राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वसुन्धरा राजे पर शब्द बाण चलाने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते हैं। चाहे उनके शब्द बाणों के अर्थ से अनर्थ ही क्यों न हो जाये। पिछले दिनों वसुन्धरा राजे ने अशोक गहलोत के एक तीखे शब्द बाण के जवाब में कहा था कि हमने भी चूडियां नहीं पहन रखी है। बस हमारे गहलोत साहब और उनकी फौज फांटे को वसुन्धरा राजे के इन शब्दों में पता नहीं क्या नजर आया कि जोर-जोर से उछलकूद कर हुडदंग मचाने लगे कि वसुन्धरा राजे नारी जाति से माफी मांगे। गहलोत साहब और उनके फौज फांटे को मौका मिल गया मैडमजी को घेरने का! फौरन बयान आया साहब जी का कि यह सम्पूर्ण नारी जाति का अपमान है और अपनी टिकडी थोपी कि एक नारी हो कर वसुन्धरा राजे ने इस तरह की भाषा का प्रयोग कर भारतीय संस्कृति, संस्कारों और सारी मर्यादाओं को तोड़ दिया है, जो उन्हें शोभा नहीं देता है। साहब का कहना था कि भारतीय समाज में चूडी को नारी जाति की अस्मिता और सुहाग से जोड़ कर देखा जाता है।
इस बेतुकी बकवास से खुद गहलोत आम अवाम की नजरों में बौना बन गये हैं। चूडियों को नारी की अस्मिता और सुहाग से जोडने वाले गहलोत साहब जरा बतायें कि जो कुछ उन्होंने कहा है उसका किस सामाजिक या धार्मिक ग्रंथ में उल्लेख है! वे अपनी बाकी बची सारी जिन्दगी ग्रंथों का अध्ययन करेंगे तो भी किसी भी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, मत में चूडियों के नारी के सुहाग के साथ जोडने का कोई उल्लेख नहीं मिलेगा। चलिये इससे एक कदम आगे! गहलोत साहब बतायें कि चूडियों का आविष्कार किस देश में और कब हुआ था? शायद इसका जवाब भी गहलोत साहब के पास नहीं मिलेगा और अगर वे दे सकें तो दें! उनके ज्ञान की हकीकत अवाम के सामने खुल जायेगी। इसलिये हम अशोक गहलोत जैसे ज्ञानी-अज्ञानी पंडित जी से यही कहना चाहेंगे कि वे चुनावों की चटरपटर में स्त्री-पुरूष सम्बन्धों के बीच में न डालें। गहलोत साहब और मैडम वसुन्धरा जी से आम अवाम यही अपेक्षा करता है कि वे एक दूसरे की छीछालेदर करने की नौटंकी से बाज आयें और साफ-साफ बतायें कि पिछले दस सालों में उन्होंने अवाम को मंहगाई, बेराजगारी, भ्रष्टाचार, अनाचार और अफसरशाही, नौकरशाही के राठौडी अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिये क्या किया और क्या करने की योजना है?
पिछले महिने हाथ, कमल, उडनखटोले और तीर वाले राजनेताओं के मुकुट धारण करने तीर-तलवार-भाला भांजने की मुद्राओं के बारे में अग्रगामी संदेश में हमने लिखा था। गहलोत साहब और वसुन्धरा मैडम और उडनखटोले वाले हमारे भाई किरोडीलाल मीणा तथा चंद्रराज सिंघवी ही बता सकते हैं कि भारत के संविधान में या गणतान्त्रिक व्यवस्था में कहां इन चीजों का उल्लेख है? क्या हमारे देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री या अन्य सत्तासीन पदाधिकारी वैधानिक तरीके से इन चीजों को पहिन कर या धारण कर सत्ता की कुर्सी पर आसीन हो सकता है? फिर जनतंत्र-गणतंत्र के स्वंयभूं पहरूये क्यों इन्हें धारण कर भारत गणतंत्र को राजतंत्र, सामन्तवाद के रास्ते पर जाता हुआ बताना चाहते हैं! जवाब दें?
चूडियों को लेकर विवाद शर्मनाक है! यह हर नारी का अपना विवेक या अधिकार है कि वह चूडियां पहिने या न पहिने। जिक्र करना है तो उस विदुषी भारती का करो जिसने शास्त्रर्थ में अपने पति के साथ-साथ आदि शंकराचार्य को भी परास्त किया था। जिक्र करना ही है तो भामती का करो, जिसने अपने पति को ग्रंथ लिखने में समर्पित भाव से सहयोग किया और जब उनके पति को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने उस ग्रंथ का नाम ही भामती रख दिया।
सत्ता प्राप्त करने के लिये छटपटा रहे अशोक गहलोत और वसुन्धरा राजे जोकि चूडियों को लेकर नारी अस्मिता के मुद्दे पर उलझ कर शब्द बाणों की बौछार कर रहे हैं उनसे हम पूछना चाहेंगे कि प्रदेश की राजधानी जयपुर के गांधीनगर स्थित राजकीय शिशु एवं बालिका गृह की नाबालिग बेटियों के साथ आवाज फाउंडेशन द्वारा संचालित आवासीय स्कूल के कारिंदों ने जो दुराचार किया है उस पर उनकी आवाज क्यों नहीं खुल रही है? इन मासूम नाबालिगा बेटियों पर पिछले एक साल से हो रहे जघन्य अत्याचार पर गहलोत साहब की सरकारी साहबों की फौज के मुंह और दिमाग पर ताले क्यों जडे रहे? क्या इस तरह का जघन्य कृत्य राजनेताओं के परिजनों के साथ होता तो क्या वे चुप होकर अपने-अपने दडबों में घुसे रहते जैसे अभी बैठे हैं!
इस बेतुकी बकवास से खुद गहलोत आम अवाम की नजरों में बौना बन गये हैं। चूडियों को नारी की अस्मिता और सुहाग से जोडने वाले गहलोत साहब जरा बतायें कि जो कुछ उन्होंने कहा है उसका किस सामाजिक या धार्मिक ग्रंथ में उल्लेख है! वे अपनी बाकी बची सारी जिन्दगी ग्रंथों का अध्ययन करेंगे तो भी किसी भी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, मत में चूडियों के नारी के सुहाग के साथ जोडने का कोई उल्लेख नहीं मिलेगा। चलिये इससे एक कदम आगे! गहलोत साहब बतायें कि चूडियों का आविष्कार किस देश में और कब हुआ था? शायद इसका जवाब भी गहलोत साहब के पास नहीं मिलेगा और अगर वे दे सकें तो दें! उनके ज्ञान की हकीकत अवाम के सामने खुल जायेगी। इसलिये हम अशोक गहलोत जैसे ज्ञानी-अज्ञानी पंडित जी से यही कहना चाहेंगे कि वे चुनावों की चटरपटर में स्त्री-पुरूष सम्बन्धों के बीच में न डालें। गहलोत साहब और मैडम वसुन्धरा जी से आम अवाम यही अपेक्षा करता है कि वे एक दूसरे की छीछालेदर करने की नौटंकी से बाज आयें और साफ-साफ बतायें कि पिछले दस सालों में उन्होंने अवाम को मंहगाई, बेराजगारी, भ्रष्टाचार, अनाचार और अफसरशाही, नौकरशाही के राठौडी अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिये क्या किया और क्या करने की योजना है?
पिछले महिने हाथ, कमल, उडनखटोले और तीर वाले राजनेताओं के मुकुट धारण करने तीर-तलवार-भाला भांजने की मुद्राओं के बारे में अग्रगामी संदेश में हमने लिखा था। गहलोत साहब और वसुन्धरा मैडम और उडनखटोले वाले हमारे भाई किरोडीलाल मीणा तथा चंद्रराज सिंघवी ही बता सकते हैं कि भारत के संविधान में या गणतान्त्रिक व्यवस्था में कहां इन चीजों का उल्लेख है? क्या हमारे देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री या अन्य सत्तासीन पदाधिकारी वैधानिक तरीके से इन चीजों को पहिन कर या धारण कर सत्ता की कुर्सी पर आसीन हो सकता है? फिर जनतंत्र-गणतंत्र के स्वंयभूं पहरूये क्यों इन्हें धारण कर भारत गणतंत्र को राजतंत्र, सामन्तवाद के रास्ते पर जाता हुआ बताना चाहते हैं! जवाब दें?
चूडियों को लेकर विवाद शर्मनाक है! यह हर नारी का अपना विवेक या अधिकार है कि वह चूडियां पहिने या न पहिने। जिक्र करना है तो उस विदुषी भारती का करो जिसने शास्त्रर्थ में अपने पति के साथ-साथ आदि शंकराचार्य को भी परास्त किया था। जिक्र करना ही है तो भामती का करो, जिसने अपने पति को ग्रंथ लिखने में समर्पित भाव से सहयोग किया और जब उनके पति को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने उस ग्रंथ का नाम ही भामती रख दिया।
सत्ता प्राप्त करने के लिये छटपटा रहे अशोक गहलोत और वसुन्धरा राजे जोकि चूडियों को लेकर नारी अस्मिता के मुद्दे पर उलझ कर शब्द बाणों की बौछार कर रहे हैं उनसे हम पूछना चाहेंगे कि प्रदेश की राजधानी जयपुर के गांधीनगर स्थित राजकीय शिशु एवं बालिका गृह की नाबालिग बेटियों के साथ आवाज फाउंडेशन द्वारा संचालित आवासीय स्कूल के कारिंदों ने जो दुराचार किया है उस पर उनकी आवाज क्यों नहीं खुल रही है? इन मासूम नाबालिगा बेटियों पर पिछले एक साल से हो रहे जघन्य अत्याचार पर गहलोत साहब की सरकारी साहबों की फौज के मुंह और दिमाग पर ताले क्यों जडे रहे? क्या इस तरह का जघन्य कृत्य राजनेताओं के परिजनों के साथ होता तो क्या वे चुप होकर अपने-अपने दडबों में घुसे रहते जैसे अभी बैठे हैं!