जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा देने के मुद्दे पर हमने अग्रगामी संदेश के पिछले अंकों में काफी कुछ लिखा है। देश के आठ राज्यों, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, मध्यप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला ने स्वीकारा है कि कमीशन जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा देने के लिये केंद्र सरकार को पहिले ही सिफारिश दे चुका है। ज्ञातव्य रहे कि अल्पसंख्यक जैन समुदाय के कर्नाटक से नेमीनाथ के. पूर्व में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं। उन्हें एच.डी. देवेगौड़ा के प्रधानमंत्रित्वकाल में आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया था, लेकिन उनका कार्यकाल बढाया नहीं गया।
देश में अल्पसंख्यकों की जमात में जैन समुदाय नीचे से दूसरी पायदान पर आता है। सबसे नीचे पारसी समुदाय है। मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख और बौद्ध समुदायों की आबादी जैन समुदाय से दो गुना से बीस गुना ज्यादा है, लेकिन सिर्फ जैन समुदाय ही एक ऐसा समुदाय है कि उसे अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा नहीं दिया जा रहा है। पहिले हिन्दुत्ववादियों का यह कहना था कि जैन समुदाय हिन्दुओं का एक हिस्सा है, लेकिन न्यायालय ने उनके तर्क को खारिज कर दिया। एक सवाल यह भी है कि बौद्ध मत जैन समुदाय से ही अलग हुए समुदाय का मत है। ऐसे में बौद्ध मत के अनुयायी तो अल्पसंख्यक हैं और जैन समुदाय को उसके अल्पसंख्यक संवैधानिक दर्जे से क्यों वंचित रखा जा रहा है।
राजस्थान में पिछली गहलोत सरकार ने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने का नोटिफिकेशन तो जारी किया था, लेकिन उसमें तकनीकी खानी छोड़ दी गई, जबकि वसुन्धरा राजे ने बेरूखी अपनाई।
शर्मनाक स्थिति यह रही की श्वेताम्बर जैन समुदाय के पूंजीपति, इजारेदार, भू-माफिया, बिल्डर, विज्ञापन बटेरू ओर व्यापारी बने कुछ बड़े मीडिया पूंजीपति अपने निहायत व्यक्तिगत फायदे उठाने के लिये जैन समुदाय का अगडा साबित करने का ढोंग रचते रहे, लेकिन इस समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने में अडगें भी डालते रहे। ताकि उनके व्यक्तिगत हितों की पूर्ति होती रहे। आज जैन श्वेताम्बर समुदाय के हालात इतने बद्तर हैं कि इस समुदाय के बच्चों और युवाओं को अपने समाज का एक सौ साल पुराना इतिहास भी मालूम नहीं है। दु:खद स्थिति यह भी है कि इस समुदाय के युवाओं व बच्चों को खुद के परिवार की पिछली पांच पीढिय़ों के इतिहास के बारे में कुछ भी अतापता नहीं है।
श्वेताम्बर जैन समुदाय के अगडों और पूंजीपतियों के ये हाल हैं कि वे अपने धार्मिक स्थलों को ट्यूरिस्ट स्पाट बनाने में जुटे हैं या फिर उन पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे हैं, ताकि समाज की सम्पत्ति उनकी बपौती बनी रहे और वे समाज के अगडे होने का फायदा उठा कर मलाई चाटते रहें। इन पूंजीपतियों सरमायेदारों और इनके दुमछल्लों को जिन संस्कृति पर शोध, इसके उत्थान और प्रचार प्रसार से कोई लेना देना नहीं है। बस अपने हित साधन हेतु कार्यक्रम आयोजित करो और धर्म के साये में स्वामीवात्सल्य की आड़ में भोज का आयोजन कर भीड़ जुटाओ।
इनके दिमाग में समाज के मध्यम, पिछड़े और दबेकुचले वर्ग के उत्थान के बारे में कोई सोच ही नहीं है। ये अर्धशिक्षित वर्ग न तो शिक्ष के क्षेत्र का जानकार है और न ही सामाजिक धार्मिक मामलों में इनकी कोई विशेषज्ञता है। इनकी सिर्फ एक ही विशेषज्ञता है, शाोषण कर हराम की कमाई का मालिक होना और उसके आधार पर अपने ही समाज के पिछड़े दबेकुचले वर्ग का शोषण करना।
राज्य की अशोक गहलोत सरकारा को अब गम्भीरता से समझ लेना चाहिये कि चंद पूंजीपतियों के बूते पर इस समाज के वोटों को बटोरा जाना अब सम्भव नहीं है। अब जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिया जाना ही उचित होगा। -आशीष कुमार जैन
देश में अल्पसंख्यकों की जमात में जैन समुदाय नीचे से दूसरी पायदान पर आता है। सबसे नीचे पारसी समुदाय है। मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख और बौद्ध समुदायों की आबादी जैन समुदाय से दो गुना से बीस गुना ज्यादा है, लेकिन सिर्फ जैन समुदाय ही एक ऐसा समुदाय है कि उसे अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा नहीं दिया जा रहा है। पहिले हिन्दुत्ववादियों का यह कहना था कि जैन समुदाय हिन्दुओं का एक हिस्सा है, लेकिन न्यायालय ने उनके तर्क को खारिज कर दिया। एक सवाल यह भी है कि बौद्ध मत जैन समुदाय से ही अलग हुए समुदाय का मत है। ऐसे में बौद्ध मत के अनुयायी तो अल्पसंख्यक हैं और जैन समुदाय को उसके अल्पसंख्यक संवैधानिक दर्जे से क्यों वंचित रखा जा रहा है।
राजस्थान में पिछली गहलोत सरकार ने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने का नोटिफिकेशन तो जारी किया था, लेकिन उसमें तकनीकी खानी छोड़ दी गई, जबकि वसुन्धरा राजे ने बेरूखी अपनाई।
शर्मनाक स्थिति यह रही की श्वेताम्बर जैन समुदाय के पूंजीपति, इजारेदार, भू-माफिया, बिल्डर, विज्ञापन बटेरू ओर व्यापारी बने कुछ बड़े मीडिया पूंजीपति अपने निहायत व्यक्तिगत फायदे उठाने के लिये जैन समुदाय का अगडा साबित करने का ढोंग रचते रहे, लेकिन इस समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने में अडगें भी डालते रहे। ताकि उनके व्यक्तिगत हितों की पूर्ति होती रहे। आज जैन श्वेताम्बर समुदाय के हालात इतने बद्तर हैं कि इस समुदाय के बच्चों और युवाओं को अपने समाज का एक सौ साल पुराना इतिहास भी मालूम नहीं है। दु:खद स्थिति यह भी है कि इस समुदाय के युवाओं व बच्चों को खुद के परिवार की पिछली पांच पीढिय़ों के इतिहास के बारे में कुछ भी अतापता नहीं है।
श्वेताम्बर जैन समुदाय के अगडों और पूंजीपतियों के ये हाल हैं कि वे अपने धार्मिक स्थलों को ट्यूरिस्ट स्पाट बनाने में जुटे हैं या फिर उन पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे हैं, ताकि समाज की सम्पत्ति उनकी बपौती बनी रहे और वे समाज के अगडे होने का फायदा उठा कर मलाई चाटते रहें। इन पूंजीपतियों सरमायेदारों और इनके दुमछल्लों को जिन संस्कृति पर शोध, इसके उत्थान और प्रचार प्रसार से कोई लेना देना नहीं है। बस अपने हित साधन हेतु कार्यक्रम आयोजित करो और धर्म के साये में स्वामीवात्सल्य की आड़ में भोज का आयोजन कर भीड़ जुटाओ।
इनके दिमाग में समाज के मध्यम, पिछड़े और दबेकुचले वर्ग के उत्थान के बारे में कोई सोच ही नहीं है। ये अर्धशिक्षित वर्ग न तो शिक्ष के क्षेत्र का जानकार है और न ही सामाजिक धार्मिक मामलों में इनकी कोई विशेषज्ञता है। इनकी सिर्फ एक ही विशेषज्ञता है, शाोषण कर हराम की कमाई का मालिक होना और उसके आधार पर अपने ही समाज के पिछड़े दबेकुचले वर्ग का शोषण करना।
राज्य की अशोक गहलोत सरकारा को अब गम्भीरता से समझ लेना चाहिये कि चंद पूंजीपतियों के बूते पर इस समाज के वोटों को बटोरा जाना अब सम्भव नहीं है। अब जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिया जाना ही उचित होगा। -आशीष कुमार जैन