जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त होने में असली रूकावट दरअसल श्वेताम्बर जैन समाज के ही कुछ पूंजीपति, सरमायेदार, बिल्डर और भूमाफिया ही हैं। कालेधन के बूते पर समाज के अगुआ बने बैठे इन बेशर्म पूंजीपतियों ने श्वेताम्बर जैन समुदाय को गरीब और अमीर धडों में तो बांटा ही है लेकिन गरीब परिवारों को भी दो धडों में बांट दिया है। एक धडा गरीब होने और इन पूंजीपति, भूमाफियाओं, बिल्डरों द्वारा स्वामीवात्सल्य और अन्य तरीकों से दिये जा रहे आर्थिक लालच के दबाव में आकर अमीरों की गुलामी मंजूर कर उनके गुणगान गाने में जुटा है, वहीं दूसरी ओर बचे हुए स्वाभीमानी मध्यम और निम्र मध्यम वर्ग को यह असरदार तकबा परेशान करने और समाज में तिरस्कृत करने में जुटा है। एक खतरनाक चलन जो जैन समुदाय में गहराई से पैठ गया है, वह है अमीर की बेटी अमीर के घर!
जैन समुदाय में अब साफ-साफ यह हकीकत उजागर होने लगी है कि मध्यम एवं निम्र मध्यम वर्ग के युवक को चाहे वह कितना भी क्वालिफाइड क्यों न हो उसे अमीर परिवार की लड़की किसी भी सूरत में नहीं ब्याही जाती है। जबकि अमीर परिवार के लड़के को चाहे वह अंगूठा छाप ही हो, अमीर परिवार की उससे ज्यादा पढ़ी लिखी लड़कियों की कतार लगी रहती है। श्वेताम्बर समुदाय में एक ओर खतरनाक चलन जारी है। अगर जैन समुदाय के मध्यम वर्ग, निम्र मध्यम वर्ग और गरीब तकबे के लड़के-लड़कियों के विवाह में अड़चन आती है तो उन्हें सन्यास लेने के लिये प्रेरित किया जाता है। देश में श्वेताम्बर जैन समाज के लिये भी युवा साधु-साध्वियां है, अगर उनका सर्वे करवाया जाये कि सन्यास लेने से पूर्व जिन परिवारों से ये लोग आये थे उन परिवारों की आर्थिक स्थिति उस वक्त कैसी थी, तो एक शोचनीय हकीकत सामने आयेगी।
अभी पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष और राजस्थान की मुख्यमंत्री की प्रबल दावेदार श्रीमती वसुन्धरा राजे ने धौलपुर जिले के सरमथुरा कस्बे में राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आडे हाथों लेकर कहा कि प्रदेश को गहलोत, मेहणोत और कोठारी ने लूटा!
अशोक गहलोत के अलावा मेहणोत और कोठारी जैन श्वेताम्बर समुदाय से हैं। नवरत्नमल कोठारी बहुचर्चित जलमहल लीज प्रकरण में गहराई तक अटके हैं। ये वहीं नवरत्नमल कोठारी हैं जिन्होंने वर्षों से स्थानकवासी जैन समुदाय की सुबोध शिक्षण संस्थाओं पर कब्जा जमा रखा है। इन शिक्षण संस्थाओं को अपनी घर की दुकान बना रखा है। महावीर कैंसर सोसायटी और अस्पताल इनके और अशोक गहलोत साहब के परिजनों की शानोशौकत बढ़ाने का एक आसरा बन कर रह गया है। मेहणोत साहब के लिेय भी कुछ लिखना बेकार है! क्योंकि अपने आप को जैन समाज का अगडा और समाजसेवी का चौला ओढ़ कर सरकारी अमले से अपने निजी व्यावसायिक कामकाज निकलवाने में इन्हें शर्म तो आयेगी नहीं। हां, यह जरूर कहेंगे कि जैन समुदाय के लोग सम्पन्न परिवार हैं और इन्हें अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जे की जरूरत नहीं है।
श्वेताम्बर समाज में ये दो ही पूंजीपति नहीं हैं! सुराना, गोलछा, मेहता, चौधरी और न जाने कितने पूंजीपति, बिल्डर, भूमाफिया हैं जो श्वेताम्बर जैन समाज की विभिन्न संस्थाओं पर नाग/कोबरे की तरह फन फैला कर बैठे हैं। इनकी क्लास ली जाये और इनसे पूछा जाये कि वे जैन संस्कृति के इतिहास के बारे में कितना जानते हैं? तो इन बेशर्मों की हवा निकल जायेगी। ये तो सिर्फ इतना ही जानते हैं कि धर्म की आड़ में अपनी दौलत के बूते पर साधु-साध्वियों को पटाओ, चौमासा करवाओ, छक पर स्वामीवात्सल्य के नाम पर लोगों को मिष्ठान भोजन करवाओं और वाह-वाही लूटो और समाजों पर नाग की तरह फन तान कर जम कर बैठो! अगर मर भी जायें तो उनके बैटे-पोते कमान सम्भाल लें या फिर कोई दूसरा रिश्तेदार या चमचा दुमछल्ला!
यही वजह है कि जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने की मुहिम को सबसे ज्यादा नुकसान श्वेताम्बर जैन समाज के ये बेशर्म पूंजीपतियों, सरमायेदारो, बिल्डर, भूमाफिया ही पहुंचा रहे हैं। अपनी पोल खुलती नजर आती देख अब इन्होंने अपने साथ अन्य हिन्दु और मुसलमान समुदाय के कुछ लोगों के जरिये भी विरोध करवाना शुरू कर दिया है। लेकिन आम जैन समुदाय अपने अल्पसंख्यक के संवैधानिक दर्जे को प्राप्त करने के लिये जागरूक होता जा रहा है। देश के संवैधानिक ढांचे में वह अब अपना वाजिब हक पाने के लिये संघर्षरत होता जा रहा है।
अब समग्र जैन समाज में अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त करने के लिये संघर्ष करने की एक ललक पैदा हो रही है। अगर जैन समाज के स्वंयभूं अगडे बन कर अपने निजी एवं व्यवसायिक फायदे उठाने वाले पूंजीपतियों, सरमायेदारों, भूमाफियाओं, बिल्डरों और कालेधन के कुबेरों में छोडी भी शर्म होगी तो आम जैन समुदाय की अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलाने की मांग के समर्थन में वे अपने हितों को त्याग कर खुले रूप से मैदान में आयेंगे।
जैन समुदाय में अब साफ-साफ यह हकीकत उजागर होने लगी है कि मध्यम एवं निम्र मध्यम वर्ग के युवक को चाहे वह कितना भी क्वालिफाइड क्यों न हो उसे अमीर परिवार की लड़की किसी भी सूरत में नहीं ब्याही जाती है। जबकि अमीर परिवार के लड़के को चाहे वह अंगूठा छाप ही हो, अमीर परिवार की उससे ज्यादा पढ़ी लिखी लड़कियों की कतार लगी रहती है। श्वेताम्बर समुदाय में एक ओर खतरनाक चलन जारी है। अगर जैन समुदाय के मध्यम वर्ग, निम्र मध्यम वर्ग और गरीब तकबे के लड़के-लड़कियों के विवाह में अड़चन आती है तो उन्हें सन्यास लेने के लिये प्रेरित किया जाता है। देश में श्वेताम्बर जैन समाज के लिये भी युवा साधु-साध्वियां है, अगर उनका सर्वे करवाया जाये कि सन्यास लेने से पूर्व जिन परिवारों से ये लोग आये थे उन परिवारों की आर्थिक स्थिति उस वक्त कैसी थी, तो एक शोचनीय हकीकत सामने आयेगी।
अभी पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष और राजस्थान की मुख्यमंत्री की प्रबल दावेदार श्रीमती वसुन्धरा राजे ने धौलपुर जिले के सरमथुरा कस्बे में राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आडे हाथों लेकर कहा कि प्रदेश को गहलोत, मेहणोत और कोठारी ने लूटा!
अशोक गहलोत के अलावा मेहणोत और कोठारी जैन श्वेताम्बर समुदाय से हैं। नवरत्नमल कोठारी बहुचर्चित जलमहल लीज प्रकरण में गहराई तक अटके हैं। ये वहीं नवरत्नमल कोठारी हैं जिन्होंने वर्षों से स्थानकवासी जैन समुदाय की सुबोध शिक्षण संस्थाओं पर कब्जा जमा रखा है। इन शिक्षण संस्थाओं को अपनी घर की दुकान बना रखा है। महावीर कैंसर सोसायटी और अस्पताल इनके और अशोक गहलोत साहब के परिजनों की शानोशौकत बढ़ाने का एक आसरा बन कर रह गया है। मेहणोत साहब के लिेय भी कुछ लिखना बेकार है! क्योंकि अपने आप को जैन समाज का अगडा और समाजसेवी का चौला ओढ़ कर सरकारी अमले से अपने निजी व्यावसायिक कामकाज निकलवाने में इन्हें शर्म तो आयेगी नहीं। हां, यह जरूर कहेंगे कि जैन समुदाय के लोग सम्पन्न परिवार हैं और इन्हें अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जे की जरूरत नहीं है।
श्वेताम्बर समाज में ये दो ही पूंजीपति नहीं हैं! सुराना, गोलछा, मेहता, चौधरी और न जाने कितने पूंजीपति, बिल्डर, भूमाफिया हैं जो श्वेताम्बर जैन समाज की विभिन्न संस्थाओं पर नाग/कोबरे की तरह फन फैला कर बैठे हैं। इनकी क्लास ली जाये और इनसे पूछा जाये कि वे जैन संस्कृति के इतिहास के बारे में कितना जानते हैं? तो इन बेशर्मों की हवा निकल जायेगी। ये तो सिर्फ इतना ही जानते हैं कि धर्म की आड़ में अपनी दौलत के बूते पर साधु-साध्वियों को पटाओ, चौमासा करवाओ, छक पर स्वामीवात्सल्य के नाम पर लोगों को मिष्ठान भोजन करवाओं और वाह-वाही लूटो और समाजों पर नाग की तरह फन तान कर जम कर बैठो! अगर मर भी जायें तो उनके बैटे-पोते कमान सम्भाल लें या फिर कोई दूसरा रिश्तेदार या चमचा दुमछल्ला!
यही वजह है कि जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने की मुहिम को सबसे ज्यादा नुकसान श्वेताम्बर जैन समाज के ये बेशर्म पूंजीपतियों, सरमायेदारो, बिल्डर, भूमाफिया ही पहुंचा रहे हैं। अपनी पोल खुलती नजर आती देख अब इन्होंने अपने साथ अन्य हिन्दु और मुसलमान समुदाय के कुछ लोगों के जरिये भी विरोध करवाना शुरू कर दिया है। लेकिन आम जैन समुदाय अपने अल्पसंख्यक के संवैधानिक दर्जे को प्राप्त करने के लिये जागरूक होता जा रहा है। देश के संवैधानिक ढांचे में वह अब अपना वाजिब हक पाने के लिये संघर्षरत होता जा रहा है।
अब समग्र जैन समाज में अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त करने के लिये संघर्ष करने की एक ललक पैदा हो रही है। अगर जैन समाज के स्वंयभूं अगडे बन कर अपने निजी एवं व्यवसायिक फायदे उठाने वाले पूंजीपतियों, सरमायेदारों, भूमाफियाओं, बिल्डरों और कालेधन के कुबेरों में छोडी भी शर्म होगी तो आम जैन समुदाय की अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलाने की मांग के समर्थन में वे अपने हितों को त्याग कर खुले रूप से मैदान में आयेंगे।