जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा देने के मुद्दे का विरोध करने वाले राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी पर यही मुद्दा आने वाले वक्त में भारी पडेगा! हम राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के आकाओं को याद दिलादें कि कुछ साल पहिले जब उदयपुर में आरएसएस का सम्मेलन आयोजित किया गया था, उसके ठीक पहिले ऋषभदेव स्थित आदिनाथ भगवान के ऋषभदेव मंदिर मुद्दे को लेकर कट्टर हिन्दुत्ववादियों ने आदिवासियों को भड़का कर जैन समुदाय और आदिवासियों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा करवा कर दुराव की भावना पैदा कर दी थी। नतीजन उदयपुर सम्भाग में जैन समुदाय को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और इस नुकसान की भरपाई आज तक नहीं हो पाई है!
इधर आरएसएस की जैन समुदाय विरोधी हरकतों और उदयपुर सम्भाग में विपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया के विरोधियों द्वारा किये जा रहे दुष्प्रचार से कि गुलाबचंद कटारिया उदयपुर सम्भाग में जैन उम्मीदवार खड़े कर भाजपा को हराने का प्रयास कर रहे हैं, जैन समुदाय सकते में है और आरएसएस ओर भाजपा के कट्टर हिन्दुत्वपंथी तकबे की इन करतूतों से सख्त नाराज है। इस नाराजगी का फायदा निश्चित तौर पर कांग्रेस उठायेगी ही, लेकिन सीबीआई द्वारा मुंबई की एक अदालत में गुलाबचंद कटारिया के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल किये जाने से जो नाराजगी जैन समुदाय की भाजपा से थी वह अब कांग्रेस की तरफ शिफ्ट होती जा रही है।
जैन समुदाय में यह गहराई से पैठने लगा है कि कांग्रेस और भाजपा एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। एक नागनाथ तो दूसरा सांपनाथ! जैन समुदाय के लोगों में यह भी सोच पनपने लगा है कि जो भी दल सत्ता में आता है, इस समुदाय के बिल्डरों, भूमाफियाओं, पूंजीपतियों, इजारेदारों और टैक्स चोरों को गले लगा लेता है और आम जैन समुदाय को तिरस्कृत कर देता है! भाजपा और कांग्रेस के राजनेताओं की सरपरस्ती के चलते खुद इस समाज के पूंजीपति, इजारेदार, बिल्डर, भूमाफिया और टैक्स चोर जो ज्यादातर जैन समाज की धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे हैं, वे भी समाज के मध्यम, निम्रमध्यम एवं गरीब तकबे को तिरस्कृत समुदाय की नजर से देखते हैं। नतीजन आज जैन समुदाय के लगभग 70 प्रतिशत लोग अच्छी और मुफ्त शिक्षा तथा रोजगार के लिये तरस कर रह गये हैं। यही नहीं पांच हजार साल की सांस्कृतिक-सामाजिक विरासत को अपने आप में समेटे इस जैन समुदाय के लिये सांस्कृतिक-सामाजिक व साहित्य अकादमी का गठन तक सरकार ने नहीं किया है, जबकि मात्र 65 साल पहिले राजस्थान में आये सिंधी समुदाय के लिये सिंधी अकादमी का वर्षों पूर्व ही गठन किया जा चुका है।
आरएसएस पृष्ठभूमि के भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया के मामले में भी हम देखें तो जैन समुदाय कटारिया की सम्भावित गिरफ्तारी से उद्वेलित नहीं है। कारण साफ है कि कटारिया ने आम जैन समुदाय के मध्यम, निम्र मध्यम एवं गरीब तकबे के लिये आखीर किया ही क्या है? जो यह समुदाय उनको सपोर्ट करे! कटारिया के दिमाग में भी आरएसएस और भाजपा ठूंस-ठूंस कर भरे हैं। अब भाजपा और संघ ही आयें आगे उन्हें बचाने के लिये। जो राजनैतिक दल और राजनेता जैन समुदाय के वोटों से जीत कर उन्हें तिरस्कृत करता हो, ऐसे दल और राजनेता को वोट और सपोर्ट देने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। यह बात अब जैन समुदाय के पीडि़तों के दिमाग में गहराई से पैठने लगी है।
इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी और उसके आला नेताओं को भी गौरा से सोचना ही होगा। मात्र सोचने भर से ही काम नहीं चलेगा! हकीकत को समझना और उस पर सार्थक रूप से अमल भी करना होगा, वर्ना कांग्रेस को भी भाजपा के रास्ते चलने के लिये तैयार रहना चाहिये!
हमें इस बात से संतोष होना ही चाहिये कि अब आम जैन समुदाय में राजनैतिक सोच मजबूत होने लगा है। इस समुदाय में राजनैतिक सोच मजबूत होने लगा है। इस समुदाय के मतदाताओं को अपने वोट की कीमत का भी अहसास अब गहराई से होने लगा है। यही नहीं जैन समुदाय अब अपने बीच के ऐसे संघर्षशील जुझारू लोगों को तलाशने लगा है, जो निस्वार्थ भवना से समाज के पीडि़त, दबे कुचले मध्यम व निम्र मध्यम वर्ग के लिये संघर्ष करने का सोच रखता हो!
जलमहल प्रकरण हो या फिर सोहराबुद्दीन से जुड़ा कटारिया प्रकरण हो अथवा पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के समय में जमीन घोटाले से जुड़े बरडिया बंधु हों या फिर अपने आप को समाज, जैन समुदाय का अगड़ा समझने वाले सुराना, गोलेछा, चौधरी, कोठारी, मोहनोत ही क्यों न हो, सभी को समग्र समाजहित में एकजुट होकर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक अधिकार दिलवाने के लिये संघर्ष हेतु खुलकर सामने आ जाना चाहिये। इन समाज के स्वंयभूं अगड़ों को चेत जाने का यही सही समय है अन्यथा बाद में पछताने के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। क्योंकि जैन समुदाय का पीडि़त शोषित वर्ग जब अपने बूते पर खड़ा होगा तब ये स्वंयभूं अगड़े ढूंढे से भी कहीं नहीं मिलेंगे!
इधर आरएसएस की जैन समुदाय विरोधी हरकतों और उदयपुर सम्भाग में विपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया के विरोधियों द्वारा किये जा रहे दुष्प्रचार से कि गुलाबचंद कटारिया उदयपुर सम्भाग में जैन उम्मीदवार खड़े कर भाजपा को हराने का प्रयास कर रहे हैं, जैन समुदाय सकते में है और आरएसएस ओर भाजपा के कट्टर हिन्दुत्वपंथी तकबे की इन करतूतों से सख्त नाराज है। इस नाराजगी का फायदा निश्चित तौर पर कांग्रेस उठायेगी ही, लेकिन सीबीआई द्वारा मुंबई की एक अदालत में गुलाबचंद कटारिया के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल किये जाने से जो नाराजगी जैन समुदाय की भाजपा से थी वह अब कांग्रेस की तरफ शिफ्ट होती जा रही है।
जैन समुदाय में यह गहराई से पैठने लगा है कि कांग्रेस और भाजपा एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। एक नागनाथ तो दूसरा सांपनाथ! जैन समुदाय के लोगों में यह भी सोच पनपने लगा है कि जो भी दल सत्ता में आता है, इस समुदाय के बिल्डरों, भूमाफियाओं, पूंजीपतियों, इजारेदारों और टैक्स चोरों को गले लगा लेता है और आम जैन समुदाय को तिरस्कृत कर देता है! भाजपा और कांग्रेस के राजनेताओं की सरपरस्ती के चलते खुद इस समाज के पूंजीपति, इजारेदार, बिल्डर, भूमाफिया और टैक्स चोर जो ज्यादातर जैन समाज की धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे हैं, वे भी समाज के मध्यम, निम्रमध्यम एवं गरीब तकबे को तिरस्कृत समुदाय की नजर से देखते हैं। नतीजन आज जैन समुदाय के लगभग 70 प्रतिशत लोग अच्छी और मुफ्त शिक्षा तथा रोजगार के लिये तरस कर रह गये हैं। यही नहीं पांच हजार साल की सांस्कृतिक-सामाजिक विरासत को अपने आप में समेटे इस जैन समुदाय के लिये सांस्कृतिक-सामाजिक व साहित्य अकादमी का गठन तक सरकार ने नहीं किया है, जबकि मात्र 65 साल पहिले राजस्थान में आये सिंधी समुदाय के लिये सिंधी अकादमी का वर्षों पूर्व ही गठन किया जा चुका है।
आरएसएस पृष्ठभूमि के भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया के मामले में भी हम देखें तो जैन समुदाय कटारिया की सम्भावित गिरफ्तारी से उद्वेलित नहीं है। कारण साफ है कि कटारिया ने आम जैन समुदाय के मध्यम, निम्र मध्यम एवं गरीब तकबे के लिये आखीर किया ही क्या है? जो यह समुदाय उनको सपोर्ट करे! कटारिया के दिमाग में भी आरएसएस और भाजपा ठूंस-ठूंस कर भरे हैं। अब भाजपा और संघ ही आयें आगे उन्हें बचाने के लिये। जो राजनैतिक दल और राजनेता जैन समुदाय के वोटों से जीत कर उन्हें तिरस्कृत करता हो, ऐसे दल और राजनेता को वोट और सपोर्ट देने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। यह बात अब जैन समुदाय के पीडि़तों के दिमाग में गहराई से पैठने लगी है।
इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी और उसके आला नेताओं को भी गौरा से सोचना ही होगा। मात्र सोचने भर से ही काम नहीं चलेगा! हकीकत को समझना और उस पर सार्थक रूप से अमल भी करना होगा, वर्ना कांग्रेस को भी भाजपा के रास्ते चलने के लिये तैयार रहना चाहिये!
हमें इस बात से संतोष होना ही चाहिये कि अब आम जैन समुदाय में राजनैतिक सोच मजबूत होने लगा है। इस समुदाय में राजनैतिक सोच मजबूत होने लगा है। इस समुदाय के मतदाताओं को अपने वोट की कीमत का भी अहसास अब गहराई से होने लगा है। यही नहीं जैन समुदाय अब अपने बीच के ऐसे संघर्षशील जुझारू लोगों को तलाशने लगा है, जो निस्वार्थ भवना से समाज के पीडि़त, दबे कुचले मध्यम व निम्र मध्यम वर्ग के लिये संघर्ष करने का सोच रखता हो!
जलमहल प्रकरण हो या फिर सोहराबुद्दीन से जुड़ा कटारिया प्रकरण हो अथवा पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के समय में जमीन घोटाले से जुड़े बरडिया बंधु हों या फिर अपने आप को समाज, जैन समुदाय का अगड़ा समझने वाले सुराना, गोलेछा, चौधरी, कोठारी, मोहनोत ही क्यों न हो, सभी को समग्र समाजहित में एकजुट होकर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक अधिकार दिलवाने के लिये संघर्ष हेतु खुलकर सामने आ जाना चाहिये। इन समाज के स्वंयभूं अगड़ों को चेत जाने का यही सही समय है अन्यथा बाद में पछताने के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। क्योंकि जैन समुदाय का पीडि़त शोषित वर्ग जब अपने बूते पर खड़ा होगा तब ये स्वंयभूं अगड़े ढूंढे से भी कहीं नहीं मिलेंगे!