प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत साहब ने पत्रकारों को खुश कर दिया! पत्रकारों को पेंशन लागू कर दी गई ओर भूखण्ड आवंटन की लाटरी निकाल दी गई। पत्रकार खुश! लेकिन आखीर कितने खुश हुए और कितने मायूस, यह तो पत्रकारों की आत्मा ही जानती है। पत्रकारों को पेंशन के मामले में इतने पेंच हैं कि साठ साल से ज्यादा उम्र के 50 प्रतिशत से अधिक अधिस्वीकृत कलमघिस्सू (पत्रकार) तो दौड़ के बाहर ही हो गये हैं। हम आप को याद दिलादें कि जो हाल अनुदानित गैर सरकारी स्कूलों के सरकार की ग्रामीण सेवा में जाने वाले शिक्षकों के हुए और आज वे सब सरकार की करतूतों के चलते पछता रहे हैं वही हाल पत्रकारों का है। पेंशन योजना का लाभ बड़े अखबारों में काम कर रहे या कर चुके पत्रकारों को ही मिलेगा।
इस ही तरह भूखण्डों के आवंटन का मामला है। दस्तावेज खंगाल लीजिये कि कितने अधिस्वीकृत पत्रकारों ने आवेदन किये और कितनों को भूखण्ड मिले? हकीकत सामने आ जायेगी। यह भी जांच हो जानी चाहिये कि जिन पत्रकारों को भूखण्ड अलॉट हुए हैं, उनमें से कितनों को पहिले भूखण्ड/हाऊसिंग बोर्ड के मकान अलॉट हुए और उन्होंने बेच दिये और इनमें बड़े समाचार पत्रों के कितने पत्रकार हैं जिन्हें भूखण्ड दिये गये हैं!
चुनावी साल में चुनावी फायदा उठाने के लिये कुछ चुनिन्दा लोगों को लाभ पहुंचाने की हरकत से पत्रकारों में सरकार के पक्ष में कोई हवा नहीं बनने वाली है। यह गहलोत प्रशासन को अच्छी तरह समझ लेना चाहिये!
इस ही तरह भूखण्डों के आवंटन का मामला है। दस्तावेज खंगाल लीजिये कि कितने अधिस्वीकृत पत्रकारों ने आवेदन किये और कितनों को भूखण्ड मिले? हकीकत सामने आ जायेगी। यह भी जांच हो जानी चाहिये कि जिन पत्रकारों को भूखण्ड अलॉट हुए हैं, उनमें से कितनों को पहिले भूखण्ड/हाऊसिंग बोर्ड के मकान अलॉट हुए और उन्होंने बेच दिये और इनमें बड़े समाचार पत्रों के कितने पत्रकार हैं जिन्हें भूखण्ड दिये गये हैं!
चुनावी साल में चुनावी फायदा उठाने के लिये कुछ चुनिन्दा लोगों को लाभ पहुंचाने की हरकत से पत्रकारों में सरकार के पक्ष में कोई हवा नहीं बनने वाली है। यह गहलोत प्रशासन को अच्छी तरह समझ लेना चाहिये!