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अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त करने के लिये एकजुट हो जैन समाज!

जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलाने की मांग जैसे जैसे तेज होती जा रही है, श्वेताम्बर समाज से जुडे कुछ पूंजीपति, बिल्डर, भूमाफिया और सरमायेदार अन्य समुदायों को उकसा कर यह भ्रम फैलाने का प्रयास कर रहे हैं कि जैन समुदाय आर्थिक रूप से सम्पन्न वर्ग है अत: इन्हें अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्रदत्त न किया जाये।
जैन श्वेताम्बर समुदाय के कुछ पूंजीपतियों, भूमाफियाओं, बिल्डरों और उनके चमचों-दुमछल्लों द्वारा फैलाये जा रहे इस भ्रम से हालांकि पूरे जैन समुदाय में नाराजगी है। लेकिन इसके साथ-साथ एक बात अब पूरी तरह साफ हो गई है कि इनकी बे सिर पैर की करतूतों के बावजूद यह तो तैय हो ही गया है कि जैन समुदाय अल्पसंख्यक है। देश की जनगणना ने साफ कर दिया है कि सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले भारत में जैन समुदाय आबादी के हिसाब से मात्र 0.4 प्रतिशत है। जैन समुदाय की आबादी, पारसी समुदाय जिसकी नफरी देश की आबादी की 0.1 प्रतिशत है उसके बाद अन्य समुदायों की तुलना में सबसे कम है। जैन समुदाय के खिलाफ भ्रम फैलाने वालों ने भी अब यह तो मान ही लिया है कि जैन समुदाय संख्या में तो अल्पसंख्यक ही है! बस वे अपनी इस नौटंकी में अटके हैं कि जैन समुदाय सम्पन्न वर्ग है।
अगर आर्थिक आंकडों को देखें तो अल्पसंख्यक वर्ग में सबसे ज्यादा सम्पन्न वर्ग सिक्ख और मुस्लिम हैं। उसके बाद जैन समुदाय का तीसरा और ईसाईयों का चौथा नम्बर आता है। इसके साथ-साथ यह भी गौर करने योग्य तथ्य है कि जैन समुदाय में आबादी के अनुपात में मात्र 18 प्रतिशत से भी कम लोग आर्थिक रूप से सम्पन्न वर्ग में आते हैं। 68 प्रतिशत लोग मध्यम और निम्र वर्ग में आते हैं। अगर उच्च वर्ग व उच्च मध्यम वर्ग को जोड़ भी लिया जाये तो यह आंकड़ा 32 प्रतिशत पर ही अटक जाता है और साफ हो जाता है कि जैन समुदाय में मध्यम एवं निम्र मध्यम वर्ग समग्र जैन समुदाय की आबादी का 68 प्रतिशत है।
जहां तक अन्य समुदायों का सवाल है, आज की स्थिति में हिन्दुओं में मीणा, जाट, गुर्जर और सिक्ख तथा मुसलमान समग्र रूप से जैन समुदाय से ज्यादा आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं। ऐसी स्थिति में अगर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा देने का विरोध करने वाले समुदायों को भी उनको प्रदत्त सुविधाओं से वंचित किया जाना चाहिये। साथ ही जैन समुदाय का जो सम्पन्न वर्ग जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने का विरोध करता है, उसे चाहिये कि अपने पास उपलब्ध समस्त कालेधन को समाज के मध्यम और निम्र मध्यम वर्ग में बांट दें, ताकि इस वर्ग का जीवन स्तर ऊंचा उठ सके। हम यहां उनके द्वारा ईमानदारी से कमाये धन के बारे में कुछ भी नहीं लिख रहे हैं!
लेकिन हम अगले अंक में आपको बतायेंगे कि जैन समुदाय में अमीर और गरीब की जो खाई चौडी होती जा रही है, उससे इस समुदाय में अन्दर ही अन्दर विघटन की जो गम्भीर प्रक्रिया चल रही है उसके कितने घातक परिणाम हमें और अमारी आने वाली पीढी को भुगतने होंगे और उनसे बचने का एक मात्र उपाय है कि जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवधानिक दर्ज मिले!

 
AGRAGAMI SANDESH

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