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जैन समुदाय को अल्पसंख्यक के संवैधानिक दर्जे का विरोध करने वालों की खुलने लगी है पोल!

जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने की मुहिम अब धीरे-धीरे रंग लाने लगी है। विभिन्न संवैधानिक रूप से स्थापित संस्थाओं और राजकीय स्तर पर जैन समुदाय को अलग धार्मिक समूह में दर्शाने का कार्य मूर्तरूप लेने लगा है।
विछले दिनों राज्य सरकार द्वारा 10 हजार से अधिक शिक्षा सहायकों की भर्ती के लिये जो ऑनलाइन आवेदन पत्र भरवाये जा रहे हैं उसमें भी जैन समुदाय के आवेदकों को उनके धर्म के कालम में जैन धर्म का कोड़ ही अंकित करना है। इस ही तरह दी इन्सटीट्यूट  ऑफ कम्पनी सेक्रेटरी ऑफ इण्डिया के आवेदन पत्र में भी रिलिजन कोड़ के अन्तर्गत जैन आवेदक को जैन समुदाय के लिये दिया गया कोड़ ही भरना होगा। इस ही तरह अन्य शासकीय एवं स्वायत्तशासी संस्थाओं में भी जैन समुदाय के आशार्थियों को रिलीजन कोड़ के अन्तर्गत जैन धर्म के लिये निर्धारित कोर्ड ही अंकित करना है।
जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने/प्राप्त करने के रास्ते की यह पहली सीढी हमारे जैन समुदाय के युवाओं ने प्राप्त क ली। अब पूरे देश में जैन समुदाय एक स्वतंत्र धार्मिक समूह के रूप में मान्यता प्राप्त हो गया है। अब अगले चरण में हमें अल्पसंख्यक का हमारा संवैधानिक दर्जा प्राप्त करने की मुहिम में जुट जाना होगा। राष्ट्रीय स्तर पर जैन समुदाय के स्वतंत्र धार्मिक समूह के रूप में मान्यता के साथ-साथ हमने एक वैधानिक जीत के रास्ते पर भी कदम रखा है। जिन राज्यों में जैन समुदाय अल्पसंख्यक घोषित हो चुके हैं उन राज्यों में जैन समुदाय को अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविधायें सिर्फ राज्य स्तरीय संस्थाओं तक ही सीमित नहीं रहेंगी। बल्कि उस राज्य में स्थापित या संचालित राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों में भी जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाकर जो सुविधायें इस समुदाय को मिलनी चाहिये वे दी जायेगी।
जैन समुदाय के मध्यम, निम्र मध्यम और गरीब वर्ग के युवाओं और जैन समुदाय के समग्र विकास के लिये चिंतित समाज के बुद्धिजीवियों और समाज सेवियों को उनके प्रभाव के लिये इस पहली सीढी की उपलब्धि पर संयुक्त रूप् से साधुवाद दिया जाना चाहिये।
लेकिन जैन समुदाय के उन पूंजीपतियों, बिल्डरों, भूमाफियाओं और कालेधन के कुबेर टैक्स चारों को शायद श्यापा करने के लिये अब तैयार हो ही जाना चाहिये। अपनी दौलत के बूते पर जैन समुदाय के विभिन्न संगठनों के अगड़े बन कर बैठे और अपने आप को समाज का अगड़ा आरोपित कर सत्ताधीशों से सांठगांठ कर अपने हितों की पूर्ति में जुटे लोगों को अब समाज के अगडे के रूप में हथियाये गये पदों से हट जाना चाहिये। समाज में उन्हें आगेवान या अगड़ा इस लिये बनाया गया था कि वे समाज के पीडि़त शोषित वर्ग की दु:ख तकलीफों में उन्हें हर स्तर पर सम्बल और सहयोग देंगे। लेकिन पैसे के पूते पर पद प्राप्ति के बाद वे समाज को भूल कर अपने हित साधन में जुट गये। हमारे पास पचासों ऐसे मामले हैं, जो अगर उजागर कर दिये जायें तो उनके तलुओं के नीचे की जमीन खिसक जाये।
पिछले दिनों हमने एक सामाजिक संगठन के लेटरहैड़ पर माननीय राष्ट्रपति जी को प्रेषित पत्र की प्रति देखी! इस पत्र में संगठन के आगेवान ने गुलाबचंद कटारिया को जैन समाज का राष्ट्रीय गौरव बताया! वहीं मारबल व्यवसायी को युवा रत्न व्यवसायी का अलंकरण दिया गया! सवाल उठता है कि जब सीबीआई शिकंजा कसती है तो एक राजनैतिक पार्टी का नेता यकायक जैन समाज का राष्ट्रीय गौरव बन जाता है। अब इन राष्ट्रीय गौरव से ही पता कर लिया जाना चाहिये कि उदयपुर डिवीजन में ही एक जैन वृद्धा के साथ हुए अमानुषिक अत्याचार के समय ये जैन समुदाय के राष्ट्रीय गौरव कहां थे? जब ऋषभदेव स्थित केसरियानाथ मंदिर मुद्दे पर अतिचरमपंथी हिन्दुओं ने आदिवासियों को भड़का कर जैन समुदाय के परिवारों पर हमले कर भारी नुकसान पहुंचाया तब ये हिन्दुत्ववादी आरएसएस के मठाधीश जिन्हें जैन समुदाय का राष्ट्रीय गौरव आरोपित किया जा रहा है वे राष्ट्रीय गौरव जी कहां थे?
वैसे भी सोहराबुद्दी प्रकरण गुलाबचंद कटारिया और विमल पाटनी का निजी मामला है। इसका जैन समुदाय से सीधे-सीधे कोई लेना देना नहीं है। ये मामला आरएसएस, भाजपा, राजस्थान सरकार, गुजरात सरकार, सीबीआई और अदालत के बीच का मामला है। इस में जैन समुदाय बीच में आया कहां से?
जिसने भी गुलाबचंद कटारिया और विमल पाटनी के लिये माननीय राष्ट्रपति जी को पत्र लिखा है, उनसे भी एक सवाल है कि समाज के हितों की रक्षा के लिये संगठन बने हैं व्यक्ति के हित साधन के लिये संगठन का दुरूपयोग क्यों। क्रमश:

 
AGRAGAMI SANDESH

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