जयपुर (अग्रगामी) कहते हैं कि भारत आज से 65 साल पहिले 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ। दूसरे शब्दों में हम मानते हैं कि इस दिन देश की सत्ता का हस्तान्तरण मात्र हुआ था और देश गोरे हुक्कामों के चंगुल से मुक्त हो कर काले हुक्कामों के हाथों में चला गया और आज ये काले हुक्काम तो गोरे हुक्कमों से भी ज्यादा शातिर निकले! इनका सोच तो क्रूर गोरे सामन्तवादियों से भी निकृष्ट है।
हमारे देश भारत को 1950 में गणतान्त्रिक देश स्वीकारा गया। आम अवाम के दिल में यह पैठाये जाने की कोशिश की गई कि देश में जनता द्वारा, जनता के लिये, जनता का शासन कायम कर दिया गया है। लेकिन 65 साल की इस कथित आजादी और गणतान्त्रिक व्यवस्था के हाल यह हैं कि गण और तंत्र आमने-सामने हैं। देश का पूरा तंत्र जनता को कुचलने-मसलने में लगा है।
कहने को तो देश में राजे-रजवाड़ों का शासन खत्म कर जनता का राज कायम कर दिया गया। लेकिन सामन्ती तत्व इस गणतंत्र की शासन प्रक्रिया में गहरी घुस पैठ कर गये। नतीजन आजादी के 65 साल बाद आज सामन्तवाद पुनर्जन्म ले रहा है।
राजस्थान पहिले राजपूताने के नाम से सामन्तवादी राजे-रजवाड़ों की जागीरों का एक समूह था। देश की आजादी के बाद लोहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के दबंग शासन दण्ड ने इन राजे-रजवाड़ों को अतीत का इतिहास बना कर एक नये ग्रेटर राजस्थान का रूप दिलवाया। राजस्थान में अवाम को रजवाड़ों के सामन्तवादी जागीरदारों के शोषण, अत्याचार से मुक्त करवा कर देश की गणतान्त्रिक व्यवस्था से जोडऩे का श्रेय सिर्फ और सिर्फ सरदार वल्लभ भाई पटेल को ही जाता है।
लेकिन देश की इस 65 साल पुरानी कथित आजादी को भी अब राजनैतिक पार्टियों में पीछे के दरवाजे से घुसे सामन्तवादी तत्वों और नव सामन्तवादियों ने नेस्तनाबूद करने की मुहिम शुरू कर दी है। जैसाकि हमने अग्रगामी संदेश के गत 01 अप्रेल, 2013 के अंक में साया किया था कि राजस्थान में अपने आपको महात्मा गांधी की अहिंसा के पुजारी आरोपित करने वाले कांग्रेसी और अन्य विरोधी दल राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों और आसन्न लोकसभा चुनावों के महादंगल में यात्राओं के महासमर में जुटी हैं, सत्तारूढ़ कांग्रेस संदेश यात्रा निकाल रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी स्वराज्य संकल्प यात्रा पर निकल पड़ी है। राष्ट्रीय जनता पार्टी (एनपीपी) के प्रदेशाध्यक्ष डॉ.किरोड़लाल मीणा की हेलीकाप्टर यात्रा चल ही रही है वहीं जनता दल यूनाइटेड की शवयात्रा भी धीमी चाल से चल निकली है। लाल झण्डे वाले तो अपनी रथयात्रा पहिले ही पूरी कर चुके हैं और अघोषित तरीके से अवाम से सीधे सम्पर्क की मुहिम पर निकल चुके हैं।
लेकिन संदेश यात्रा से शवयात्रा तक वाया हेलीकाप्टर यात्रा, के जरिये राज्य में नवसामन्तवाद का जन्म हो गया है। आप यह भी कह सकते हैं कि राजस्थान में सामन्तवाद का पुर्नजन्म हो गया है। जिधर देखो आधुनिक रथ, रजवाड़ों के जमाने के साफे, तीर, तलवारें, मुकुट और न जाने क्या-क्या टोटके सामन्तवाद को पुर्नजिवित करते नजर आ रहे हैं। अशोक गहलोत हों या फिर वसुन्धरा राजे या फिर अन्य दूरे सत्ता के भूखे राजनेता! जिसे देखो तलवार लहराता, कमान में तीर अटकाता नजर आ रहा है। ऐसा लगने लगा है कि गणतंत्र का चुनावी समर न हो कर कोई नौटंकी चल रही है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो कि कांग्रेस की नय्या के खेवनहार हैं, या यूं कहिये की कृष्ण की तरह कांग्रेस के सारथी हैं, वे भी तीर और तलवारों के बीच उलझ गये हैं। उधर वसुन्धरा राजे भी देश की गणतंत्रिक व्यवस्था को ठेंगा दिखा कर तीर, तलवारों, मुकुट के जरिये अपनी सामन्तवादी सोच और अहंकार का खुला नाच दिखा रही हैं। एनपीपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ.किरोडीलाल मीणा और जनता दल युनाइटेड के मुकुटधारी चंद्रराज सिंघवी भी इनसे पीछे नहीं है।
अब अवाम की समझ में नहीं आ रहा है कि वे लोकतंत्र और गणतान्त्रिक शासन व्यवस्था में सांस ले रहे हैं या फिर पुर्नजिवित सामन्ती तत्वों के बूंटों तले रौंदे जाने के लिये मजबूर किये जा रहे हैं।
सत्ता के भूखे ये राजनेता सत्ता पाने के लिये तलवार-तीर भांजने या फिर रथ की सवारी और सिर पर मुकुट धारण करने की नौटंकियां तो कर सकते हैं, लेकिन मंहगाई, बेरोगारी, निगड़ती कानून-व्यवस्था के हालात, साम्प्रदायिकता, गरीबों-महिलाओं पर असरदार सामन्तवादी, पूंजीवादी इजारेदारों, नवधनाढ्यों के अत्याचारों से पीडि़त अवाम के हरे घावों को सहलाने वाला कोई भी नजर नहीं आता। जनता की दयनीय हालत भी देखिये कि उसे देश की गणतान्त्रिक व्यवस्था में इन्हें नकारने का हक भी नहीं है। उसे इन सामन्तवादियों-नवसामन्तवादियों में से ही एक को चुनना होगा। क्योंकि जनतंत्र के हाथों मजबूर जो है!
हमारे देश भारत को 1950 में गणतान्त्रिक देश स्वीकारा गया। आम अवाम के दिल में यह पैठाये जाने की कोशिश की गई कि देश में जनता द्वारा, जनता के लिये, जनता का शासन कायम कर दिया गया है। लेकिन 65 साल की इस कथित आजादी और गणतान्त्रिक व्यवस्था के हाल यह हैं कि गण और तंत्र आमने-सामने हैं। देश का पूरा तंत्र जनता को कुचलने-मसलने में लगा है।
कहने को तो देश में राजे-रजवाड़ों का शासन खत्म कर जनता का राज कायम कर दिया गया। लेकिन सामन्ती तत्व इस गणतंत्र की शासन प्रक्रिया में गहरी घुस पैठ कर गये। नतीजन आजादी के 65 साल बाद आज सामन्तवाद पुनर्जन्म ले रहा है।
राजस्थान पहिले राजपूताने के नाम से सामन्तवादी राजे-रजवाड़ों की जागीरों का एक समूह था। देश की आजादी के बाद लोहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के दबंग शासन दण्ड ने इन राजे-रजवाड़ों को अतीत का इतिहास बना कर एक नये ग्रेटर राजस्थान का रूप दिलवाया। राजस्थान में अवाम को रजवाड़ों के सामन्तवादी जागीरदारों के शोषण, अत्याचार से मुक्त करवा कर देश की गणतान्त्रिक व्यवस्था से जोडऩे का श्रेय सिर्फ और सिर्फ सरदार वल्लभ भाई पटेल को ही जाता है।
लेकिन देश की इस 65 साल पुरानी कथित आजादी को भी अब राजनैतिक पार्टियों में पीछे के दरवाजे से घुसे सामन्तवादी तत्वों और नव सामन्तवादियों ने नेस्तनाबूद करने की मुहिम शुरू कर दी है। जैसाकि हमने अग्रगामी संदेश के गत 01 अप्रेल, 2013 के अंक में साया किया था कि राजस्थान में अपने आपको महात्मा गांधी की अहिंसा के पुजारी आरोपित करने वाले कांग्रेसी और अन्य विरोधी दल राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों और आसन्न लोकसभा चुनावों के महादंगल में यात्राओं के महासमर में जुटी हैं, सत्तारूढ़ कांग्रेस संदेश यात्रा निकाल रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी स्वराज्य संकल्प यात्रा पर निकल पड़ी है। राष्ट्रीय जनता पार्टी (एनपीपी) के प्रदेशाध्यक्ष डॉ.किरोड़लाल मीणा की हेलीकाप्टर यात्रा चल ही रही है वहीं जनता दल यूनाइटेड की शवयात्रा भी धीमी चाल से चल निकली है। लाल झण्डे वाले तो अपनी रथयात्रा पहिले ही पूरी कर चुके हैं और अघोषित तरीके से अवाम से सीधे सम्पर्क की मुहिम पर निकल चुके हैं।
लेकिन संदेश यात्रा से शवयात्रा तक वाया हेलीकाप्टर यात्रा, के जरिये राज्य में नवसामन्तवाद का जन्म हो गया है। आप यह भी कह सकते हैं कि राजस्थान में सामन्तवाद का पुर्नजन्म हो गया है। जिधर देखो आधुनिक रथ, रजवाड़ों के जमाने के साफे, तीर, तलवारें, मुकुट और न जाने क्या-क्या टोटके सामन्तवाद को पुर्नजिवित करते नजर आ रहे हैं। अशोक गहलोत हों या फिर वसुन्धरा राजे या फिर अन्य दूरे सत्ता के भूखे राजनेता! जिसे देखो तलवार लहराता, कमान में तीर अटकाता नजर आ रहा है। ऐसा लगने लगा है कि गणतंत्र का चुनावी समर न हो कर कोई नौटंकी चल रही है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो कि कांग्रेस की नय्या के खेवनहार हैं, या यूं कहिये की कृष्ण की तरह कांग्रेस के सारथी हैं, वे भी तीर और तलवारों के बीच उलझ गये हैं। उधर वसुन्धरा राजे भी देश की गणतंत्रिक व्यवस्था को ठेंगा दिखा कर तीर, तलवारों, मुकुट के जरिये अपनी सामन्तवादी सोच और अहंकार का खुला नाच दिखा रही हैं। एनपीपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ.किरोडीलाल मीणा और जनता दल युनाइटेड के मुकुटधारी चंद्रराज सिंघवी भी इनसे पीछे नहीं है।
अब अवाम की समझ में नहीं आ रहा है कि वे लोकतंत्र और गणतान्त्रिक शासन व्यवस्था में सांस ले रहे हैं या फिर पुर्नजिवित सामन्ती तत्वों के बूंटों तले रौंदे जाने के लिये मजबूर किये जा रहे हैं।
सत्ता के भूखे ये राजनेता सत्ता पाने के लिये तलवार-तीर भांजने या फिर रथ की सवारी और सिर पर मुकुट धारण करने की नौटंकियां तो कर सकते हैं, लेकिन मंहगाई, बेरोगारी, निगड़ती कानून-व्यवस्था के हालात, साम्प्रदायिकता, गरीबों-महिलाओं पर असरदार सामन्तवादी, पूंजीवादी इजारेदारों, नवधनाढ्यों के अत्याचारों से पीडि़त अवाम के हरे घावों को सहलाने वाला कोई भी नजर नहीं आता। जनता की दयनीय हालत भी देखिये कि उसे देश की गणतान्त्रिक व्यवस्था में इन्हें नकारने का हक भी नहीं है। उसे इन सामन्तवादियों-नवसामन्तवादियों में से ही एक को चुनना होगा। क्योंकि जनतंत्र के हाथों मजबूर जो है!