नई दिल्ली/जयपुर (अग्रगामी) राजस्थान सहित देश के सात राज्यों और लोकसभा के चुनाव आगामी अक्टूबर-नवम्बर, 2013 में होना लगभग तैय हो गया है और इस ही के मद्देनजर केंद्र की यूपीएनीत कांग्रेस की अगुआईवाली डॉ.मनमोहन सिंह सरकार ने अपनी उपलब्धि से सम्बन्धित भारत निर्माण श्रंखला के थोक में विज्ञापन प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में जारी करने प्रारम्भ कर दिये हैं।
पांच राज्यों, राजस्थान, छत्तीसगढ़, नागालैण्ड, दिल्ली और मध्यप्रदेश की विधानसभाओं के चुनाव आगामी नवम्बर माह में होने वाले हैं। अग्रगामी संदेश ने गत वर्ष नवम्बर, 2012 में तथा इस ही साल 13 मई के अंक में साया किया था कि देश में मध्यावधि चुनाव सम्भव है। हमने यह भी साया किया था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही मध्यावधि चुनाव सम्भव है।
जैसा कि हमने पहिले साया किया था कि लोकसभा के मध्यावधि चुनावों के साथ ही हरियाणा में भी विधानसभा चुनावों की तैयारी चल रही है वहीं अब कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी नई रणनीति के तहत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ लोकसभा के चुनाव तथा हरियाणा विधानसभा चुनावों की तैयारी को अंतिम रूप देने की लगभग तैयारी कर ली है और कांग्रेस हाईकमान इस बात पर भी मंथन कर रहा है कि आंध्रप्रदेश विधानसभा को भी भंग कर वहां भी मध्यावधि चुनाव करवा दिये जायें!
पांच राज्यों, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, नागालैण्ड और दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा और आंध्रप्रदेश की विधानसभाओं तथा लोकसभा के मध्यावधि चुनावों से कांग्रेस को भारी फायदा होने की रणनीतिक सोच के पीछे पार्टी में तर्क यह है कि इन राज्यों से लगभग 120 सांसद चुन कर आते हैं। अगर इन राज्यों की विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा चुनाव भी होते हें तो इन सात प्रदेशों में कांग्रेस ज्यादा संसदीय सीटें जीतने की स्थिति में आजाती है। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ही वर्चस्व है और वहां उसे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल सरीखी पार्टियों से भी मुकाबला करना होगा और यहां कि हार की भरपाई वह अन्य राज्यों में नहीं कर पायेगी! जबकि कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं होगा और वह अन्य गैर हिन्दी भाषी राज्यों व उत्तरपूर्व से भरपाई करने की स्थिति में है।
कांग्रेस इस बार सोनिया गांधी को लोकसभा चुनावों में नहीं उतारने का मानस भी बना रही है। उनके स्थान पर उनकी सीट से प्रियंका गांधी वाड्रा को लोकसभा चुनावों में उतारने की तैयारी की जा रही है। इस ही तरह कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों का यह भी सोच है कि राहुल गांधी को भी लोकसभा चुनावों में ना उलझा कर राज्यसभा के रास्ते संसद में लाया जाये। ऐसा करने से सोनिया गांधी और राहुल गांधी को लोकसभा और सात विधानसभाओं के चुनावों में चुनाव प्रचार का भरपूर समय मिलेगा! वहीं भारतीय जनता पार्टी के पास राष्ट्रीय स्तर का नेतृत्व नहीं होने के कारण और पार्टी के अन्दर घमासान के चलते पार्टी की हालत पतली रहेगी, जिसका फायदा कांग्रेस उठाने से नहीं चूकेगी।
कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार अपनी चुनावी रणनीति में खासकर इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी में अन्दरूनी उठापटक और पार्टी के नेतृत्व की कमजोरियों को अवाम के सामने उजागर करें और भाजपा नेताओं को आरोप-प्रत्यारोपों की दलदल में गहराई तक उतार दें ताकि उनका अवाम से सीधा सम्पर्क टूट जाये!
अब अवाम को देखना यही है कि भाजपा और कांग्रेस के नेता और उनके दुमछल्ले कितना कीचड़ एक दूसरे पर उछालते हैं!
पांच राज्यों, राजस्थान, छत्तीसगढ़, नागालैण्ड, दिल्ली और मध्यप्रदेश की विधानसभाओं के चुनाव आगामी नवम्बर माह में होने वाले हैं। अग्रगामी संदेश ने गत वर्ष नवम्बर, 2012 में तथा इस ही साल 13 मई के अंक में साया किया था कि देश में मध्यावधि चुनाव सम्भव है। हमने यह भी साया किया था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही मध्यावधि चुनाव सम्भव है।
जैसा कि हमने पहिले साया किया था कि लोकसभा के मध्यावधि चुनावों के साथ ही हरियाणा में भी विधानसभा चुनावों की तैयारी चल रही है वहीं अब कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी नई रणनीति के तहत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ लोकसभा के चुनाव तथा हरियाणा विधानसभा चुनावों की तैयारी को अंतिम रूप देने की लगभग तैयारी कर ली है और कांग्रेस हाईकमान इस बात पर भी मंथन कर रहा है कि आंध्रप्रदेश विधानसभा को भी भंग कर वहां भी मध्यावधि चुनाव करवा दिये जायें!
पांच राज्यों, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, नागालैण्ड और दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा और आंध्रप्रदेश की विधानसभाओं तथा लोकसभा के मध्यावधि चुनावों से कांग्रेस को भारी फायदा होने की रणनीतिक सोच के पीछे पार्टी में तर्क यह है कि इन राज्यों से लगभग 120 सांसद चुन कर आते हैं। अगर इन राज्यों की विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा चुनाव भी होते हें तो इन सात प्रदेशों में कांग्रेस ज्यादा संसदीय सीटें जीतने की स्थिति में आजाती है। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ही वर्चस्व है और वहां उसे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल सरीखी पार्टियों से भी मुकाबला करना होगा और यहां कि हार की भरपाई वह अन्य राज्यों में नहीं कर पायेगी! जबकि कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं होगा और वह अन्य गैर हिन्दी भाषी राज्यों व उत्तरपूर्व से भरपाई करने की स्थिति में है।
कांग्रेस इस बार सोनिया गांधी को लोकसभा चुनावों में नहीं उतारने का मानस भी बना रही है। उनके स्थान पर उनकी सीट से प्रियंका गांधी वाड्रा को लोकसभा चुनावों में उतारने की तैयारी की जा रही है। इस ही तरह कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों का यह भी सोच है कि राहुल गांधी को भी लोकसभा चुनावों में ना उलझा कर राज्यसभा के रास्ते संसद में लाया जाये। ऐसा करने से सोनिया गांधी और राहुल गांधी को लोकसभा और सात विधानसभाओं के चुनावों में चुनाव प्रचार का भरपूर समय मिलेगा! वहीं भारतीय जनता पार्टी के पास राष्ट्रीय स्तर का नेतृत्व नहीं होने के कारण और पार्टी के अन्दर घमासान के चलते पार्टी की हालत पतली रहेगी, जिसका फायदा कांग्रेस उठाने से नहीं चूकेगी।
कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार अपनी चुनावी रणनीति में खासकर इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी में अन्दरूनी उठापटक और पार्टी के नेतृत्व की कमजोरियों को अवाम के सामने उजागर करें और भाजपा नेताओं को आरोप-प्रत्यारोपों की दलदल में गहराई तक उतार दें ताकि उनका अवाम से सीधा सम्पर्क टूट जाये!
अब अवाम को देखना यही है कि भाजपा और कांग्रेस के नेता और उनके दुमछल्ले कितना कीचड़ एक दूसरे पर उछालते हैं!