जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिये जाने पर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ओर अतिहिन्दुवादी तत्व शुरू से ही विरोध करते आये हैं। उनका सोच साफ है कि हर हाल में जैन समुदाय को घोषित हिन्दू करार दे दिया जाये। लेकिन न्यायालय द्वारा जैन समुदाय को स्वतंत्र धार्मिक समूह मानते के चलते उनकी बोलती बंद हो गई। जैन समुदाय में दिगम्बर मत के लोग जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिये जाने की पुरजोर मांग करते रहे है। इस मामले में दिगम्बर मत के लोग पुरजोर तरीके से एकजुट हैं।
उधर श्वेताम्बर मत के कुछ पूंजीपति-सरमायेदार और उनके पिछलग्गू अपने आर्थिक हित साधन के लिये जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त करने में निम्र स्तर से नीचे तक जाकर विरोध कर रहे हैं। अपने हित साधन के लिये ये पूंजीपति-सरमायेदार श्वेताम्बर समुदाय और उनकी संस्थाओं के अगड़े बन कर अपने कालेधन के बूते पर कुछ साधु-सन्यासियों को बरगला कर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलाने में रोड़े अटका रहे हैं।
पूरा देश जानता है कि अगर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिल जाता है तो इस समाज के पिछड़े-दबे-कुचले तबके को शैक्षणिक-आर्थिक एवं सामाजिक विकास में काफी कुछ मदद मिलेगी। साधु-सन्यासियों पर हो रहे हमले-अत्याचारों पर अंकुश लगेगा। सांस्कृतिक तथा इतिहास अकादमियां स्थापित होंगी, जिससे जैन समुदाय को अपने अतीत के इतिहास और सांस्कृतिक परम्पराओं की विषद् जानकारियां हांसिल होने में मदद मिलेगी।
श्वेताम्बर समाज के पंूजीपतियों को डर है कि अगर समाज का पिछड़ा, पीडि़त, शोषित वर्ग सरकारी मदद से प्रगति के रास्ते पर बढ़ेगा तो उनकी दुकानारी खत्म हो जायेगी और समाज का नेतृत्व प्रगतिशील शिक्षित वर्ग के हाथ में चला जायेगा। इस पूंजीपति-सरमायेदार वर्ग और इनके दुमछल्लों को यह भी चिंता सता रही है कि अगर समाज जागृत हो गया तो धर्म और समाज की आड़ में इन लोगों ने जो दुकानदारियां जमा रखी है वे भी खत्म हो जायेगी और इसके साथ ही धर्म और समाज के नाम पर उनके द्वारा मचाई जा रही लूट पर भी अंकुश लग जायेगा।
आज जैन समुदाय में जो सबसे ज्यादा आवश्यकता है वह है कि पूरा जैन समुदाय एकजुट हो अपना अल्पसंख्यक वर्ग का संवैधानिक दर्जा सरकार से प्राप्त करें।
उधर श्वेताम्बर मत के कुछ पूंजीपति-सरमायेदार और उनके पिछलग्गू अपने आर्थिक हित साधन के लिये जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त करने में निम्र स्तर से नीचे तक जाकर विरोध कर रहे हैं। अपने हित साधन के लिये ये पूंजीपति-सरमायेदार श्वेताम्बर समुदाय और उनकी संस्थाओं के अगड़े बन कर अपने कालेधन के बूते पर कुछ साधु-सन्यासियों को बरगला कर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलाने में रोड़े अटका रहे हैं।
पूरा देश जानता है कि अगर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिल जाता है तो इस समाज के पिछड़े-दबे-कुचले तबके को शैक्षणिक-आर्थिक एवं सामाजिक विकास में काफी कुछ मदद मिलेगी। साधु-सन्यासियों पर हो रहे हमले-अत्याचारों पर अंकुश लगेगा। सांस्कृतिक तथा इतिहास अकादमियां स्थापित होंगी, जिससे जैन समुदाय को अपने अतीत के इतिहास और सांस्कृतिक परम्पराओं की विषद् जानकारियां हांसिल होने में मदद मिलेगी।
श्वेताम्बर समाज के पंूजीपतियों को डर है कि अगर समाज का पिछड़ा, पीडि़त, शोषित वर्ग सरकारी मदद से प्रगति के रास्ते पर बढ़ेगा तो उनकी दुकानारी खत्म हो जायेगी और समाज का नेतृत्व प्रगतिशील शिक्षित वर्ग के हाथ में चला जायेगा। इस पूंजीपति-सरमायेदार वर्ग और इनके दुमछल्लों को यह भी चिंता सता रही है कि अगर समाज जागृत हो गया तो धर्म और समाज की आड़ में इन लोगों ने जो दुकानदारियां जमा रखी है वे भी खत्म हो जायेगी और इसके साथ ही धर्म और समाज के नाम पर उनके द्वारा मचाई जा रही लूट पर भी अंकुश लग जायेगा।
आज जैन समुदाय में जो सबसे ज्यादा आवश्यकता है वह है कि पूरा जैन समुदाय एकजुट हो अपना अल्पसंख्यक वर्ग का संवैधानिक दर्जा सरकार से प्राप्त करें।