नई दिल्ली/जयपुर (अग्रगामी) लोकसभा के मध्यावधि चुनावों की घोषणा संसद के आगामी मानसून सत्र के तत्काल बाद की जाने की पूरी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। सूत्रों की माने तो इस दौरान देश में मतदाता सूचियों का रिवीजन भी हो जायेगा और चुनाव आयोग को तैयारी का भी पूरा मौका मिल जायेगा।
पांच राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और नागालैण्ड की विधानसभाओं के चुनाव आगामी नवम्बर, 2013 में निर्धारित हैं। वहीं हरियाणा की हुड्डा सरकार चाहती है कि हरियाणा विधानसभा के चुनाव भी लोकसभा चुनावों के साथ ही हो जायें! उधर आंध्रप्रदेश विधानसभा के मध्यावधि चुनाव करवाना भी कांग्रेस के लिये मजबूरी बनता जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड और कर्नाटक में कांग्रेस की चुनावी जीत का ग्लेमर भी ज्यादा वक्त नहीं टिकने वाला है। इन तीन प्रदेशों में हुई कांग्रेस की जीत का फायदा भुनाने के लिये भी आवश्यक है कि लोकसभा के चुनाव समय से पहिले हों।
अगर कांग्रेस पार्टी के सुपरबास लोकसभा के चुनाव नवम्बर, 2013 में कराने के लिये तैयार होते हैं तो इसके साथ ही हरियाणा और आंध्रप्रदेश विधानसभा चुनाव भी होना निश्चित है। सात विधानसभाओं के चुनावों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों के होने से कांग्रेस को बढत के साथ फायदा होना निश्चित है। पर यह नहीं कहा जा सकता है कि मुख्य विपक्षी दल भाजपा को कितना नुकसान होगा!
कांग्रेस आलाकमान सात राज्यों, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, नागालैण्ड तथा आंध्रप्रदेश से ज्यादा से ज्यादा सीटें हांसिल करने के प्रयास में है ताकि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, उडीसा, तमिलनाडू तथा महाराष्ट्र में होने वाले घाटे को पूरा कर सके! गुजरात, असम एवं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में मिलने वाली सीटें कांग्रेस के लिये बोनस के रूप में मानी जा रही है। अगर कांग्रेस का उपरोक्त सात राज्यों के लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन अच्छा रहता है तो पार्टी केंद्रीय नेतृत्व एक-दो राज्यों में विधानसभा चुनावों में पार्टी को बलि का बकरा बनाने के लिये भी तैयार है। अत: साफ है कि कांग्रेस का पूरा ध्यान केंद्र में सत्ता पाना है और इसके लिये वह पूरी कीमत चुनाने के लिये भी तैयार लगती है!
छत्तीसगढ़ में सुकमा जिले की दरभा-जीरमधाट क्षेत्र में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर गत शनिवार को हुए कथित माओवादियों के हमले के कारण भी राज्य में भाजपा के मुकाबले कांग्रस की स्थिति सुधरी है। हालांकि माओवादियों के इस हमले से चुनावी गणित का कोई लेना देना नहीं है, फिर भी कांग्रेस की कोशिश यही है कि इस मामले को राजनैतिक रूप से भुनाया जाये। सोनिया गांधी और डॉ.मनमोहन सिंह की रायपुर यात्रा को राजनैतिक हलकों में इस ही परिपेक्ष्य में देखा जा रहा है।
इस बार एक खास बात भी देखने को मिल सकती है। वाम जनवादी दल अपनी एक रणनीति और क्षमता के आधार पर ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार चुनावों में उतारने के मूड में लगते हैं। जीत-हार का गणित तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा, लेकिन यह निश्चित है कि कांग्रेस-भाजपा के वोट बैंक पर इसका काफी असर पड़ सकता है। दोनों ही पार्टियां इस को लेकर काफी चिन्तित हैं। इन सब के मद्देनजर लोकसभा के चुनाव नवम्बर, 2013 में होना लगभव निश्चित है और सभी राजनैतिक दल इस आशंका के मद्देनजर चुनावों की तैयारियों में जुटते जा रहे हैं।
पांच राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और नागालैण्ड की विधानसभाओं के चुनाव आगामी नवम्बर, 2013 में निर्धारित हैं। वहीं हरियाणा की हुड्डा सरकार चाहती है कि हरियाणा विधानसभा के चुनाव भी लोकसभा चुनावों के साथ ही हो जायें! उधर आंध्रप्रदेश विधानसभा के मध्यावधि चुनाव करवाना भी कांग्रेस के लिये मजबूरी बनता जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड और कर्नाटक में कांग्रेस की चुनावी जीत का ग्लेमर भी ज्यादा वक्त नहीं टिकने वाला है। इन तीन प्रदेशों में हुई कांग्रेस की जीत का फायदा भुनाने के लिये भी आवश्यक है कि लोकसभा के चुनाव समय से पहिले हों।
अगर कांग्रेस पार्टी के सुपरबास लोकसभा के चुनाव नवम्बर, 2013 में कराने के लिये तैयार होते हैं तो इसके साथ ही हरियाणा और आंध्रप्रदेश विधानसभा चुनाव भी होना निश्चित है। सात विधानसभाओं के चुनावों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों के होने से कांग्रेस को बढत के साथ फायदा होना निश्चित है। पर यह नहीं कहा जा सकता है कि मुख्य विपक्षी दल भाजपा को कितना नुकसान होगा!
कांग्रेस आलाकमान सात राज्यों, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, नागालैण्ड तथा आंध्रप्रदेश से ज्यादा से ज्यादा सीटें हांसिल करने के प्रयास में है ताकि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, उडीसा, तमिलनाडू तथा महाराष्ट्र में होने वाले घाटे को पूरा कर सके! गुजरात, असम एवं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में मिलने वाली सीटें कांग्रेस के लिये बोनस के रूप में मानी जा रही है। अगर कांग्रेस का उपरोक्त सात राज्यों के लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन अच्छा रहता है तो पार्टी केंद्रीय नेतृत्व एक-दो राज्यों में विधानसभा चुनावों में पार्टी को बलि का बकरा बनाने के लिये भी तैयार है। अत: साफ है कि कांग्रेस का पूरा ध्यान केंद्र में सत्ता पाना है और इसके लिये वह पूरी कीमत चुनाने के लिये भी तैयार लगती है!
छत्तीसगढ़ में सुकमा जिले की दरभा-जीरमधाट क्षेत्र में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर गत शनिवार को हुए कथित माओवादियों के हमले के कारण भी राज्य में भाजपा के मुकाबले कांग्रस की स्थिति सुधरी है। हालांकि माओवादियों के इस हमले से चुनावी गणित का कोई लेना देना नहीं है, फिर भी कांग्रेस की कोशिश यही है कि इस मामले को राजनैतिक रूप से भुनाया जाये। सोनिया गांधी और डॉ.मनमोहन सिंह की रायपुर यात्रा को राजनैतिक हलकों में इस ही परिपेक्ष्य में देखा जा रहा है।
इस बार एक खास बात भी देखने को मिल सकती है। वाम जनवादी दल अपनी एक रणनीति और क्षमता के आधार पर ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार चुनावों में उतारने के मूड में लगते हैं। जीत-हार का गणित तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा, लेकिन यह निश्चित है कि कांग्रेस-भाजपा के वोट बैंक पर इसका काफी असर पड़ सकता है। दोनों ही पार्टियां इस को लेकर काफी चिन्तित हैं। इन सब के मद्देनजर लोकसभा के चुनाव नवम्बर, 2013 में होना लगभव निश्चित है और सभी राजनैतिक दल इस आशंका के मद्देनजर चुनावों की तैयारियों में जुटते जा रहे हैं।