अपनी जान की भीख मांगने वाले कांग्रेसी नेता महेन्द्र कर्मा के शरीर पर लगभग एक सौ गोलियां दाग कर मार डाला गया। छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे महेन्द्र कर्मा आदिवासियों की नजर में उनके कट्टर दुश्मन रहे हैं। महेन्द्र कर्मा को जैड श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध करवाई गई थी।
ये वही महेन्द्र कर्मा हैं जिसने 1990 के दशक के मध्य में प्रदेश में जन जागरण अभियान चला कर आदिवासियों में फूट डालने की साजिश रची थी। वर्ष 2005 में इन्ही महेन्द्र कर्मा ने सलवा जुडूम की आधारशिला रख कर आदिवासियों में फूट डाली और उन्हें आपस में लडवाया। नतीजन छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के आदिवासी जिलों में आदिवासी ही आपस में भिड गये और हजारों आदिवासियों को मौत के आगोश में जाना पड़ा! सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सलवा जुडूम को गैर कानूनी घोषित करने के बाद आदिवासी महेन्द्र कर्मा से बदला लेने के लिये लामबद्ध थे। ज्ञातव्य रहे कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेसी नेता अजित जोगी भी सलवा जुडूम के सख्त विरोधी थे।
अभी तक मीडिया में साया हुए समाचारों से यह तो साफ होता जा रहा है कि छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले की दरभा-जीरम घाट क्षेत्र में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमले का मुख्य कारण सलवा जुडूम का किंगपिन महेन्द्र कर्मा रहा है। एक अन्य कांग्रेसी नेता गौतम भी छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के दरभा-जीरम घाट के पास कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा जोकि सुकमा से केशलूर लौट रही थी पर हमले का सबब हो सकता है।
कांग्रेस माओवादियों बनाम नक्सलियों बनाम आदिवासियों के इस हमले को राजनैतिक स्वरूप दे कर अपनी केंद्र की डॉ.मनमोहन सिंह सरकार की करतूतों को छुपाना चाहती है। केंद्र सरकार द्वारा नक्सलवादियों को कुचलने के लिये 1800 करोड़ रूपये की अवाम के खून-पसीने की कमाई से गठित कोबरा फोर्स के अत्याचारों से पीडि़त आदिवासियों की अगर सुनवाई समय पर हो जाती तो इस तरह का हादसा शायद नहीं होता!
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की हजारों करोड़ रूपये की अकूत प्राकृतिक सम्पदाओं पर देश के अरबपतियों, सरमायेदारों की नजर है और वे अमरीकी पूंजीवाद की गुलाम कांग्रेस और भाजपा के सत्ताधीशों की मदद से आदिवासियों को उनके जल, जंगल और जमीन से बेदखल कर इस अकूत प्राकृतिक सम्पदा पर कब्जा करना चाहते हैं। स्वंय भूं आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा ने पूंजीपतियों की इस साजिश को अन्जाम दिलवाने के लिये 1990 के दशक के मध्य में जनजागरण अभियान और 2005 में सलवा जुडूम की योजना की शुरूआत की। लेकिन आदिवासियों के पुरजोर विरोध और सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद अरबपति पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली उनकी दोनों करतूतें फ्लाप शो बन कर रह गई।
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के दरभा-जीरमघाट के पास हुए कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमले को जो लोग राजनीति का चश्मा लगा कर देख रहे हैं उन्हें शर्म आनी चाहिये असलियत से अपना मुंह छुपाने के लिये!
आज भी डॉ.मनमोहन सिंह की सरकार के पास मौका है कि वे देश में गहराई से पैठ रही आदिवासी जन आक्रोश की आग को शांत करने के लिये कोबरा फोर्स के जरिये आतंक फैला कर आदिवासियों की आवाज दबाने के स्थान पर इस गम्भीर समस्या का समाधान बातचीत के जरिये निकालने की नीति पर आ जाये। डॉ.मनमोहन सिंह को साफ-साफ समझ लेना चाहिये कि वे एक गणतंत्र देश के प्रधानमंत्री है और इस देश में जनता के हितों की रक्षा के लिये उन्हें प्रधानमंत्री बनाया है! उन्हें यह भी समझ लेना चाहिये कि अवाम पर फौज और पैरामिलीट्री के जरिये आतंक फैला कर शासन नहीं किया जा सकता है। क्योंकि ऐसी स्थिति में देश सिर्फ खूनी क्रान्ति के रास्ते पर अग्रसर होगा।
ये वही महेन्द्र कर्मा हैं जिसने 1990 के दशक के मध्य में प्रदेश में जन जागरण अभियान चला कर आदिवासियों में फूट डालने की साजिश रची थी। वर्ष 2005 में इन्ही महेन्द्र कर्मा ने सलवा जुडूम की आधारशिला रख कर आदिवासियों में फूट डाली और उन्हें आपस में लडवाया। नतीजन छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के आदिवासी जिलों में आदिवासी ही आपस में भिड गये और हजारों आदिवासियों को मौत के आगोश में जाना पड़ा! सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सलवा जुडूम को गैर कानूनी घोषित करने के बाद आदिवासी महेन्द्र कर्मा से बदला लेने के लिये लामबद्ध थे। ज्ञातव्य रहे कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेसी नेता अजित जोगी भी सलवा जुडूम के सख्त विरोधी थे।
अभी तक मीडिया में साया हुए समाचारों से यह तो साफ होता जा रहा है कि छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले की दरभा-जीरम घाट क्षेत्र में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमले का मुख्य कारण सलवा जुडूम का किंगपिन महेन्द्र कर्मा रहा है। एक अन्य कांग्रेसी नेता गौतम भी छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के दरभा-जीरम घाट के पास कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा जोकि सुकमा से केशलूर लौट रही थी पर हमले का सबब हो सकता है।
कांग्रेस माओवादियों बनाम नक्सलियों बनाम आदिवासियों के इस हमले को राजनैतिक स्वरूप दे कर अपनी केंद्र की डॉ.मनमोहन सिंह सरकार की करतूतों को छुपाना चाहती है। केंद्र सरकार द्वारा नक्सलवादियों को कुचलने के लिये 1800 करोड़ रूपये की अवाम के खून-पसीने की कमाई से गठित कोबरा फोर्स के अत्याचारों से पीडि़त आदिवासियों की अगर सुनवाई समय पर हो जाती तो इस तरह का हादसा शायद नहीं होता!
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की हजारों करोड़ रूपये की अकूत प्राकृतिक सम्पदाओं पर देश के अरबपतियों, सरमायेदारों की नजर है और वे अमरीकी पूंजीवाद की गुलाम कांग्रेस और भाजपा के सत्ताधीशों की मदद से आदिवासियों को उनके जल, जंगल और जमीन से बेदखल कर इस अकूत प्राकृतिक सम्पदा पर कब्जा करना चाहते हैं। स्वंय भूं आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा ने पूंजीपतियों की इस साजिश को अन्जाम दिलवाने के लिये 1990 के दशक के मध्य में जनजागरण अभियान और 2005 में सलवा जुडूम की योजना की शुरूआत की। लेकिन आदिवासियों के पुरजोर विरोध और सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद अरबपति पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली उनकी दोनों करतूतें फ्लाप शो बन कर रह गई।
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के दरभा-जीरमघाट के पास हुए कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमले को जो लोग राजनीति का चश्मा लगा कर देख रहे हैं उन्हें शर्म आनी चाहिये असलियत से अपना मुंह छुपाने के लिये!
आज भी डॉ.मनमोहन सिंह की सरकार के पास मौका है कि वे देश में गहराई से पैठ रही आदिवासी जन आक्रोश की आग को शांत करने के लिये कोबरा फोर्स के जरिये आतंक फैला कर आदिवासियों की आवाज दबाने के स्थान पर इस गम्भीर समस्या का समाधान बातचीत के जरिये निकालने की नीति पर आ जाये। डॉ.मनमोहन सिंह को साफ-साफ समझ लेना चाहिये कि वे एक गणतंत्र देश के प्रधानमंत्री है और इस देश में जनता के हितों की रक्षा के लिये उन्हें प्रधानमंत्री बनाया है! उन्हें यह भी समझ लेना चाहिये कि अवाम पर फौज और पैरामिलीट्री के जरिये आतंक फैला कर शासन नहीं किया जा सकता है। क्योंकि ऐसी स्थिति में देश सिर्फ खूनी क्रान्ति के रास्ते पर अग्रसर होगा।