हमने पिछले अंक में लिखा था कि जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलवाने की मांग को लेकर जो मुहिम चल रही है, वह अब धीरे-धीरे रंग लाने लगी है। उधर पूंजीपति, बिल्डर, भू-माफिया, टैक्स चोर, कालेधन के कुबेर जो पर्दे के पीछे से जैन समुदाय की इस मुहिम का विरोध कर रहे हैं, उनकी भी असलियत समाज के समाने नंगी होती जा रही है।
जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने के लिये पिछले दिनों बाड़मेर जिला मुख्यालय पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को समग्र जैन श्री संघ द्वारा ज्ञापन दिया गया। बाड़मेर जिले के ही बालोतरा उपखण्ड मुख्यालय पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के सचिव डॉ.ललित के.पंवार को प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंप कर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग की गई। ज्ञातव्य रहे कि ललित के.पंवार वर्ष 1984-85 में बाड़मेर जिला कलक्टर भी रह चुके हैं।
उधर बीकानेर सम्भाग मुख्यालय पर दिगम्बर एवं श्वेताम्बर, समस्त जैन समाज के अग्रणी संगठनों ने सम्भागीय आयुक्त आनन्द कुमार को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंप कर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने की मांग की।
चूरू जिले के सुजानगढ़ मुख्यालय के सभी जैन संगठनों ने राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिख कर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित करने की मांग की है। हिमाचल में चातुर्मास कर रहे दिगम्बर समुदाय के ऐलाचार्य वसुनन्दी जी ने शिमला में केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि जैन समुदाय को उसका अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाया जाये।
इससे पहिले आचार्य पुष्पदंत ने भी जयपुर के भवानी निकेतन प्रांगण में राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से आग्रह किया था कि जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलवाया जाये। वहीं जैसलमेर के लोद्रवपुर पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट की अगुआई में समग्र जैन समुदाय ने पिछले दिनों ज्ञापन देकर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की। राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी जैन समुदाय के आगेवानों को ज्ञापनों के मुद्दे पर सकारात्मक रूख अपना कर कार्यवाही करने का भरोसा दिया।
ज्ञातव्य रहे कि जोधपुर, अजमेर, सिरोही, कोटा सहित विभिन्न जिलों में जैन समुदाय संगठित होकर समाज को अल्पसंख्यक घोषित करने की मुहिम में तहेदिल से जुट गया है।
उधर राजस्थान की राजधानी जयपुर में जैन समुदाय का आक्रोश अपने ही समाज पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कब्जा जमाये बैठे अरबपति, पूंजीपतियों, बिल्डरों, भू-माफियाओं, टैक्स चोर और कालेधन के कुबेरों के प्रति बढ़ता ही चला जा रहा है। समाज केमध्यम, निम्र मध्यम एवं निम्रतम वर्ग के युवाओं और आर्थिक रूप से शोषित समाज के पीडि़त वर्ग का सवाल है कि भीड़ जुटा कर धन्ना सेठों द्वारा साधर्मी वात्सल्य शब्द की आड़ लेकर मिष्ठान भोज देने से समाज की आकांक्षाऐं पूरी नहीं हो जाती है!
समाज को चाहिये जैन संस्कृति के साहित्य के विकास के लिये जैन साहित्य अकादमी, जैन इतिहास अकादमी, जैन शिक्षण संस्थाओं, समाज की धार्मिक संस्थाओं के संरक्षण, पोषण, स्वायत्ता एवं सुरक्षा की व्यवस्था!
जैन समाज को चाहिये अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद मिलने वाली सुविधायें। जैसे कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण, स्वरोजगार के लिये सरकारी स्तर से मिलने वाली वित्तिय सहायता, महिलाओं और बालिकाओं को मिलने वाला विशेष आर्थिक पैकेज, उच्च शिक्षा व स्कूली शिक्षा के लिये छात्रवृतियां और विशेष आर्थिक पैकेज।
समग्र जैन समुदाय के तीर्थ स्थल धीरे-धीरे लुप्त होने के कागार पर हैं। कुण्डनपुर के आदिनाथ ऋषभदेव प्राचीन जैन मंदिर सहित अन्य जैन मंदिर हों या फिर गिरीनार तीर्थ, पालीताना तीर्थ, सम्मेद शिखर, पावपुरी हो या फिर राजस्थान का ऋषभदेव मंदिर ये सभी तीर्थ किसी न किसी स्तर पर अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रहे हैं। भू-माफिया, खनन माफिया और कट्टर हिन्दुत्ववादियों द्वारा इन तीर्थ स्थलों पर अतिक्रमणों की भरमार होती जा रही है। चूंकि जैन समुदाय जोकि कानूनन एक अलग धार्मिक समूह है, को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा नहीं मिलने से जैन समुदाय के धार्मिक स्थलों के संरक्षण हेतु सरकारी इमदाद के लिये तरसता रहता है, जबकि सरकारी इमदाद प्राप्त करना हमारा संवैधानिक अधिकार है।
अब हम आयें जयपुर के जैन समाज की एकता की हकीकत बनाम नौटंकी पर! पिछले दिनों हमने मीडिया में पढ़ा कि दिगम्बर और श्वेताम्बर साधु एक साथ पर्युषण पर्व और दसलक्षण पर्व मिल कर मनायेंगे। संजीदगी से और तहेदिल से इस बात का तो हम स्वागत करते हैं कि धार्मिक प्रवचन के लिये तो हमारे संत एक जगह बैठेंगे। लेकिन इस हेतु तैयारी करने वाले पूंजीपतियों, सरमायेदारों, बिल्डरों और उनके पीछेवानों के नाम जब सामने आये तो ऐसा लगने लगा कि कहीं धार्मिक एकता की आड़ में कोई शतरंजी चाल तो नहीं चली जा रही है। गत महावीर जयंती तक दिगम्बर-श्वेताम्बर एकता ढूंढे से नहीं मिली वो अचानक नवरत्नमल कोठारी, विमलचंद सुराना, सुमेर सिंह बोथरा, एन.के.सेठी, महेन्द्र सुराणा जैसे सेठों और उनके सहयोगियों के सानिध्य में कैसे मूर्तरूप ले रही है, क्या है इसके पीछे का राज? और क्यों इस दिखावे की एकता की नौटंकी की जा रही है! हम विस्तार से हकीकत को उजागर करेंगे। अगले अंकों में!
जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने के लिये पिछले दिनों बाड़मेर जिला मुख्यालय पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को समग्र जैन श्री संघ द्वारा ज्ञापन दिया गया। बाड़मेर जिले के ही बालोतरा उपखण्ड मुख्यालय पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के सचिव डॉ.ललित के.पंवार को प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंप कर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग की गई। ज्ञातव्य रहे कि ललित के.पंवार वर्ष 1984-85 में बाड़मेर जिला कलक्टर भी रह चुके हैं।
उधर बीकानेर सम्भाग मुख्यालय पर दिगम्बर एवं श्वेताम्बर, समस्त जैन समाज के अग्रणी संगठनों ने सम्भागीय आयुक्त आनन्द कुमार को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंप कर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने की मांग की।
चूरू जिले के सुजानगढ़ मुख्यालय के सभी जैन संगठनों ने राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिख कर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित करने की मांग की है। हिमाचल में चातुर्मास कर रहे दिगम्बर समुदाय के ऐलाचार्य वसुनन्दी जी ने शिमला में केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि जैन समुदाय को उसका अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाया जाये।
इससे पहिले आचार्य पुष्पदंत ने भी जयपुर के भवानी निकेतन प्रांगण में राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से आग्रह किया था कि जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलवाया जाये। वहीं जैसलमेर के लोद्रवपुर पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट की अगुआई में समग्र जैन समुदाय ने पिछले दिनों ज्ञापन देकर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की। राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी जैन समुदाय के आगेवानों को ज्ञापनों के मुद्दे पर सकारात्मक रूख अपना कर कार्यवाही करने का भरोसा दिया।
ज्ञातव्य रहे कि जोधपुर, अजमेर, सिरोही, कोटा सहित विभिन्न जिलों में जैन समुदाय संगठित होकर समाज को अल्पसंख्यक घोषित करने की मुहिम में तहेदिल से जुट गया है।
उधर राजस्थान की राजधानी जयपुर में जैन समुदाय का आक्रोश अपने ही समाज पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कब्जा जमाये बैठे अरबपति, पूंजीपतियों, बिल्डरों, भू-माफियाओं, टैक्स चोर और कालेधन के कुबेरों के प्रति बढ़ता ही चला जा रहा है। समाज केमध्यम, निम्र मध्यम एवं निम्रतम वर्ग के युवाओं और आर्थिक रूप से शोषित समाज के पीडि़त वर्ग का सवाल है कि भीड़ जुटा कर धन्ना सेठों द्वारा साधर्मी वात्सल्य शब्द की आड़ लेकर मिष्ठान भोज देने से समाज की आकांक्षाऐं पूरी नहीं हो जाती है!
समाज को चाहिये जैन संस्कृति के साहित्य के विकास के लिये जैन साहित्य अकादमी, जैन इतिहास अकादमी, जैन शिक्षण संस्थाओं, समाज की धार्मिक संस्थाओं के संरक्षण, पोषण, स्वायत्ता एवं सुरक्षा की व्यवस्था!
जैन समाज को चाहिये अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद मिलने वाली सुविधायें। जैसे कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण, स्वरोजगार के लिये सरकारी स्तर से मिलने वाली वित्तिय सहायता, महिलाओं और बालिकाओं को मिलने वाला विशेष आर्थिक पैकेज, उच्च शिक्षा व स्कूली शिक्षा के लिये छात्रवृतियां और विशेष आर्थिक पैकेज।
समग्र जैन समुदाय के तीर्थ स्थल धीरे-धीरे लुप्त होने के कागार पर हैं। कुण्डनपुर के आदिनाथ ऋषभदेव प्राचीन जैन मंदिर सहित अन्य जैन मंदिर हों या फिर गिरीनार तीर्थ, पालीताना तीर्थ, सम्मेद शिखर, पावपुरी हो या फिर राजस्थान का ऋषभदेव मंदिर ये सभी तीर्थ किसी न किसी स्तर पर अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रहे हैं। भू-माफिया, खनन माफिया और कट्टर हिन्दुत्ववादियों द्वारा इन तीर्थ स्थलों पर अतिक्रमणों की भरमार होती जा रही है। चूंकि जैन समुदाय जोकि कानूनन एक अलग धार्मिक समूह है, को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा नहीं मिलने से जैन समुदाय के धार्मिक स्थलों के संरक्षण हेतु सरकारी इमदाद के लिये तरसता रहता है, जबकि सरकारी इमदाद प्राप्त करना हमारा संवैधानिक अधिकार है।
अब हम आयें जयपुर के जैन समाज की एकता की हकीकत बनाम नौटंकी पर! पिछले दिनों हमने मीडिया में पढ़ा कि दिगम्बर और श्वेताम्बर साधु एक साथ पर्युषण पर्व और दसलक्षण पर्व मिल कर मनायेंगे। संजीदगी से और तहेदिल से इस बात का तो हम स्वागत करते हैं कि धार्मिक प्रवचन के लिये तो हमारे संत एक जगह बैठेंगे। लेकिन इस हेतु तैयारी करने वाले पूंजीपतियों, सरमायेदारों, बिल्डरों और उनके पीछेवानों के नाम जब सामने आये तो ऐसा लगने लगा कि कहीं धार्मिक एकता की आड़ में कोई शतरंजी चाल तो नहीं चली जा रही है। गत महावीर जयंती तक दिगम्बर-श्वेताम्बर एकता ढूंढे से नहीं मिली वो अचानक नवरत्नमल कोठारी, विमलचंद सुराना, सुमेर सिंह बोथरा, एन.के.सेठी, महेन्द्र सुराणा जैसे सेठों और उनके सहयोगियों के सानिध्य में कैसे मूर्तरूप ले रही है, क्या है इसके पीछे का राज? और क्यों इस दिखावे की एकता की नौटंकी की जा रही है! हम विस्तार से हकीकत को उजागर करेंगे। अगले अंकों में!