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क्या पुलिस फोर्स राजनेताओं की जागीर है?

जयपुर  (अग्रगामी) लगता है राजनेताओं, असरदार पूंजीपतियों और उनके रसूखदार चमचों-दुमछल्लों ने राजस्थान पुलिस को अपनी बपौती या बाप की जागीर समझ रखा है। आईपीएल के लिये पुलिस फोर्स चाहिये! वहीं राजनेताओं और उनके दुमछल्लों और रसूखदार पूंजीपतियों-इजारेदारों को गनमैन या पीएसओ चाहिये अपना स्टेटस् और रूतबा कायम करने के लिये! राजस्थान की आधी पुलिस फोर्स राजनेताओं, असरदार पूंजीपतियों उनके क्रिकेट फण्डे, संकल्प यात्रा से शवयात्राओं, धार्मिक जुलूसों और न जाने कितने बेतुके आयोजनों में आगे पीछे लग कर अपना मनोबल खोती रहती है और असरदार स्वार्थी तत्व पुलिस घेरे में सीना तान कर इस तरह चलते हैं जैसे कि पुलिस फोर्स इनके बाप की जागीर हो!
दर्दनाक स्थिति यह है कि जब मामूली सी बात को लेकर कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती है तो ये बेशर्म राजनेता और उनके दुमछल्ले अपने-अपने दड़बों में दुबक जाते हैं और इनके गैरजुम्मेदारान रवैये, हरकतों और करतूतों का खमियाजा पुलिस के जवानों को भुगतना पड़ता है। राज्य के मुखिया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राजस्थान के ताज के लिये तरस रही पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और हेलीकाप्टर यात्रा में जुटे सांसद किरोड़ीलाल मीणा की यात्राओं के बन्दोबस्त में जुटे सैंकड़ों पुलिसकर्मी क्या राज्य की कानून और व्यवस्था को कमजोर नहीं कर रहे हैं? क्यों कुर्सी के भूखे इन नेताओं की हाजरी में भारी तादाद में पुलिस फोर्स को लगाया जा रहा है। वहीं आईपीएल के मैचों से भी पुलिस फोर्स का क्या लेना देना? करें अपनी सुरक्षा के लिये व्यवस्था आईपीएल के लोग! इसके लिये इण्डस्ट्रीयल सीक्यूरिटी फोर्स और बोर्डर होमगार्डस तथा होमगार्डस की लम्बी चौड़ी फोर्स पड़ी है। अगर ज्यादा जरूरत हो तो लगायें राजस्थान आर्मड पुलिस (आरएसी) को!
पिछले दिनों वकीलों का विधानसभा पर प्रदर्शन था। मामला सरकार, हाईकोर्ट और वकीलों के बीच का था। सरकारी नुमायन्दों के रूप में पुलिस बीच में आ गई। पिटे वकील और पुलिसवाले! जबकि वकीलों के प्रदर्शन से पुलिस का कोई लेना देना नहीं था। वकीलों की समस्याऐं सरकार से सम्बन्धित थी। लेकिन सरकार के मंत्री और नेता नांगले घुस गये अपने दड़बों में और आमने सामने हो गये वकील और पुलिसवाले। पिटवा दिया वकीलों और पुलिसवालों को! नतीजन एक पुलिस अफसर तो अपना जबड़ा ही तुड़वा बैठे और दोनों पक्षों में बिना मतलब कातनाव हो गया।
सूरवाल काण्ड को ही लें। पुलिस फोर्स का मनोबल इतना गिरा हुआ था कि वे अपने थाना अधिकारी को ही छोड़ भागे। नतीजन उपद्रवियों ने उन्हें जिन्दा जला दिया। इस मामले में भी पुलिस का सीधा-सीधा कोई लेनादेना नहीं थी। मामला जिला प्रशासन और सरकार से जुड़ा था जबकि भुगता पुलिस फोर्स ने और अब पीड़ा भुगत रहे हैं शहीद के परिजन और बच्चे!
ऐसे कई मामले हैं जिस में सरकार और सिविल प्रशासन की नाकामी और नालायकी के कारण ऊपरी दबाव के चलते पुलिस को स्थिति सम्भालने के लिये बीच में आना पड़ता है जबकि उसका उन मुद्दों से कोई लेनादेना नहीं होता है और फिर स्थिति पुलिस बनाम अवाम हो जाती है।
ताजा तरीन मामला है जयपुर शहर के सांगानेर क्षेत्र का! सूत्र बताते हैं कि मोटरसाइकल खड़ी करने के मामूली से विवाद को लेकर जो फसाद हुआ है, अगर राजनेता और क्षेत्र के चुनिन्दा प्रतिनिधियों की क्षेत्र में पकड़ होती तो, उसे तत्काल स्थानीय स्तर पर सुलझाया जा सकता था। लेकिन अपनी सुरक्षा के लिये पुलिस पर मोहताज राजनेता तो वहां से लापता थे। दूसरे सिविल प्रशासन की नालायकी देखिये, सांगानेर के शिकारपुर रोड़ बाजार में कबाडिय़ों की दुकानों में शराब व अन्य काम में आई हुई खाली बोतलों का खुले में भण्डारण है। इस इलाके में जब भी कोई झगड़ा होता है इन खाली बोतलों का मिसाइल की तरह इस्तेमाल होता है। इस झगड़े में भी दस हजार से ज्यादा कबाड़ की बोतलों का मिसाइलों की तरह इस्तेमाल किया गया। जिले के जिला कलक्टर, एडीएम एवं स्थानीय एसडीएम ओर तहसीलदार तथा जयपुर नगर निगम के अफसरों तथा अहलकारों को इसकी जानकारी होते हुए भी स्थापित कानूनों की पालना में इन्हें नहीं हटाया गया। आखीर क्यों? क्या ये प्रशासनिक अधिकारी और अहलकार राज्य सरकार के पब्लिक सर्वेन्ट नहीं है और क्या यह काम भी अब पुलिस को ही करना होगा? इन हुक्कामों और अहलकारों का काम क्या सिर्फ रिश्वत बटोरना या कमीशनखोरी ही बचा है और क्या यह काम भी अब पुलिस को ही करना होगा?
सूत्र बताते हैं कि इन बोतलरूपी मिलाइलों की अचानक बौछारों से हक्का बक्का हुए पुलिस के जवानों को एक बारगी पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। भीड़ में घिरे एसीपी राजेश भील पर उपद्रवियों के हमले में वे गम्भीर रूप से घायल हुए। उन्हें फोर्टिस हास्पिटल में भर्ती करवाया गया है जहां उनके चहरे पर बीस टांके आये हैं। एडीशनल डीसीपी योगेश दाधीच को पांव में चार टांके आये। जयपुर के कार्यवाहक पुलिस कमिश्रर बीजू जोर्ज जोसफ की ऊंगली में आठ टांके आये हैं।
सांगानेर में हुए झगड़े के बाद उत्पन्न स्थिति से और बोलतरूपी मिशाइलों के हमले से जब पुलिसवाले मोर्चे से पीछे हटे तो जयपुर पुसिल बेड़े के कमाण्डर बीजू जोर्ज जोसफ ने लीड लेकर अपने जवानों को ललकारा और आगे बढऩे की चुनौती दी। उनकी हिम्मत और कमाण्ड का नतीजा यह रहा कि पुलिस के जवानों ने मोर्चा सम्भाला और वज्र और दंगारोधी दस्ता मौके पर पहुंचने के साथ ही स्थिति काबू में आई। लेकिन ये पंक्तियां लिखने तक पूरी तरह काबू में नहीं आई है। क्योंकि पर्दे के पीछे से राजनीति, जाति-धर्म का इसमें छौंका लगाया जा रहा है।
शर्मनाक स्थिति यह रही कि पुलिस वाहनों के पब्लिक एड्रेस सिस्टम खराब थे। काफी तादाद में पुलिसकर्मियों और अफसरों के पास स्टील, हैल्मेट और डण्डे नहीं थे। लेकिन अपने कमाण्डर बीजू जोर्ज जोसफ के जज्बे, उनकी ललकार और फोर्स केआगे चलने की उनकी जानदार हिम्मत ने मातहत अफसरों और जवानों में जोश भर दिया।
लेकिन इससे भी शर्मनाक स्थिति यह रही कि राजस्थान पुलिस के डीजीपी हरीश मीना दफ्तर में बैठे-बैठे अपने अधीनस्थ अफसरों से स्थिति का मात्र जायजा लेते रहे। जरूरत इस बात की थी कि खुद डीजीपी हरीश मीना अतिरिक्त फोर्स लेकर मौके पर पहुंचते और सख्त कार्यवाही को अंजाम देकर पुलिस का इकबाल कायम करते। लेकिन शायद उन्हें अपने दफ्तर में बैठ कर एयरकण्डिशनर की हवा खाने से फुरसत ही नहीं मिल रही है! शायद हमारे डीजीपी फील्ड की ड्यूटीज को भूल गये हैं!
वक्त आ गया है कि अब राजस्थान पुलिस के डीजीपी साहब को दफ्तर में बैठ कर बाबुओं की तरह फाइलों को निपटाने के काम को सीमित कर फील्ड ड्यूटीज को तवज्जो देने के बारे में फैसला लेना चाहिये। उनके लिये आज दफ्तर में बैठ कर वक्त गुजारने से ज्यादा फील्ड में घूम-घूम कर राज्य की पुलिस के जवानों का मनोवल ऊंचा करने और पुलिस का इकबाल कायम करने के लिये मेहनत करना आवश्यक है अन्यथा इस्तीफा देकर किसी विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩा ही ठीक रहेगा!

 
AGRAGAMI SANDESH

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AGEAGAMI SANDESH

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