चुनावों की गहमागहमी के बीच केंद्रीय मंत्रिमण्डल का विस्तार अगले दो तीन दिन में होना लगभग तैय है। संसद के मानसून सत्र से पहिले होने वाला केंद्रीय मंत्रिमण्डल का यह फेरबदल आगामी लोकसभा चुनावों से पहिले अंतिम फेरबदल होगा। कोलगेट और रेल्वे नियुक्ति घोटाले ने पहिले ही कानून मंत्री अश्वनी कुमार और रेलमंत्री पवन बंसल को अपने घेरे में ले लिया था, अब अजय माकन ने भी अपने पद से स्तीफा दे दिया है।
चूंकि आगामी लोकसभा चुनावों से पहिले मंत्रिमण्डल का यह अंतिम फेरबदल है और ऐसे में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को अपने मंत्रिमण्डल में फेरबदल के मामले में अत्यन्त गम्भीरता और सजगता बरतनी होगी। राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में कांग्रेस का पूरा प्रयास भाजपा को पटकनी लगाने का है। वहीं भाजपा कांग्रेस को मात देने में जी जान लगा रही है।
लेकिन एक बात बिल्कुल साफ है कि कांग्रेस हो या फिर भारतीय जनता पार्टी, दोनों ही धुर दक्षिणपंथी और अमरीका परस्त पार्टियां हैं। भाजपा तो वैसे भी धुर दक्षिणपंथी पार्टी है और उसकी इस विचारधारा में कट्टर हिन्दुत्व का तड़का शामिल है। लेकिन कांग्रेस ने देश को मध्य मार्ग पर चलने का प्रयास किया। वे सफल भी हुए और वाम और पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में दक्षिण मार्ग से हट कर उन्होंने मध्य मार्ग चुना। निर्गुट सम्मेलन इसका उदाहरण है। लेकिन डॉ.मनमोहन सिंह के सत्ता में आने के बाद सत्ताधीशों ने कांग्रेस की लुटिया डुबो दी और उसे धुर दक्षिणपंथ (वह भी अमरीकी परस्त) रास्ते पर ला पटका! नतीजन अवाम मंहगाई, बेरोजगारी, बड़े-बड़े पूंजीपतियों-उद्योगपतियों के शोषण की चक्की में गहराई से पिस रहा है। उसे शोषण के इस चक्र से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। अगर कांग्रेस सत्ता से जाती है तो दूसरी दक्षिणपंथी अमरीकी परस्त कट्टर हिन्दुत्व का ऐजेण्डा रखने वाली भाजपा सत्ता में आयेगी। ऐसी स्थिति में अवाम को कुछ भी हांसिल होने वाला नहीं है। भाजपा और कांग्रेस एक सिक्के के दो पहलू हैं, एक नागनाथ तो दूसरा सांपनाथ!
चूंकि आगामी लोकसभा चुनावों से पहिले मंत्रिमण्डल का यह अंतिम फेरबदल है और ऐसे में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को अपने मंत्रिमण्डल में फेरबदल के मामले में अत्यन्त गम्भीरता और सजगता बरतनी होगी। राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में कांग्रेस का पूरा प्रयास भाजपा को पटकनी लगाने का है। वहीं भाजपा कांग्रेस को मात देने में जी जान लगा रही है।
लेकिन एक बात बिल्कुल साफ है कि कांग्रेस हो या फिर भारतीय जनता पार्टी, दोनों ही धुर दक्षिणपंथी और अमरीका परस्त पार्टियां हैं। भाजपा तो वैसे भी धुर दक्षिणपंथी पार्टी है और उसकी इस विचारधारा में कट्टर हिन्दुत्व का तड़का शामिल है। लेकिन कांग्रेस ने देश को मध्य मार्ग पर चलने का प्रयास किया। वे सफल भी हुए और वाम और पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में दक्षिण मार्ग से हट कर उन्होंने मध्य मार्ग चुना। निर्गुट सम्मेलन इसका उदाहरण है। लेकिन डॉ.मनमोहन सिंह के सत्ता में आने के बाद सत्ताधीशों ने कांग्रेस की लुटिया डुबो दी और उसे धुर दक्षिणपंथ (वह भी अमरीकी परस्त) रास्ते पर ला पटका! नतीजन अवाम मंहगाई, बेरोजगारी, बड़े-बड़े पूंजीपतियों-उद्योगपतियों के शोषण की चक्की में गहराई से पिस रहा है। उसे शोषण के इस चक्र से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। अगर कांग्रेस सत्ता से जाती है तो दूसरी दक्षिणपंथी अमरीकी परस्त कट्टर हिन्दुत्व का ऐजेण्डा रखने वाली भाजपा सत्ता में आयेगी। ऐसी स्थिति में अवाम को कुछ भी हांसिल होने वाला नहीं है। भाजपा और कांग्रेस एक सिक्के के दो पहलू हैं, एक नागनाथ तो दूसरा सांपनाथ!