जयपुर (अग्रगामी) पुलिस-वकील घमासान के मुद्दे पर हाईकोर्ट से अब पुलिसकर्मी भी बिफर गये हैं। अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर पुलिसकर्मियों ने अग्रगामी संदेश को बताया कि पुलिस-वकील घमासान को लेकर हाईकोर्ट में वकीलों की ओर से उनके संगठनों ने पैरवी की! जबकि पुलिसकर्मियों की पैरवी करने के लिये कोई आगे नहीं आया! ऐसे में कांस्टेबिल से इन्सपेक्टर तक के पुलिसकर्मियों को अपने कल्याण और अपनी सुरक्षा के लिये यूनियन बनाने का हक मिलना चाहिये!
पुलिसकर्मियों का मानना है कि वकीलों की जो मांगे हैं, वे राज्य सरकार व हाईकोर्ट से सम्बन्धित हैं। अगर उन्हें कोई पीड़ा है तो वे अपनी पीड़ा हाईकोर्ट के माध्यम से सरकार तक पहुंचा सकते हैं। कानून और व्यवस्था बिगाडऩे का हक उन्हें किसने दिया? पुलिसकर्मियों के सवाल किया कि कांस्टेबिल से लेकर इन्सपेक्टर तक के पुलिसकर्मियों को वेतन भत्तों, छुट्टियों, काम के घंटों, पुलिसकर्मी परिवार कल्याण, आवास जैसी गम्भीर समस्याओं से झूंझना पड़ रहा है, लेकिन राज्य सरकार के कान पर जूं भी नहीं रेंक रही है। इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया भी आम पुलिसकर्मियों की पीड़ा को उजागर नहीं कर रहा है। ऐसे हालात में हमें भी हमारी आवाज उठाने के लिये यूनियन बनाने का हक मिलना चाहिये।
पुलिसकर्मियों ने कहा कि हम जांच से नहीं डरते हैं, जांच होने दो दूध का दूध, पानी का पानी हो जायेगा। लेकिन हमारा सवाल है कि इस जांच में हमारा पक्ष रखने के लिये हमारी यूनियन होनी जरूरी है और इस हेतु हमें यूनियन बनाने के लिये वैधानिक स्वीकृति दी जानी चाहिये।
पुलिसकर्मियों का मानना है कि वकीलों की जो मांगे हैं, वे राज्य सरकार व हाईकोर्ट से सम्बन्धित हैं। अगर उन्हें कोई पीड़ा है तो वे अपनी पीड़ा हाईकोर्ट के माध्यम से सरकार तक पहुंचा सकते हैं। कानून और व्यवस्था बिगाडऩे का हक उन्हें किसने दिया? पुलिसकर्मियों के सवाल किया कि कांस्टेबिल से लेकर इन्सपेक्टर तक के पुलिसकर्मियों को वेतन भत्तों, छुट्टियों, काम के घंटों, पुलिसकर्मी परिवार कल्याण, आवास जैसी गम्भीर समस्याओं से झूंझना पड़ रहा है, लेकिन राज्य सरकार के कान पर जूं भी नहीं रेंक रही है। इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया भी आम पुलिसकर्मियों की पीड़ा को उजागर नहीं कर रहा है। ऐसे हालात में हमें भी हमारी आवाज उठाने के लिये यूनियन बनाने का हक मिलना चाहिये।
पुलिसकर्मियों ने कहा कि हम जांच से नहीं डरते हैं, जांच होने दो दूध का दूध, पानी का पानी हो जायेगा। लेकिन हमारा सवाल है कि इस जांच में हमारा पक्ष रखने के लिये हमारी यूनियन होनी जरूरी है और इस हेतु हमें यूनियन बनाने के लिये वैधानिक स्वीकृति दी जानी चाहिये।