जयपुर (अग्रगामी) प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मरीज के उपचार के दौरान मनमर्जी का उपचार लिखा तो डॉक्टर साहब को इसकी सजा भी मिल सकती है। राज्य सरकार ने चिकित्सकों की ओर से लिखी जा रही पर्चियों की जांच प्रक्रिया में अब यह नया प्रावधान भी कर दिया है।
दो से अधिक बार यदि किसी डॉक्टर की पर्ची में नियम कायदों के विपरीत उपचार लिखा पाया गया तो उसके खिलाफ प्रमुख स्वास्थ्य सचिव के स्तर पर अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की जाएगी। प्रमुख स्वास्थ्य सचिव दीपक उप्रेती ने गत शुक्रवार को सभी अस्पतालों में ड्रग एवं थैरापैटिक समितियां (डीटीसी) गठित करने के निर्देश जारी किए हैं, उन्हीं में कार्यवाही का प्रावधान भी जोड़ा गया है।
यूं तो जांच पर्चियों की रैनडम ऑडिट का प्रावधान सरकार ने दवा योजना की शुरूआत के साथ ही कर दिया था। लेकिन कई स्थानों पर यह कमेटियां गठित नहीं हो पाई थीं। कहीं पर कार्यशील नहीं हुई थीं। निर्देशों में मानक उपचार दिशा निर्देशों (एसटीजी) की सख्ती से पालना करने और कमेटियों द्वारा की जा रही मॉनिटरिंग की रिपोर्ट नियमित रूप से राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन को भिजवाने की हिदायत दी गई है।
सारी हिदायतों के बाद डॉक्टर साहब मरीजों और घायलों को देख कर दूसरे अस्पतालों में रेफर कर दे ओर यह क्रम लगातार जारी रहे जांच भी हो और मौके पर नि:शुल्क दवाइयां देने में गड़बडी पाई जाये तब भी अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होना भी एक बडी समस्या है क्योंकि जांच रिपोर्ट या तो बनेगी ही नहीं और बन भी गई तो वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचेगी ही नहीं तो कार्यवाही करने का आश्वासन तो मात्र छलावा ही साबित होगा!
सरदारशहर तहसील मुख्यालय पर स्थित राजकीय छोटूलाल सेठिया चिकित्सालय को ही लें और पिछले तीन सालों में की गई वरिष्ठ अधिकारियों की जांच रिपोर्ट को देख लें तो जयपुर में एयरकण्डीशन में बैठ कर निर्देश देने वाले वरिष्ठ अधिकारियों को समझ में आ जायेगा कि कार्यवाही करने के आदेशों से ही अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं होती है अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के लिये एयरकण्डीशन से बाहर निकल कर अस्पतालों के हालात पर निगरानी रखनी भी आवश्यक है।
शिकायतें और समाचार पत्रों में छपे समाचार अधिकारियों को अवाम की परेशानियों से अवगत करवाते रहते हैं। अधिकारियों को जानकारी भी होती है लेकिन नेताओं और सरकार के आदेश की पालना में रोज नये आदेश जारी होते हैं लेकिन पालना करने वाला कोई है ही नहीं। क्योंकि अवाम की जान से ज्यादा नौकरी और जी हुजूरी से फुर्रसत मिले तो कार्यवाही हो लापरवाहों के खिलाफ और तब मिले अवाम को राहत!
ज्ञातव्य रहे कि लापरवाह चिकित्सालय प्रभारियों पर कार्यवाही करने की प्रक्रिया ही इतनी जटिल होगी की निचले अधिकारी आपसी समझौतों के बाद रिपोर्ट वरिष्ठ अधिकारियों को भेजेंगे ही नहीं को कार्यवाही कहां से और कैसे होगी! क्योंकि चुनावी साल है और केवल घोषणाएं ही होनी है पालना कोई नहीं करवाना चाहेगा, हुजूरों!