हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों से निकलने वाली मंदाकिनी, अलकनन्दा सहित अन्य नदियों ने उत्तराखण्ड में जो कहर बरपाया है, उस दास्तां को सुनकर लोगों के दिल दहल जाते हैं। लेकिन भूमाफियाओं, बिल्डरों और सरकारी हुक्कामों की तिकडी पहाडों, नदी-नालों और वनों को अपनी तिजोरियां भरने का जरिया बनाने से नहीं चूक रही है।
राजस्थान को ही लें! राज्य के हर जिले में असरदार पूंजीपति, भूमाफिया, बिल्डर और सरकारी हुक्काम मिल कर नदी के बहाव क्षेत्र में, जंगलों में अवैध कब्जे कर आलीशान कोठियां-बंगले या फिर बड़े-बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान बना रहे हैं। अदालते तो अपनी सीमा में रह कर इन पर नकेल कसने में जुटी है, लेकिन भ्रष्ट और बेईमान सरकारी हुक्कामों की सांठ-गांठ से और दौलत की ताकत से ये मक्कार लोग आज भी स्थापित सभी कानूनों की धज्जियां उडा कर राज्य के नदी-नालों के बहाव क्षेत्रों, नदियों के किनारों पर अवैध कब्जा कर इन्हें मटिया मेट करने पर तुले हैं। बेतरतीब अवैध-वैध खनन, भारी तादाद में जंगलों की कटाई, सड़क निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिये वृक्षों की बलि आज भी चालू है और सरकार मानो सन्नीपात में जकडी-अकडी पडी है।
ऐसा नहीं है कि इन जनविरोधी गतिविधियों से राजनेता और राजनैतिक दल वाकिफ न हों! राजनेता भी इन अवैध गतिविधियों को अपनी झोली-जेबें भरने के लिये प्रश्रय दे रहे हैं। ऐसे में अगर कुदरत कहर बरपाती है तो दोष प्रकृति को कैसे दिया जा सकता है! उम्मीद यही की जानी चाहिये कि उत्तराखण्ड हादसे से राज्य की सरकार, राजनेता, राजनैतिक पार्टियां, भूमाफिया, बिल्डर, पूंजीपति सबक लेंगे और कुदरत कोई कहर बरपाये उससे पहिले खुद आगे होकर प्रकृति के साथ छेडछाड करना बन्द करेंगे। अगर भ्रष्ट, बेईमानों की भजन मण्डली अपनी करतूतों पर अंकुश नहीं लगाती है तो उनकी करतूतों और गुनाहों की सजा राजस्थान के अवाम को ही भुगतनी होगी और सिर्फ हादसों के इंतजार के अलावा अवाम के पास कोई विकल्प नहीं होगा!
राजस्थान को ही लें! राज्य के हर जिले में असरदार पूंजीपति, भूमाफिया, बिल्डर और सरकारी हुक्काम मिल कर नदी के बहाव क्षेत्र में, जंगलों में अवैध कब्जे कर आलीशान कोठियां-बंगले या फिर बड़े-बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान बना रहे हैं। अदालते तो अपनी सीमा में रह कर इन पर नकेल कसने में जुटी है, लेकिन भ्रष्ट और बेईमान सरकारी हुक्कामों की सांठ-गांठ से और दौलत की ताकत से ये मक्कार लोग आज भी स्थापित सभी कानूनों की धज्जियां उडा कर राज्य के नदी-नालों के बहाव क्षेत्रों, नदियों के किनारों पर अवैध कब्जा कर इन्हें मटिया मेट करने पर तुले हैं। बेतरतीब अवैध-वैध खनन, भारी तादाद में जंगलों की कटाई, सड़क निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिये वृक्षों की बलि आज भी चालू है और सरकार मानो सन्नीपात में जकडी-अकडी पडी है।
ऐसा नहीं है कि इन जनविरोधी गतिविधियों से राजनेता और राजनैतिक दल वाकिफ न हों! राजनेता भी इन अवैध गतिविधियों को अपनी झोली-जेबें भरने के लिये प्रश्रय दे रहे हैं। ऐसे में अगर कुदरत कहर बरपाती है तो दोष प्रकृति को कैसे दिया जा सकता है! उम्मीद यही की जानी चाहिये कि उत्तराखण्ड हादसे से राज्य की सरकार, राजनेता, राजनैतिक पार्टियां, भूमाफिया, बिल्डर, पूंजीपति सबक लेंगे और कुदरत कोई कहर बरपाये उससे पहिले खुद आगे होकर प्रकृति के साथ छेडछाड करना बन्द करेंगे। अगर भ्रष्ट, बेईमानों की भजन मण्डली अपनी करतूतों पर अंकुश नहीं लगाती है तो उनकी करतूतों और गुनाहों की सजा राजस्थान के अवाम को ही भुगतनी होगी और सिर्फ हादसों के इंतजार के अलावा अवाम के पास कोई विकल्प नहीं होगा!