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राज्य विधान सभा का विशेष सत्र बुलाया जाये!

जयपुर (अग्रगामी) राजस्थान में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलाये जाने के लिये राज्य विधानसभा का आगामी जुलाई में विशेष मानसून सत्र बुलाने की मांग अब धीरे-धीरे जोर पकडऩे लगी है।

सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर और राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के गृह जिले में भी जैन समुदाय विशेष विधानसभा सत्र बुलाये जाने की मांग कर एकजुट होता नजर आ रहा है। राज्य के सिरोही, पाली, जैसलमेर, बाड़मेर, चूरू, उदयपुर, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करौली सहित विभिन्न जिलों में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिये राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाये जाने की मांग प्रबल होती जा रही है।

ऑल इण्डिया फारवर्ड ब्लाक के राजस्थान स्टेट जनरल सेक्रेटरी हीराचंद जैन ने बताया कि अशोक गहलोत सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में अध्यादेश के जरिये जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने की जो अधिसूचना जारी की गई थी, उसे वसुन्धरा राजे के सत्ता में आने के बाद विधानसभा में पारित नहीं करवाया गया था। ऐसी स्थिति में विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर उस अधिसूचना को या फिर नया विधेयक लाकर पारित करवाया जाये। रिटायर्ड जस्टिस पानाचंद जैन सहित कई विधिवेता जैन समुदाय को जल्दी से जल्दी अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाये जाने की मांग कर चुके हैं।

फारवर्ड ब्लाक के स्टेट जनरल सेक्रेटरी हीराचंद जैन ने यह भी मांग की है कि उत्तराखण्ड त्रासदी के मद्देनजर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर राजस्थान के जल स्त्रोतों, पहाड़, जंगलों को सुरक्षित एवं उनके मूल स्वरूप में रखने-बहाल करने के लिये भी विधेयक लाकर कानून बनाया जाये ताकि राज्य की जनता को भावी त्रासदी की आशंका से मुक्ति मिले। राज्य की न्यायपालिका ने भी इस सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश दिये हैं, जिनके आलोक में ऐसा विधेयक लाया जा सकता है।

दु:खद स्थिति यह भी है कि सोहराबुद्दीन प्रकरण में सीबीआई की कार्यवाही का सामना कर रहे भाजपा नेता और राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया से समर्थन में उतरा कथित आरएसएस पंथी जैन गुट और खुद गुलाबचंद कटारिया जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिये जाने के मामले में एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं, मानों उनकी जबान तालू से चिपक गई हो। वसुन्धरा राजे मंत्रिमण्डल में गुलाबचंद कटारिया राज्य के गृहमंत्री थे। वसुन्धरा राजे सरकार के पांच साल के कार्यकाल में भी कटारिया ने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये कुछ भी नहीं किया, क्योंकि वे अपने आप को जैन समुदाय का सदस्य कम और आरएसएस का स्वंयसेवक ज्यादा मानते रहे हैं।

 
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