राजस्थान में कांग्रेस-भाजपा के सत्ता संघर्ष की चक्की में प्रदेश के आम अवाम की इज्जत आबरू पर भी बन आई है। अवाम पहिले ही मंहगाई, बेरोजागारी, सरकारी कारिंदों के भ्रष्टाचार, दबंगों के अत्याचारों से पीडि़त है। अब राजनेताओं की सत्ता की बागडोर हथियाने की हरकतों के चलते अवाम की बेटियों की इज्जत के साथ खुले आम खिलवाड़ हो रहा है।
कांग्रेस-भाजपा की सत्ता हथियाने की हरचंद कोशिशों के बीच राजस्थान में नौकरशाही बेलगाम हो चुकी है। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं में यह बात गहराई से पैठ गई है कि अगर नौकरशाही को नाराज किया तो उन्हें सत्ता पर काबिज होने की दौड़ से बाहर होना पड़ेगा। यही कारण है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार की प्रशासन पर पकड़ ढीली हो गई है वहीं भाजपा भी नौकरशाही की बेजा हरकतों को नजरन्दाज कर रही है, क्योंकि येन केन प्रकेरण उसे सत्ता हथियानी है। भाजपा और कांग्रेस की सत्ता हथियाने की इस निकृष्ट दौड़ में जनता गौण हो गई। दोनों ही पार्टियों के आकाओं के दिमाग में यह फितूर घुसा हुआ है कि मतदाता तो एक दिन वोट दे कर आपने घर बैठ जायेगा, लेकिन उनके नौकर ही उनकी सत्ता पर पकड़ मजबूत करेंगे!
हालात ये हैं कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के आका अफसरशाहों और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार-कदाचार पर एक शब्द भी बोलने के लिये तैयार नहीं है। हमने जैसा कि पहिले भी लिखा था कि राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस नाम की कोई चिडिया भी नहीं बची है। यहां चुनावी दंगल अशोक गहलोत और वसुन्धरा राजे में बीच में है और हमारे इस कथन की पुष्टी दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं द्वारा पार्टी स्तर पर अपने-अपने पार्टी आकाओं से जाहिर की गई अपनी नाराजगी से हो जाती है। उधर बीच-बीच में उडनखटोला इधर-उधर उड कर गहलोत और श्रीमती वसुन्धरा राजे की चुनावी हवा बिगाड़ता रहता है।
प्रखर समाजवादी चिंतक डॉ.राममनोहर लोहिया ने ठीक ही कहा था कि कांग्रेस और भाजपा को गहरे समन्दर में दफन कर दिया जाना चाहिये। लेकिन सत्ता प्राप्ति की दौड़ में बेशर्मी से बद्हवास होकर दौड रहे कांग्रेसी और भाजपाई नेताओं के लिये तो लगता है कि समन्दर की गहराइयां भी कम पड़ती जा रही है! क्योंकि इन पार्टियों के आकाओं की शर्म का पैमाना पूरी तरह पैंदे बैठ चुका है।
कांग्रेस-भाजपा की सत्ता हथियाने की हरचंद कोशिशों के बीच राजस्थान में नौकरशाही बेलगाम हो चुकी है। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं में यह बात गहराई से पैठ गई है कि अगर नौकरशाही को नाराज किया तो उन्हें सत्ता पर काबिज होने की दौड़ से बाहर होना पड़ेगा। यही कारण है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार की प्रशासन पर पकड़ ढीली हो गई है वहीं भाजपा भी नौकरशाही की बेजा हरकतों को नजरन्दाज कर रही है, क्योंकि येन केन प्रकेरण उसे सत्ता हथियानी है। भाजपा और कांग्रेस की सत्ता हथियाने की इस निकृष्ट दौड़ में जनता गौण हो गई। दोनों ही पार्टियों के आकाओं के दिमाग में यह फितूर घुसा हुआ है कि मतदाता तो एक दिन वोट दे कर आपने घर बैठ जायेगा, लेकिन उनके नौकर ही उनकी सत्ता पर पकड़ मजबूत करेंगे!
हालात ये हैं कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के आका अफसरशाहों और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार-कदाचार पर एक शब्द भी बोलने के लिये तैयार नहीं है। हमने जैसा कि पहिले भी लिखा था कि राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस नाम की कोई चिडिया भी नहीं बची है। यहां चुनावी दंगल अशोक गहलोत और वसुन्धरा राजे में बीच में है और हमारे इस कथन की पुष्टी दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं द्वारा पार्टी स्तर पर अपने-अपने पार्टी आकाओं से जाहिर की गई अपनी नाराजगी से हो जाती है। उधर बीच-बीच में उडनखटोला इधर-उधर उड कर गहलोत और श्रीमती वसुन्धरा राजे की चुनावी हवा बिगाड़ता रहता है।
प्रखर समाजवादी चिंतक डॉ.राममनोहर लोहिया ने ठीक ही कहा था कि कांग्रेस और भाजपा को गहरे समन्दर में दफन कर दिया जाना चाहिये। लेकिन सत्ता प्राप्ति की दौड़ में बेशर्मी से बद्हवास होकर दौड रहे कांग्रेसी और भाजपाई नेताओं के लिये तो लगता है कि समन्दर की गहराइयां भी कम पड़ती जा रही है! क्योंकि इन पार्टियों के आकाओं की शर्म का पैमाना पूरी तरह पैंदे बैठ चुका है।