज करने का हम दूसरा नमूना भी बताते हैं। स्वर्गीय आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि की वसीयत में उल्लेखित सम्पत्ति पर कब्जा जमाने के लिये कुछ लोगों ने श्री मण्डोर खरतरगच्छ संघ नाम से एक नया संघ ही स्थापित कर लिया! इन लोगों में से अधिकांश श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के सदस्य एवं पदाधिकारी ही हैं। होना तो यह चाहिये था कि नया संघ बनाने के स्थान पर इस सम्पत्ति को खरतरगच्छ संघ के ही आधीन कर उसकी व्यवस्था संचालित की जाती। क्या इस ही तरह होगी जैन एकता?
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष माणकचंद गोलेछा ने एक गुट बना कर श्री जैन श्वेताम्बर ऋषभदेव मंदिर और सलग्र उपासरे (विजयगच्छ मंदिर) पर कब्जा कर रखा है। साहब एक संगठन के अध्यक्ष है और दूसरा उनकी जेब में! वह भी राठौडी से!
स्थानाभाव के कारण हम और खुलासे अगली बार करेंगे, जो चौंकाने वाले होंगे और उसके साथ ही हम नवरतनमल कोठारी, विमलचंद सुराना, सुमेरचंद बोथरा एण्ड कम्पनी की दिगम्बर-श्वेताम्बर एकता के पीछे का हकीकत भरा राज भी खोलेंगे।
वैसे दिगम्बर-श्वेताम्बर एकता की फटे सुर में बांसुरी बजाने वाले इन सेठियों ने आज तक जैन समाज को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये सोचा तक नहीं है। यह है इन की एकता की खिचड़ी का कंकड़ जो इनकी हकीकत की वखिया उधेडेगा। (क्रमश:)
महावीर के परिनिर्माण के 500 साल बाद तक जैन समुदाय एक सूत्र में विरोध हुआ था। न कोई श्वेताम्बर था और न ही कोई दिगम्बर! लेकिन महावीर के परिनिर्वाण के 500 साल बाद दो गुरू भाइयों भद्रबाहू और स्थूलभद्र में वर्चस्व की लडाई को लेकर जैन समुदाय दो भागों में विभक्त हो गया। दिगम्बर और श्वेताम्बर धडों में विभक्त इस जैन समुदाय के विभाजन के पीछे कोई ठोस तर्क नहीं था। नतीजन भद्रबाहू के धडे ने अपने आपको दिगम्बर और स्थूलभद्र धडे ने अपने आप को श्वेताम्बर घोषित कर दिया। इस सम्बन्ध में इतिहास में काफी सामग्री उपलब्ध है। तब से अब तक जैन समुदाय में दिगम्बर और श्वेताम्बर धडे आज तक एक नहीं हो पाये हैं। यह बात दीगर है कि दोनों धडों के साधु-सन्यासियों के कई प्रवचनों से दोनों ही धडों में कटुता जरूर बढ़ जाती है।
जयपुर में जैन समुदाय के दोनों धडों के साधुओं ने आगामी चातुर्मास एक साथ करने की सहमति दी है। हम समग्र जैन समाज की एकता के हिमायती हैं और अगर दोनों धडों में एकता होती है तो हम उस का तहेदिल से स्वागत करते हैं। लेकिन जो हकीकत छन-छन कर सामने आ रही है, उससे साफ होता जा रहा है कि जैन एकता की आड़ में कोई राजनैतिक शतरंजी चाल चली जा रही है और यह शतरंजी चाल जैन समुदाय की एकता की आड में क्या पूंजीपतियों उनके पिछलग्गू सरमायेदारों, टैक्स चोरों, बिल्डरों, भू-माफियाओं और कालेधन के कुबेरों को फायदा पहुंचाने के लिये तो नहीं चली जा रही? यह चिंतन का मुद्दा है!
हमें असलियत से रूबरू होने के लिये शताब्दियों या वर्षों पीछे जाने की जरूरत नहीं है। गत 23 अप्रेल, 2013 से ही शुरू करें। गत 23 अप्रेल, 2013 को महावीर जयन्ती के जो कार्यक्रम हुए उसमें दिगम्बर और श्वेताम्बर समुदाय की एकता का नजारा सभी ने देखा होगा। दोनों धडों में छत्तीस का आंकड़ा दिखा! दिगम्बर और श्वेताम्बर एकता की नौटंकी को किनारे करें तो समग्रा श्वेताम्बर समाज ने मिल कर महावीर जयन्ती उत्सव नहीं मनाया। जो लोग श्वेताम्बर-दिगम्बर जैन एकता का पाखण्ड रच रहे हैं, हम उन्हें एक बात ओर याद दिला दें कि भारत सरकार और राजस्थान सरकार ने पाश्र्वनाथ जयन्ती पर ऐच्छिक अवकाश घोषित किया है। जिन लोगों ने पाश्र्वनाथ जयन्ती पर ऐच्छिक अवकास घोषित करवाने के लिये पापड़ बेले थे, उन्हें पता है कि कथित जैन एकता का पाखण्ड करने वालोंं में से एक भी उनके साथ नहीं था। समग्र श्वेताम्बर समाज का एक संगठन बना था श्री जैन श्वेताम्बर संघ! जब तक श्वेताम्बर समाज का यह संघ उमरावमल चौरडिया के बूते पर चला, कुछ न कुछ कार्यक्रम होते रहे। उनके पराभव के बाद सबकुछ ठप्प। निकल गया जैन एकता का जनाजा!
अब जैन एकता का कथित परचम उठाये उछल कूद करने वालों से हमारा एक सवाल है और यह सवाल नैतिकता से जुडा है। श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के विधान (संविधान) की धारा-5 साधारण सदस्यों का सदस्यता से मुक्त होना,की उपधारा (ग) में साफ-साफ लिखा है कि अगर खरतरगच्छ संघ जयपुर का सदस्य स्थानकवासी, तेरापंथी या तपागच्छ का सदस्य होगा तो उसकी संघ की सदस्यता समाप्त हो जायेगी। जिस संगठन के विधान (संविधान) में समग्र जैन एकता को तोडऩे, उसे नष्ट करने के प्रावधान हों उस संगठन के पदाधिकारी या पूर्व में रहे पदाधिकारी किस मुंह से समग्र जैन समुदय की एकता की नौटंकी करते हैं, इसका खुलासा तो वे खुद ही कर सकते हैं! हां, हम यह जरूर कह सकते हैं की संगठन के पदाधिकारियों को अपने गिरेहबां में जरूर झांक कर आत्म विश्लेशण कर ही लेना चाहिये।
जबरिया दादागिरी से समाज की सम्पत्ति पर एक छत्र राज करने का हम दूसरा नमूना भी बताते हैं। स्वर्गीय आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि की वसीयत में उल्लेखित सम्पत्ति पर कब्जा जमाने के लिये कुछ लोगों ने श्री मण्डोर खरतरगच्छ संघ नाम से एक नया संघ ही स्थापित कर लिया! इन लोगों में से अधिकांश श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के सदस्य एवं पदाधिकारी ही हैं। होना तो यह चाहिये था कि नया संघ बनाने के स्थान पर इस सम्पत्ति को खरतरगच्छ संघ के ही आधीन कर उसकी व्यवस्था संचालित की जाती। क्या इस ही तरह होगी जैन एकता?
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष माणकचंद गोलेछा ने एक गुट बना कर श्री जैन श्वेताम्बर ऋषभदेव मंदिर और सलग्र उपासरे (विजयगच्छ मंदिर) पर कब्जा कर रखा है। साहब एक संगठन के अध्यक्ष है और दूसरा उनकी जेब में! वह भी राठौडी से!
स्थानाभाव के कारण हम और खुलासे अगली बार करेंगे, जो चौंकाने वाले होंगे और उसके साथ ही हम नवरतनमल कोठारी, विमलचंद सुराना, सुमेरचंद बोथरा एण्ड कम्पनी की दिगम्बर-श्वेताम्बर एकता के पीछे का हकीकत भरा राज भी खोलेंगे।
वैसे दिगम्बर-श्वेताम्बर एकता की फटे सुर में बांसुरी बजाने वाले इन सेठियों ने आज तक जैन समाज को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये सोचा तक नहीं है। यह है इन की एकता की खिचड़ी का कंकड़ जो इनकी हकीकत की वखिया उधेडेगा। (क्रमश:)