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पेंशन-लेपटाप मिल रहे हों तो हमें भी बताना !

अवाम ने गत 06 मार्च को राजस्थान विधानसभा में राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जिनके पास वित्त विभाग का प्रभार भी है, द्वारा पेश राज्य के वर्ष 2013-14 का बजट सुना। मीडिया में किसी ने लिखा कि गहलोत ने खोले तुरूप के पत्ते, किसी ने लिखा सबको राहत, किसी का लिखना था कि सौगातों से भरा बजट! इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया ने पता नहीं कितने विशेषण-अलंकरण गहलोत साहब के लिये जडे हम उनमें अभी जाना नहीं चाहते हैं! क्योंकि वक्त खुद ही असलियत उजागर कर देगा।
लेकिन अवाम का एक सवाल है और वो भी वाजिब! सवाल है कि जब पिछले बजट में जो वादे हमारे गहलोत साहब ने किये थे, वे ही 12 महिने बीत जाने के बाद आज तक पूरे नहीं हुए तो इस बजट में किये गये वादे वे पांच महिने में कैसे पूरे कर पायेंगे? यह भी तैय है कि अगर गहलोत साहब की रवानगी हो गई तो आने वाला/आने वाली मुख्यमंत्री इन्हें लागू करने वाले नहीं!
पत्रकारों को पेंशन की बात जोरशोर से उठी! हर महिने पांच हजार रूपये पेंशन देने का शगुफा हमारे गहलोत साहब ने छोड़ा। अब इन पेंशन पाने के लालच में डूबे पत्रकारों में एक शुगूफा ओर छोडा गया कि पेंशन पाने वालों की लाइन में लगे पत्रकारों की उम्र 62 साल से घटा कर 60 साल कर दी गई है। हमारे बुजुर्ग पत्रकार तालियों पर तालियां बजा रहे हैं। अब हम इन ताली बजाऊ पत्रकारों से ही पूछलें कि भय्या हमारी उम्र है 72 साल! एक छोटे समाचार पत्र में हम घिसते रहे हैं कलम! हमारे जादूगर मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद से आज तक हमें पेंशन का है इन्तजार! हमारे ताली बजाऊ पत्रकार बंधु इस 72 साल के कलम घिस्सू (पत्रकार) को जादूगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जरिये कब पेंशन दिलवा रहे हें? हमें बतायें ताकि हाजिर हो जायें पेंशन लेने वालों की लाइन में!
इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया में जोरशोर से साया हुआ कि अधिस्वीकृत पत्रकारों को लेपटाप दिये जायेंगे। हमारे एक पत्रकार बन्धु फुदकू चिडिया की तरह उछलते फिर रहे थे, यह बताने के लिये कि उनके परिवार को तीन लेपटाप मिलेंगे, क्योंकि उनके परिवार में उनके सहित तीन अधिस्वीकृत पत्रकार हैं। इन पत्रकार साहब से हमने कहा कि भाई हम तो अभी पेंशन के लालच में डूबे पत्रकारों की लाइन में लगने की सोच रहे थे, अगर लेपटाप पहिले मिले तो आपके सहित आपके परिजनों के बाद हमें भी लाइन में जोड़लें, ताकि पेंशन न सही, लेपटाप ही सही! कहावत है कि भागते भूत की लंगोट ही सही!
खैर! इस बहाने हमें एक किस्सा याद आया। किस्सा था 13 दिसम्बर, 2012 को अशोक गहलोत शासन के चार वर्ष पूरे होने के जश्र का दिन। इससे एक दिन याने कि 12-12-12 (12 दिसम्बर, 2012) की डी डे। पच्चीस कापी छापू विज्ञापन बटेरू अखबार नवीस अपने-अपने बैग बगल में दबाये हाथ में अर्जीयां लिये विज्ञापन बटोरने के लिये सीएमओ से डीपीआर के बीच चक्कर लगा रहे थे कि कहीं कोई टेबिल नजर आये जो उनकी अर्जी को थाम सके!
खैर 12-12-12 का दिन भी गया और उसके बाद हमारे माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जादुई बजट भी गया। पच्चीस कापी छापू अखबार आज तक तो रूंआसा हो कर हाथ मल रहे हैं। लेकिन उनके चक्कर में छोटे समाचार पत्रों, जोकि अवाम में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं, उनकी भी ऐसी की तैसी हो गई।
खैर! जो हुआ सो हुआ और आगे-आगे देखिये होता है क्या? लेकिन हम एक बात तो याद दिला ही सकते हैं कि वसुन्धरा राजे सरकार के पराभव के समय भी मैडम की अगुआई वाली सरकार ने इलेक्ट्रोनिक मीडिया और बड़े अखबारों पर विज्ञापनों की बौछार की थी, लेकिन आम अवाम ने विज्ञापन बांटू और विज्ञापन छापुओं को छोटे और मझौले अखबारों के सहयोग से नकार दिया था। शायद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी मैडम वसु के रास्ते चल रहे हैं। जादूगर जी को समझ लेना चाहिये कि राज्य की जनता फैसला करेगी सिर्फ और सिर्फ छोटे अखबारों के सहयोग से ही! -हीराचंद जैन

 
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