नई दिल्ली/जयपुर (अग्रगामी) अगर लोकसभा के आगामी चुनाव निर्धारित वर्ष 2014 में ही हुए और भारतीय जनता पार्टी में अन्दरूनी सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा तो भारतीय जनता पार्टी अपेक्षित लोकसभा सीटें प्राप्त कर सहयोगी दलों के साथ मिलकर सत्ता पर काबिज हो सकती है। ऐसे में देश के अगले प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी ही होंगे।
देश की राजधानी नई दिल्ली से लेकर विभिन्न प्रांतों में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग उठा कर जो माहौल बनाया जा रहा है उसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि किसी भी तरह भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाया जाये और भाजपा खेमें के भावी प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी को विवादों के दायरे से बाहर रखा जाये।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के शीर्ष पदाधिकारी और भाजपा के वरिष्ठ नेता नहीं चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव सम्पन्न होने तक लालकृष्ण आडवानी किसी भी तरह के विवादों में उलझें। उन्हें भाजपा का पितामह बता कर और उनकी भाजपा के संरक्षक की छवि बनाकर आरएसएस और भाजपा के दिग्गज आडवानी को हांशिये पर दिखाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। ज्ञातव्य रहे कि कांग्रेस ने भी सोनिया गांधी को आगे रखकर चुनाव लड़ा और बाद में प्रधानमंत्री बने अमरीकी परस्त डॉ.मनमोहन सिंह!
देश में नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी का जो हौवा बनाया जा रहा है वह महज देश की जनता को गफलत में डालने तक ही सीमित है। इन दोनों में से कोई भी देश का प्रधानमंत्री बनने के स्थिति में नहीं है। अमरीका आज भी मोदी को अमरीकी वीजा देने हेतु तैयार नहीं है। इस ही से अंदाज लगाया जा सकता है कि अमरीका नहीं चाहेगा कि मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें। वहीं कांग्रेस का जहां तक सवाल है, डॉ.मनमोहन सिंह और राहुल गांधी में से अमरीका की पसंद डॉ.मनमोहन सिंह ही हैं और रहेंगे। ऐसी स्थिति में चाहे कितना भी शोर शराबा मचाया जाये, राहुल देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी से कोसों दूर हैं।
जहां तक तीसरे मोर्चे का सवाल है, उत्तर प्रदेश में मायावती और मुलायम सिंह की टक्कर है। जबकि दोनों ही वर्तमान में यूपीएनीत कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन दे रहे हैं और दोनों की ही गर्दन सीबीआई के शिकंजे में है। बिहार में कांग्रेस नितीश कुमार को भाजपा से अलग करने की कोशिश में जुटी है वहीं पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों में ठनी है। जिससे नुकसान कुल मिला कर कथित तीसरे मोर्चे को ही होना है। तमिलनाडू में जयललिता और उडीसा में नवीन पटनायक अपनी जगह मजबूती से टिके हैं। उन्हें किधर जाना है, यह वे वक्त आने पर तैय करेंगे। इसलिये राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में तीसरे मोर्चे का कोई वजूद आज के हालात में नजर नहीं आ रहा है। तीसरे मोर्चे की हांक केवल व्यक्ति आधारित राजनैतिक पार्टियां ही लगा रही है और आगामी लोकसभा चुनावों में जनता इनका क्या हश्र करेगी यह तो वक्त ही बतायेगा!
हम शांत चित्त से विवेचना करें तो वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री पद के लिये दो ही विकल्प हैं, पहला डॉ.मनमोहन सिंह और दूसरा लालकृष्ण आडवानी! दोनों ही हैं अमरीका के पक्षधर!
देश की राजधानी नई दिल्ली से लेकर विभिन्न प्रांतों में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग उठा कर जो माहौल बनाया जा रहा है उसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि किसी भी तरह भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाया जाये और भाजपा खेमें के भावी प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी को विवादों के दायरे से बाहर रखा जाये।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के शीर्ष पदाधिकारी और भाजपा के वरिष्ठ नेता नहीं चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव सम्पन्न होने तक लालकृष्ण आडवानी किसी भी तरह के विवादों में उलझें। उन्हें भाजपा का पितामह बता कर और उनकी भाजपा के संरक्षक की छवि बनाकर आरएसएस और भाजपा के दिग्गज आडवानी को हांशिये पर दिखाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। ज्ञातव्य रहे कि कांग्रेस ने भी सोनिया गांधी को आगे रखकर चुनाव लड़ा और बाद में प्रधानमंत्री बने अमरीकी परस्त डॉ.मनमोहन सिंह!
देश में नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी का जो हौवा बनाया जा रहा है वह महज देश की जनता को गफलत में डालने तक ही सीमित है। इन दोनों में से कोई भी देश का प्रधानमंत्री बनने के स्थिति में नहीं है। अमरीका आज भी मोदी को अमरीकी वीजा देने हेतु तैयार नहीं है। इस ही से अंदाज लगाया जा सकता है कि अमरीका नहीं चाहेगा कि मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें। वहीं कांग्रेस का जहां तक सवाल है, डॉ.मनमोहन सिंह और राहुल गांधी में से अमरीका की पसंद डॉ.मनमोहन सिंह ही हैं और रहेंगे। ऐसी स्थिति में चाहे कितना भी शोर शराबा मचाया जाये, राहुल देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी से कोसों दूर हैं।
जहां तक तीसरे मोर्चे का सवाल है, उत्तर प्रदेश में मायावती और मुलायम सिंह की टक्कर है। जबकि दोनों ही वर्तमान में यूपीएनीत कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन दे रहे हैं और दोनों की ही गर्दन सीबीआई के शिकंजे में है। बिहार में कांग्रेस नितीश कुमार को भाजपा से अलग करने की कोशिश में जुटी है वहीं पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों में ठनी है। जिससे नुकसान कुल मिला कर कथित तीसरे मोर्चे को ही होना है। तमिलनाडू में जयललिता और उडीसा में नवीन पटनायक अपनी जगह मजबूती से टिके हैं। उन्हें किधर जाना है, यह वे वक्त आने पर तैय करेंगे। इसलिये राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में तीसरे मोर्चे का कोई वजूद आज के हालात में नजर नहीं आ रहा है। तीसरे मोर्चे की हांक केवल व्यक्ति आधारित राजनैतिक पार्टियां ही लगा रही है और आगामी लोकसभा चुनावों में जनता इनका क्या हश्र करेगी यह तो वक्त ही बतायेगा!
हम शांत चित्त से विवेचना करें तो वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री पद के लिये दो ही विकल्प हैं, पहला डॉ.मनमोहन सिंह और दूसरा लालकृष्ण आडवानी! दोनों ही हैं अमरीका के पक्षधर!