पहिले शोर शराबा हुआ था, भारत पाक सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा एक भारतीय सैनिक का सिर काट कर ले जाने के मामले में। फिर आई पाकिस्तान से चमेल सिंह की लाश! बताया गया कि जेल में यातना देकर उसे मार डाला गया। अब उसी कोट लखपत जेल में कैद दूसरे भारतीय सरबजीत सिंह की लाश भारत आई है। तीनों मामलों में इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया में काफी कुछ साया हो चुका है। अत: उस में विस्तार से जाने की आवश्यकता नहीं है। पाकिस्तान कहता है कि मंजीत सिंह उर्फ सरबजीत सिंह भारतीय खूफिया ऐजेंसी रिसर्च एण्ड एनालेसिस विंग (रा) का ऐजेन्ट था। जबकि सरबजीत सिंह की तरफ से पाकिस्तानी अदालतों में बताया गया कि मंजीत सिंह और सरबजीत सिंह दो अलग-अलग व्यक्तियों के नाम हैं और पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा सरबजीत सिंह को मंजीत सिंह घोषित कर उसे बम कांड में फंसा कर फांसी की सजा दिलवा दी गई। मंजीत सिंह के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। अगर मंजीत सिंह नाम का कोई व्यक्ति था या है तो वह क्या? जिन्दा है और अगर जिन्दा है तो कहां है? अफवायें कभी उसका ठिकाना कनाडा में बताती है ओर कभी पाकिस्तान में! लेकिन पुख्ता जानकारी किसी के पास नहीं है। लेकिन सरबजीत सिंह को लेकर सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस, अकाली दल, समाजवादी दल और भाजपा अपनी-अपनी सियासत भुनाने में लगे हैं।
सवाल उठता है कि जब पाकिस्तान की उसी कोट लखपत जेल जहां सरबजीत सिंह कैद था और वहीं से एक अन्य कैदी चमेल सिंह की भी लाश कुछ अर्से पहिले भारत लाई गई थी तब इस तरह का शोरशराबा क्यों नहीं हुआ जैसा कि सरबजीत सिंह मामले में हो रहा है। सरबजीत सिंह की बहन दलवीर कौर जिस तरह बयानबाजी कर रही है, उससे भी कई तरह की शंकायें पैदा हो रही है। पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता बर्नी पर पच्चीस करोड़ की रिश्वत मांगने का जो आरोप सरबजीत सिंह की बहन ने लगाया वह आरोप भी हास्यास्पद ही प्रतीत होता है! उसके ताजा बयानों ने सरबजीत सिंह से सम्बन्धित पूरे प्रकरण को ही संदेह के दायरे में खड़ा कर दिया है कि क्या यह मामला मानवाधिकारों से जुडा है या फिर भारत-पाक के सियासी दांवपेचों की कडी मात्र है।
सरबजीत को शहीद का दर्जा देने और सवा करोड़ रूपये की सहायता, दोनों बेटियों को नौकरी देने की घोषणा करने वाले सियासतदां लोगों से भी सवाल किया जा सकता है कि जब सरबजीत सिंह के लिये इतनी दरियादिली दिखाई जा रही है तो फिर चमेल सिंह को क्यों भूल गये? क्या गुनाह किया है चमेल सिंह के परिजनों ने? क्यों चमेल सिंह के परिजनों को भुला दिया गया। हमें ध्यान रखना होगा कि चमेल सिंह और सरबजीत सिंह एक ही जेल में बंद थे। घायल होने के बाद दोनों को ही एक ही अस्पताल ले जाया गया था। उसी अस्पताल से दोनों की ही लाशें भारत आई थी। ऐसी स्थिति में चमेल सिंह और सरबजीत सिंह दोनों को ही एक समान सम्मान मिलना चाहिये था और दोनों के ही परिवारों को बराबर की सुविधायें मिलनी चाहिये थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ! इसके पीछे कारण क्या है? यह तो देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस, भाजपा और समाजवादी दल के सियासतदां ही ज्यादा बेहतर तरीके से बता सकते हैं।
इससे भी गम्भीर मुद्दा एक ओर भी है। देशवासियों को याद है कि एक भारतीय सैनिक का सिर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा काट कर ले जाने का मामला देश के इलेक्ट्रोनिक मीडिया ओर प्रिंट मीडिया में काफी जोरशोर से उछला था। क्या देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और सरबजीत सिंह के मुद्दे पर सियासत कर रहे कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी दल सहित अन्य राजनैतिक दलों के सियासतदां बतायेंगे कि देश पर कुर्बान हुए उस देशभक्त को क्यों आज तक शहीद का दर्जा नहीं दिया गया? सरबजीत की चिता पर आंसू बहाकर अपनी सियासत की रोटियां सेंकने वालों में से कितने सियासतदां उस देशभक्त शहीद की बिना सिर की चिता पर आंसू बहाने पहुंचे! बतायेंगे?
मौतों पर सियासत की नौटंकी करने वालों को चाहिये कि वे देश की एकता अखण्डता और उसके स्वाभीमान के लिये लड़ें। देश में बैठे अमरीकी पिछलग्गुओं को अमरीका से ही सबक ले लेना चाहिये। जहां राजनेता अपने देश अमरीका के हितों की रक्षा के लिये विश्व में कहर बरपा ने और हरतरह की कुर्बानी देने के लिये तैयार रहते हैं!
सवाल उठता है कि जब पाकिस्तान की उसी कोट लखपत जेल जहां सरबजीत सिंह कैद था और वहीं से एक अन्य कैदी चमेल सिंह की भी लाश कुछ अर्से पहिले भारत लाई गई थी तब इस तरह का शोरशराबा क्यों नहीं हुआ जैसा कि सरबजीत सिंह मामले में हो रहा है। सरबजीत सिंह की बहन दलवीर कौर जिस तरह बयानबाजी कर रही है, उससे भी कई तरह की शंकायें पैदा हो रही है। पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता बर्नी पर पच्चीस करोड़ की रिश्वत मांगने का जो आरोप सरबजीत सिंह की बहन ने लगाया वह आरोप भी हास्यास्पद ही प्रतीत होता है! उसके ताजा बयानों ने सरबजीत सिंह से सम्बन्धित पूरे प्रकरण को ही संदेह के दायरे में खड़ा कर दिया है कि क्या यह मामला मानवाधिकारों से जुडा है या फिर भारत-पाक के सियासी दांवपेचों की कडी मात्र है।
सरबजीत को शहीद का दर्जा देने और सवा करोड़ रूपये की सहायता, दोनों बेटियों को नौकरी देने की घोषणा करने वाले सियासतदां लोगों से भी सवाल किया जा सकता है कि जब सरबजीत सिंह के लिये इतनी दरियादिली दिखाई जा रही है तो फिर चमेल सिंह को क्यों भूल गये? क्या गुनाह किया है चमेल सिंह के परिजनों ने? क्यों चमेल सिंह के परिजनों को भुला दिया गया। हमें ध्यान रखना होगा कि चमेल सिंह और सरबजीत सिंह एक ही जेल में बंद थे। घायल होने के बाद दोनों को ही एक ही अस्पताल ले जाया गया था। उसी अस्पताल से दोनों की ही लाशें भारत आई थी। ऐसी स्थिति में चमेल सिंह और सरबजीत सिंह दोनों को ही एक समान सम्मान मिलना चाहिये था और दोनों के ही परिवारों को बराबर की सुविधायें मिलनी चाहिये थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ! इसके पीछे कारण क्या है? यह तो देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस, भाजपा और समाजवादी दल के सियासतदां ही ज्यादा बेहतर तरीके से बता सकते हैं।
इससे भी गम्भीर मुद्दा एक ओर भी है। देशवासियों को याद है कि एक भारतीय सैनिक का सिर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा काट कर ले जाने का मामला देश के इलेक्ट्रोनिक मीडिया ओर प्रिंट मीडिया में काफी जोरशोर से उछला था। क्या देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और सरबजीत सिंह के मुद्दे पर सियासत कर रहे कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी दल सहित अन्य राजनैतिक दलों के सियासतदां बतायेंगे कि देश पर कुर्बान हुए उस देशभक्त को क्यों आज तक शहीद का दर्जा नहीं दिया गया? सरबजीत की चिता पर आंसू बहाकर अपनी सियासत की रोटियां सेंकने वालों में से कितने सियासतदां उस देशभक्त शहीद की बिना सिर की चिता पर आंसू बहाने पहुंचे! बतायेंगे?
मौतों पर सियासत की नौटंकी करने वालों को चाहिये कि वे देश की एकता अखण्डता और उसके स्वाभीमान के लिये लड़ें। देश में बैठे अमरीकी पिछलग्गुओं को अमरीका से ही सबक ले लेना चाहिये। जहां राजनेता अपने देश अमरीका के हितों की रक्षा के लिये विश्व में कहर बरपा ने और हरतरह की कुर्बानी देने के लिये तैयार रहते हैं!