राजस्थान सरकार ने पिछले दरवाजे से छोटे और मझौले अखबारों को दिये जा रहे वर्गीकृत विज्ञापनों पर रोक लगा दी बताई जाती है। सूत्र बताते हैं कि राज्य के वित्त विभाग ने प्रदेश के सभी पाक्षिक-साप्ताहिक अखबारों को दिये जा रहे विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिये सम्बन्धित वित्त नियमों और आदेशों में संशोधन किया है।
गुपचुप में की गई वित्त विभाग की इस कार्यवाही से प्रदेश के लद्यु समाचार पत्रों और उनसे जुड़े पत्रकारों में भारी आक्रोश है। इन समाचार पत्रों से जुड़े पत्रकारों का मानना है कि बड़े समाचार पत्रों को मोटा लाभ पहुंचाने के लिये सरकारी स्तर पर छोटे अखबारों का गला घोटा जा रहा है।
दु:खद स्थिति यह भी है कि भाजपा के मठाधीश भी इस मुद्दे पर मौन धारण किये बैठे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा भी कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के सुर में सुर मिला कर छोटे अखबारों को कुचलना चाहते हैं। शर्मनाक स्थिति यह भी है कि खुद छोटे अखबारों के संगठनों के सुपर नेतागण भी छोटे अखबारों के हितों के लिये कार्य करने की बजाय संगठनों में पद पर काबिज होकर अपने हित साधने में जुटे हैं, नतीजा आम छोटे अखबारों और पत्रकारों को भुगतना पड़ रहा है।
गुपचुप में की गई वित्त विभाग की इस कार्यवाही से प्रदेश के लद्यु समाचार पत्रों और उनसे जुड़े पत्रकारों में भारी आक्रोश है। इन समाचार पत्रों से जुड़े पत्रकारों का मानना है कि बड़े समाचार पत्रों को मोटा लाभ पहुंचाने के लिये सरकारी स्तर पर छोटे अखबारों का गला घोटा जा रहा है।
दु:खद स्थिति यह भी है कि भाजपा के मठाधीश भी इस मुद्दे पर मौन धारण किये बैठे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा भी कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के सुर में सुर मिला कर छोटे अखबारों को कुचलना चाहते हैं। शर्मनाक स्थिति यह भी है कि खुद छोटे अखबारों के संगठनों के सुपर नेतागण भी छोटे अखबारों के हितों के लिये कार्य करने की बजाय संगठनों में पद पर काबिज होकर अपने हित साधने में जुटे हैं, नतीजा आम छोटे अखबारों और पत्रकारों को भुगतना पड़ रहा है।