जयपुर (अग्रगामी) पिछले अंकों में हमने खरतरगच्छ परम्परा की मण्डोवरा गद्दी
को खुर्दबुर्द करने की कुछ निकृष्ट कब्जाधारियों की हरकतों को उजागर किया
था। इन कब्जाधारियों की हरकतों की एक ओर बानगी हम आपके सामने उजागर कर रहे
हैं।
मण्डोवरा गद्दी के स्वर्गीय आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि ने अपने निष्ठापत्र (वसियत नामा) दिनांक 19 दिसम्बरख् 1956 में साफ-साफ लिखा है कि ''उपासनागृह को बेचने, किराये पर देने, गिरवी रखने व गृहस्थाश्रम रखने आदि का कोई अधिकार कभी भी नहीं रहेगा। सिर्फ धर्म ध्यान जैसे समायिक, प्रतिक्रमण, पौषघ व प्रवचन आदि देने का अधिकार रहेगा।"
लेकिन अवैध कब्जाधारक पदमचंद गोलेछा, राजेन्द्र कुमार छाजेड़ और सुशील कुमार बुरड़ ने कुछ लोगों के साथ मिल कर इस उपासनागृह (उपाश्रय) की प्रथम मंजिल को किराये पर उठा दिया। लेकिन इनकी इस से भी बड़ी और गैरजुम्मेदारान हरकत देखिये कि किरायेदारों की सहुलियत के लिये उपासना गृह के धार्मिक कृत्य हेतु निर्धारित स्थल के ऊपर शौचालयों (लैट्रिन) का निर्माण भी करवा दिया गया है। पहली बात यह है कि आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि की वसीयत में स्पष्ट निर्देश है कि उपासना स्थल परिसर को किसी भी हालत में कभी भी किराये पर नहीं दिया जा सकता है। लेकिन वसीयत को नजरन्दाज कर कागजी संस्था बना कर उसकी आड़ में इस उपासना स्थल की प्रथम मंजिल को किराये पर दे दिया गया। उससे भी गम्भीर स्थिति यह है कि उपासना स्थल के ऊपर किरायेदारों की सहुलियत के लिये शौचालयों का निर्माण करवा दिया गया है।
मण्डोवरा गद्दी के स्वर्गीय आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि ने अपने निष्ठापत्र (वसियत नामा) दिनांक 19 दिसम्बरख् 1956 में साफ-साफ लिखा है कि ''उपासनागृह को बेचने, किराये पर देने, गिरवी रखने व गृहस्थाश्रम रखने आदि का कोई अधिकार कभी भी नहीं रहेगा। सिर्फ धर्म ध्यान जैसे समायिक, प्रतिक्रमण, पौषघ व प्रवचन आदि देने का अधिकार रहेगा।"
लेकिन अवैध कब्जाधारक पदमचंद गोलेछा, राजेन्द्र कुमार छाजेड़ और सुशील कुमार बुरड़ ने कुछ लोगों के साथ मिल कर इस उपासनागृह (उपाश्रय) की प्रथम मंजिल को किराये पर उठा दिया। लेकिन इनकी इस से भी बड़ी और गैरजुम्मेदारान हरकत देखिये कि किरायेदारों की सहुलियत के लिये उपासना गृह के धार्मिक कृत्य हेतु निर्धारित स्थल के ऊपर शौचालयों (लैट्रिन) का निर्माण भी करवा दिया गया है। पहली बात यह है कि आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि की वसीयत में स्पष्ट निर्देश है कि उपासना स्थल परिसर को किसी भी हालत में कभी भी किराये पर नहीं दिया जा सकता है। लेकिन वसीयत को नजरन्दाज कर कागजी संस्था बना कर उसकी आड़ में इस उपासना स्थल की प्रथम मंजिल को किराये पर दे दिया गया। उससे भी गम्भीर स्थिति यह है कि उपासना स्थल के ऊपर किरायेदारों की सहुलियत के लिये शौचालयों का निर्माण करवा दिया गया है।
अवैध कब्जाधारियों में से एक पदमचंद गोलेछा श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ में पदाधिकारी हैं। वहीं राजेन्द्र कुमार छाजेड़ इस संघ के उपाध्यक्ष हैं। एक नाम जो आया है वह प्रतापचंद लूनावत का है, ये महाशय भी इस संघ के पदाधिकारी और आमेर मंदिर दादाबाडी प्रभारी हैं।
अग्रगामी संदेश के पिछले अंकों में जब इन अवैध कब्जाधारियों की हरकतों का भाण्डा फूटा तब गत मंगलवार को मीटिंग कर इन अवैध कब्जाधारियों ने मण्डोवरा गद्दी की सम्पत्ति पर कब्जा जमाने के लिये एक नई संस्था के गठन की तैयारी करना शुरू कर दिया है। हालांकि उनकी इस हरकत से आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि की वसीयत में दिये गये निर्देशों पर कोई असर होने वाला नहीं है।
उधर धार्मिक स्थल का व्यवसायिक उपयोग करने से नाराज कुछ साधर्मी बन्धुओं ने मामले में स्थापित कानूनों के तहत कार्यवाही के साथ-साथ मामले की शिकायत सेंट्रल बोर्ड ऑफ डाइरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) के चेयरमैन से भी करने का मानस बना लिया है। इन लोगों का मानना है कि उपासना स्थल का कॉमर्शियल कार्य में दुरूपयोग और उपासना स्थल के ऊपर शौचालय बनाने के अवैध कब्जाधारियों के कृत्यों को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। क्रमश: