जयपुर/बीकानेर (अग्रगामी) अपने आपको श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ का धर्माचार्य आरोपित करने वाले एक धर्माचार्य ने धन की लिप्सा में डूबकर और एक धनपति से सांठगांठ कर जैन संस्कृति के आचार्य जिन कुशल सूरि के चरण एवं कुन्थूनाथ स्वामी के जिनालय को खुर्दबुर्द करवाने की साजिशपूर्ण जुर्रत की है।
मामला है, जयपुर के जौंहरी बाजार के मोतीसिंह भौमियों का रास्ता स्थिति श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छीय उपाश्रय म्युनिसिपल नम्बर 3826 (जयपुर नगर निगम के रेकार्ड में प्लाट नं. ए-1)और उसमें स्थापित भगवान कुन्थूनाथ स्वामी के मंदिर और दादा गुरूदेव श्री जिन कुशल सूरि के चरणों को खुर्दबुर्द करने का! यह धार्मिक स्थल जन साधारण में उपाध्याय श्री श्यामलाल जी यति का उपाश्रय के नाम से मशहूर है।
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की मंडोवरा शाखा में आचार्य जिन हर्ष सूरि के आकस्मिक स्वर्गवास के बाद उत्तराधिकारी के मुद्दे पर भारी मतभेद के चलते जोधपुर नरेश एवं जैसलमेर के पटवा सेठों ने श्री जिन महेन्द्रसूरि को मण्डोवरा शाखा के पाट पर बैठा दिया! उधर तत्कालीन बीकानेर नरेश व वयोवृद्ध ज्ञानवृद्ध यतिजनों ने जिन सौभाग्यसूरि को पाट पर बैठा कर बीकानेर गद्दी प्रमुख घोषित कर दिया। नतीजन मण्डोवरा शाखा का विभाजन हो गया। इस तरह श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ में तीन आचार्यों की गद्दियां स्थापित हो गई। वर्तमान में ये गद्दियां जयपुर, लखनऊ और बीकानेर में स्थित हैं।
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ का यह श्रीश्यामलाल जी यति के उपाश्रय के नाम से मशहूर उपाश्रय बीकानेर गद्दी के आचार्य जिन चरित्रसूरि के आधीन संचालित रहा है और तत्पश्चात इसके संचालन का भार उनके पट्टधर शिष्य विजयचंद्र सूरि पर आया। आचार्य विजय चंद्रसूरि ने अपने स्वर्गवास से पूर्व दिनांक 8 फरवरी, 1962 को लिखी अपनी वसीयत में साफ-साफ लिखा है कि--जयपुर में श्यामलाल जी गणि यति के उपाश्रय के नाम से प्रसिद्ध एक मिल्कियत है। जिसके हम मालिक हैं जो पूज्य गुरवर पं.श्यामलाल जी का होने के कारण उन के बाद मुझे मिला हुआ है। अब भी उस की देखरेख हम करवाते हैं, जिस का किराया हमें वसूल होता है। उक्त जयपुर वाला उपाश्रय मेरे पुज्य गुरवर के नाम के पीछे उनकी पुण्य स्मृति में उन्हीं के नाम से कायम करना चाहता हूं जो कायम रखा जावे। उसका प्रबन्ध भी उसी वसीयत के प्रबन्धक करेंगे। उनका अधिकार होगा कि वो किसी की मार्फत उस की व्यवस्था करावें उसका जो भी किराया वसूल हो उस का हिसाब अलग रखा जावे व उसी की लागत मरम्मत में लगावें। अगर हम हमारा जिन्दगी में उसका कोई दूसरा प्रबन्ध कर देंगे तो ऊपर लिखे प्रबन्ध की आवश्यकता नहीं होगी।
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के धार्मिक स्थल उपाध्याय श्री श्यामलाल जी यति के उपाश्रय के नाम से मशहूर इस उपाश्रय जिसमें भगवान कुन्थूनाथ की मूर्ति और दादा गुरूदेव के चरण प्रतिष्ठित थे, को बीकानेर गद्दी के वर्तमान आचार्य चंद्रसूरि काफी वर्षों पूर्व से ही बेचने की जुगत बैठा रहे थे। वर्ष 1991 से ही उन्होंने इस उपाश्रय को बेचने के प्रयास तेज कर दिये थे। उन्हीं वर्षों में आचार्य चंद्रसूरि के एक रिश्तेदार जौहरी बाजार, जयपुर के एक बैंक में कार्यरत थे। आचार्य चंद्र सूरि ने अपने बीकानेर निवासी एक विश्वस्त शिवरतन आचार्य जोकि बीकानेर से एक लद्यु समाचार पत्र निकालते थे और उनके पिता के नाम से भी एक समाचार पत्र पंजीकृत था, को अपने बैंक में कार्यरत रिश्तेदार के साथ मिल कर इस उपाश्रय को बेचने के मौखिक निर्देश दिये थे! बीकानेर गद्दी के आचार्य चंद्रसूरि के इस कृत्य का तब जबर्दस्त विरोध हुआ था। नतीजन वे इस उपाश्रय को बेचने में सफल नहीं हुए!
आचार्य जिन चंद्रसूरि द्वारा इस उपाश्रय को बेचने के विरोध के बीच बीकानेर गद्दी के स्वर्गवासी आचार्य विजयचंद्र सूरि की वसीयत के मद्देनजर अखिल भारतीय श्री जैन श्वेतम्बर खरतरगच्छ महासंघ के तत्कालीन क्षेत्रीय उपाध्यक्ष राजस्थान राजेन्द्र कुमार श्रीमाल ने जयपुर से प्रकाशित राजस्थान पत्रिका के दिनांक 11 अगस्त, 1993 के अंक में एक सूचना प्रकाशित करवा कर आम लोगों को आगाह किया था कि श्यामलाल जी यति के नाम से प्रसिद्ध यह उपाश्रय धार्मिक स्थल है और इसे किसी भी व्यक्ति, संस्थान व न्यास को रहन, विक्रय या अन्य किसी भी तरह से हस्तान्तरण करने का वैधानिक अधिकार नहीं है।
बावजूद, यह जानते हुए भी अपने आचार्या विजयचंद्र सूरि की वसीयत और इस उपाश्रय के लिये दी गई जमीन से सम्बन्धित निर्देशों की अवहेलना करने के साथ-साथ आम खरतरगच्छ संघ के श्रावकों की धार्मिक भावनाओं को नजरन्दाज कर बीकानेर गद्दी के वर्तमान आचार्य जिन चंद्रसूरि ने एक व्यवसायी से मिल कर इस उपाश्रय और इसमें प्रतिष्ठित भगवान कुन्थूनाथ स्वामी के जिनालय और दादा गुरूदेव जिन कुशल सूरि के चरणों को खुर्दबुर्द कर वहां एक कॉमर्शियल काम्प्लेक्स का निर्माण शुरू कर दिया। इस धार्मिक स्थल को उजाड कर धार्मिक स्थल की आड़ में अवैध कॉमर्शिलय काम्प्लेक्स बनाने के क्रम में गैर कानूनी तरीके से तहखाना (अण्डरग्राउंड) खोद कर उस पर आरसीसी की छत भी डाल दी गई। इस हेतु जयपुर नगर निगम से इजाजत तामीर भी नहीं ली गई।
शर्मनाक स्थिति यह कि गैर कानूनी तरीके से निर्माणाधीन इस अवैध कॉमर्शियल काम्प्लेक्स के अवैध निर्माण को हटाने के लिये गत 17 नवम्बर, 2012 को जयपुर नगर निगम ने आचार्य चंद्रसूरि को नोटिस भी दिया है। जिसका जवाब आज तक आचार्य जिन चंद्रसूरि द्वारा जयपुर नगर निगम में पेश नहीं किया गया है। इस नोटिस की एक प्रति उपाध्याय श्री श्यामलाल जी यति का उपाश्रय म्युनिसिपल नम्बर 3826 (जयपुर नगर नगम रेकार्ड में नम्बर ए-1 दर्ज) के गेट पर भी चस्पा किया गया है। जोकि ये पंक्तियां लिखने तक चस्पा है।
ज्ञातव्य रहे कि आचार्य चंद्र सूरि बीकानेर गद्दी के आचार्य तो जरूर हैं लेकिन बीकानेर गद्दी से जुड़ी सम्पत्तियों के न तो वे अधिकारी हैं और न ही वैध प्रबन्धकर्ता हैं। उन्हें बीकानेर गद्दी से जुड़ी सम्पत्तियों को रहन, विक्रय या हस्तान्तरण करने का अधिकार भी नहीं है।
सवाल यह भी उठता है कि उपाध्याय श्री श्यामलाल जी यति के उपाश्रय में प्रतिष्ठित रही स्वामी कुंन्थूनाथ स्वामी का देवालय कहां है?ï सवाल यह भी उठता है कि क्या इस जिनालय की प्रतिष्ठा श्री जिन सौभाग्यसूरि ने फाल्गुन शुक्ला तृतिया विक्रम सम्वत् 1907 को की थी?
इन सब की जानकारी आचार्य चंद्रसूरि एवं कथित विक्रेता या विक्रेताओं को देनी होगी। सिर्फ जानकारी ही नहीं मूर्तियों और दादा गुरूदेव के चरण भी उन्हें श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के श्रावकों को सुपर्द करने होंगे।
अग्रगामी संदेश ने इस पूरे प्रकरण में आचार्य जिन चंद्र सूरि से उनका पक्ष जानने के लिये उनके फोन नम्बर 0151-2886731 व 2886713 पर सम्पर्क करने की कोशिश की गई लेकिन वे बात करने से कतराते रहे। मोबाइल नं.-9829173801 पर बातचीत में किन्ही सुरेन्द्र डागा ने बताया कि इस प्रकरण में आचार्य जिन चंद्रसूरि ही कुछ बता सकते हैं। कुशलायतन की सचिव शालिनी कोठारी ने अपना मोबाइल 9829169991 नहीं उठाया। एक अन्य मोबाइल नम्बर 9929090893 पर जिसने फोन उठाया अपना नाम नहीं बताया, लेकिन सुरेन्द्र डागा का मोबाइल नम्बर देते हुए उनसे बात करने के लिये कहा।
इस प्रकरण में हम ओर भी तथ्यों को उजागर करेंगे, जिनमें जिनशासन को पतन के रास्ते ले जाने वाले निकृष्ट व्यक्तियों की धन, वैभव एवं प्रसिद्धि की महत्वकांक्षाऐं उजागर होंगी। क्रमश:
मामला है, जयपुर के जौंहरी बाजार के मोतीसिंह भौमियों का रास्ता स्थिति श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छीय उपाश्रय म्युनिसिपल नम्बर 3826 (जयपुर नगर निगम के रेकार्ड में प्लाट नं. ए-1)और उसमें स्थापित भगवान कुन्थूनाथ स्वामी के मंदिर और दादा गुरूदेव श्री जिन कुशल सूरि के चरणों को खुर्दबुर्द करने का! यह धार्मिक स्थल जन साधारण में उपाध्याय श्री श्यामलाल जी यति का उपाश्रय के नाम से मशहूर है।
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की मंडोवरा शाखा में आचार्य जिन हर्ष सूरि के आकस्मिक स्वर्गवास के बाद उत्तराधिकारी के मुद्दे पर भारी मतभेद के चलते जोधपुर नरेश एवं जैसलमेर के पटवा सेठों ने श्री जिन महेन्द्रसूरि को मण्डोवरा शाखा के पाट पर बैठा दिया! उधर तत्कालीन बीकानेर नरेश व वयोवृद्ध ज्ञानवृद्ध यतिजनों ने जिन सौभाग्यसूरि को पाट पर बैठा कर बीकानेर गद्दी प्रमुख घोषित कर दिया। नतीजन मण्डोवरा शाखा का विभाजन हो गया। इस तरह श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ में तीन आचार्यों की गद्दियां स्थापित हो गई। वर्तमान में ये गद्दियां जयपुर, लखनऊ और बीकानेर में स्थित हैं।
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ का यह श्रीश्यामलाल जी यति के उपाश्रय के नाम से मशहूर उपाश्रय बीकानेर गद्दी के आचार्य जिन चरित्रसूरि के आधीन संचालित रहा है और तत्पश्चात इसके संचालन का भार उनके पट्टधर शिष्य विजयचंद्र सूरि पर आया। आचार्य विजय चंद्रसूरि ने अपने स्वर्गवास से पूर्व दिनांक 8 फरवरी, 1962 को लिखी अपनी वसीयत में साफ-साफ लिखा है कि--जयपुर में श्यामलाल जी गणि यति के उपाश्रय के नाम से प्रसिद्ध एक मिल्कियत है। जिसके हम मालिक हैं जो पूज्य गुरवर पं.श्यामलाल जी का होने के कारण उन के बाद मुझे मिला हुआ है। अब भी उस की देखरेख हम करवाते हैं, जिस का किराया हमें वसूल होता है। उक्त जयपुर वाला उपाश्रय मेरे पुज्य गुरवर के नाम के पीछे उनकी पुण्य स्मृति में उन्हीं के नाम से कायम करना चाहता हूं जो कायम रखा जावे। उसका प्रबन्ध भी उसी वसीयत के प्रबन्धक करेंगे। उनका अधिकार होगा कि वो किसी की मार्फत उस की व्यवस्था करावें उसका जो भी किराया वसूल हो उस का हिसाब अलग रखा जावे व उसी की लागत मरम्मत में लगावें। अगर हम हमारा जिन्दगी में उसका कोई दूसरा प्रबन्ध कर देंगे तो ऊपर लिखे प्रबन्ध की आवश्यकता नहीं होगी।
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के धार्मिक स्थल उपाध्याय श्री श्यामलाल जी यति के उपाश्रय के नाम से मशहूर इस उपाश्रय जिसमें भगवान कुन्थूनाथ की मूर्ति और दादा गुरूदेव के चरण प्रतिष्ठित थे, को बीकानेर गद्दी के वर्तमान आचार्य चंद्रसूरि काफी वर्षों पूर्व से ही बेचने की जुगत बैठा रहे थे। वर्ष 1991 से ही उन्होंने इस उपाश्रय को बेचने के प्रयास तेज कर दिये थे। उन्हीं वर्षों में आचार्य चंद्रसूरि के एक रिश्तेदार जौहरी बाजार, जयपुर के एक बैंक में कार्यरत थे। आचार्य चंद्र सूरि ने अपने बीकानेर निवासी एक विश्वस्त शिवरतन आचार्य जोकि बीकानेर से एक लद्यु समाचार पत्र निकालते थे और उनके पिता के नाम से भी एक समाचार पत्र पंजीकृत था, को अपने बैंक में कार्यरत रिश्तेदार के साथ मिल कर इस उपाश्रय को बेचने के मौखिक निर्देश दिये थे! बीकानेर गद्दी के आचार्य चंद्रसूरि के इस कृत्य का तब जबर्दस्त विरोध हुआ था। नतीजन वे इस उपाश्रय को बेचने में सफल नहीं हुए!
आचार्य जिन चंद्रसूरि द्वारा इस उपाश्रय को बेचने के विरोध के बीच बीकानेर गद्दी के स्वर्गवासी आचार्य विजयचंद्र सूरि की वसीयत के मद्देनजर अखिल भारतीय श्री जैन श्वेतम्बर खरतरगच्छ महासंघ के तत्कालीन क्षेत्रीय उपाध्यक्ष राजस्थान राजेन्द्र कुमार श्रीमाल ने जयपुर से प्रकाशित राजस्थान पत्रिका के दिनांक 11 अगस्त, 1993 के अंक में एक सूचना प्रकाशित करवा कर आम लोगों को आगाह किया था कि श्यामलाल जी यति के नाम से प्रसिद्ध यह उपाश्रय धार्मिक स्थल है और इसे किसी भी व्यक्ति, संस्थान व न्यास को रहन, विक्रय या अन्य किसी भी तरह से हस्तान्तरण करने का वैधानिक अधिकार नहीं है।
बावजूद, यह जानते हुए भी अपने आचार्या विजयचंद्र सूरि की वसीयत और इस उपाश्रय के लिये दी गई जमीन से सम्बन्धित निर्देशों की अवहेलना करने के साथ-साथ आम खरतरगच्छ संघ के श्रावकों की धार्मिक भावनाओं को नजरन्दाज कर बीकानेर गद्दी के वर्तमान आचार्य जिन चंद्रसूरि ने एक व्यवसायी से मिल कर इस उपाश्रय और इसमें प्रतिष्ठित भगवान कुन्थूनाथ स्वामी के जिनालय और दादा गुरूदेव जिन कुशल सूरि के चरणों को खुर्दबुर्द कर वहां एक कॉमर्शियल काम्प्लेक्स का निर्माण शुरू कर दिया। इस धार्मिक स्थल को उजाड कर धार्मिक स्थल की आड़ में अवैध कॉमर्शिलय काम्प्लेक्स बनाने के क्रम में गैर कानूनी तरीके से तहखाना (अण्डरग्राउंड) खोद कर उस पर आरसीसी की छत भी डाल दी गई। इस हेतु जयपुर नगर निगम से इजाजत तामीर भी नहीं ली गई।
शर्मनाक स्थिति यह कि गैर कानूनी तरीके से निर्माणाधीन इस अवैध कॉमर्शियल काम्प्लेक्स के अवैध निर्माण को हटाने के लिये गत 17 नवम्बर, 2012 को जयपुर नगर निगम ने आचार्य चंद्रसूरि को नोटिस भी दिया है। जिसका जवाब आज तक आचार्य जिन चंद्रसूरि द्वारा जयपुर नगर निगम में पेश नहीं किया गया है। इस नोटिस की एक प्रति उपाध्याय श्री श्यामलाल जी यति का उपाश्रय म्युनिसिपल नम्बर 3826 (जयपुर नगर नगम रेकार्ड में नम्बर ए-1 दर्ज) के गेट पर भी चस्पा किया गया है। जोकि ये पंक्तियां लिखने तक चस्पा है।
ज्ञातव्य रहे कि आचार्य चंद्र सूरि बीकानेर गद्दी के आचार्य तो जरूर हैं लेकिन बीकानेर गद्दी से जुड़ी सम्पत्तियों के न तो वे अधिकारी हैं और न ही वैध प्रबन्धकर्ता हैं। उन्हें बीकानेर गद्दी से जुड़ी सम्पत्तियों को रहन, विक्रय या हस्तान्तरण करने का अधिकार भी नहीं है।
सवाल यह भी उठता है कि उपाध्याय श्री श्यामलाल जी यति के उपाश्रय में प्रतिष्ठित रही स्वामी कुंन्थूनाथ स्वामी का देवालय कहां है?ï सवाल यह भी उठता है कि क्या इस जिनालय की प्रतिष्ठा श्री जिन सौभाग्यसूरि ने फाल्गुन शुक्ला तृतिया विक्रम सम्वत् 1907 को की थी?
इन सब की जानकारी आचार्य चंद्रसूरि एवं कथित विक्रेता या विक्रेताओं को देनी होगी। सिर्फ जानकारी ही नहीं मूर्तियों और दादा गुरूदेव के चरण भी उन्हें श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के श्रावकों को सुपर्द करने होंगे।
अग्रगामी संदेश ने इस पूरे प्रकरण में आचार्य जिन चंद्र सूरि से उनका पक्ष जानने के लिये उनके फोन नम्बर 0151-2886731 व 2886713 पर सम्पर्क करने की कोशिश की गई लेकिन वे बात करने से कतराते रहे। मोबाइल नं.-9829173801 पर बातचीत में किन्ही सुरेन्द्र डागा ने बताया कि इस प्रकरण में आचार्य जिन चंद्रसूरि ही कुछ बता सकते हैं। कुशलायतन की सचिव शालिनी कोठारी ने अपना मोबाइल 9829169991 नहीं उठाया। एक अन्य मोबाइल नम्बर 9929090893 पर जिसने फोन उठाया अपना नाम नहीं बताया, लेकिन सुरेन्द्र डागा का मोबाइल नम्बर देते हुए उनसे बात करने के लिये कहा।
इस प्रकरण में हम ओर भी तथ्यों को उजागर करेंगे, जिनमें जिनशासन को पतन के रास्ते ले जाने वाले निकृष्ट व्यक्तियों की धन, वैभव एवं प्रसिद्धि की महत्वकांक्षाऐं उजागर होंगी। क्रमश: