गत शुक्रवार 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ढेर सारे कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। महिलाओं को रोड़वेज में मुफ्त में घुमाया गया। एक दिन में महिलाओं की हिफाजत, महिलाओं के उत्थान के कसीदे पढ़े गये! लेकिन किसी भी नेता या बुद्धिजीवी ने महिलाओं के कल्याण के लिये समग्र रूप से कुछ भी सोचने की और कार्ययोजना की जुर्रत नहीं की!
होना तो यह चाहिये था कि हम बीते साल में महिलाओं की दशा-दिशा पर नजर डालते। गत बीते एक साल में महिलाओं ने क्या पाया या खोया, इस पर विस्तार से मंथन करते! जो कुछ महिलाओं को मिला उसमें ओर क्या बढ़ोतरी हो सकती है तथा महिलाओं ने जो खोया, उनके वे वाजिब हक उन्हें कैसे वापस दिलाये जायें, इस पर विस्तृत चर्चा की जा कर अगले साल के लिये महिला अधिकारों के लिये संघर्ष का रोड़मैप तैयार किया जाना चाहिये था।
आजतक महिला अधिकारों का ढिंढोरा पीटने वालों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिसे महिला कल्याण की दिशा में पहली सीढी कहा जा सके। जब पहली सीढी की ओर ही कदम नहीं उठा तो आगे की बात करना ही बेमानी है।
एन्टी रेप कानून जिसे गत 3 फरवरी को जारी अध्यादेश का स्थान लेना है, डॉ.मनमोहन सिंह केबीनेट के सहयोगियों की चकल्लस में उलझ गया है। हालात ये हैं कि आपराधिक विधि (संशोधन) विधेयक 2013 को केबीनेट के ऐजेण्डे से ही हटा दिया गया। याने कि संसद के बजट सत्र में यह कानून पास नहीं हो पायेगा।
हम आपको याद दिला दें कि दिल्ली में बलात्कार काण्ड की पीडि़ता की मौत के बाद उसके शव को सिंगापुर से दिल्ली लाने पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और श्रीमती सोनिया गांधी हवाई अड्डे पर पहुंचे थे और बाद में सोनिया गांधी उसके परिवार से मिलने उनके घर भी गई थी। जस्टिस वर्मा की अगुआई में एक आयोग भी बना था। रिपोर्ट भी आई और अध्यादेश भी जारी हुआ। जब कानून बनाने की बात आई तो अडंगे बीच में आ गये। हकीकत में अडगों के लिये खुड डॉ.मनमोहन सिंह जुम्मेदार हैं। जुम्मेदार हैं उनकी आका सोनिया गांधी!
उपरोक्त एक ही उदाहरण से साफ हो जाता है कि महिलाओं के कल्याण के लिये देश के राजनेताओं और बुद्धिजीवियों के पास न तो कोई सोच है और न ही कार्ययोजना। नतीजन एक दिन दिखावे की नौटंकी के बाद महिला कल्याण ठण्डे बस्ते में दाखिल दफ्तर हो जाता है अगले हादसे की इन्तजार में!
होना तो यह चाहिये था कि हम बीते साल में महिलाओं की दशा-दिशा पर नजर डालते। गत बीते एक साल में महिलाओं ने क्या पाया या खोया, इस पर विस्तार से मंथन करते! जो कुछ महिलाओं को मिला उसमें ओर क्या बढ़ोतरी हो सकती है तथा महिलाओं ने जो खोया, उनके वे वाजिब हक उन्हें कैसे वापस दिलाये जायें, इस पर विस्तृत चर्चा की जा कर अगले साल के लिये महिला अधिकारों के लिये संघर्ष का रोड़मैप तैयार किया जाना चाहिये था।
आजतक महिला अधिकारों का ढिंढोरा पीटने वालों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिसे महिला कल्याण की दिशा में पहली सीढी कहा जा सके। जब पहली सीढी की ओर ही कदम नहीं उठा तो आगे की बात करना ही बेमानी है।
एन्टी रेप कानून जिसे गत 3 फरवरी को जारी अध्यादेश का स्थान लेना है, डॉ.मनमोहन सिंह केबीनेट के सहयोगियों की चकल्लस में उलझ गया है। हालात ये हैं कि आपराधिक विधि (संशोधन) विधेयक 2013 को केबीनेट के ऐजेण्डे से ही हटा दिया गया। याने कि संसद के बजट सत्र में यह कानून पास नहीं हो पायेगा।
हम आपको याद दिला दें कि दिल्ली में बलात्कार काण्ड की पीडि़ता की मौत के बाद उसके शव को सिंगापुर से दिल्ली लाने पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और श्रीमती सोनिया गांधी हवाई अड्डे पर पहुंचे थे और बाद में सोनिया गांधी उसके परिवार से मिलने उनके घर भी गई थी। जस्टिस वर्मा की अगुआई में एक आयोग भी बना था। रिपोर्ट भी आई और अध्यादेश भी जारी हुआ। जब कानून बनाने की बात आई तो अडंगे बीच में आ गये। हकीकत में अडगों के लिये खुड डॉ.मनमोहन सिंह जुम्मेदार हैं। जुम्मेदार हैं उनकी आका सोनिया गांधी!
उपरोक्त एक ही उदाहरण से साफ हो जाता है कि महिलाओं के कल्याण के लिये देश के राजनेताओं और बुद्धिजीवियों के पास न तो कोई सोच है और न ही कार्ययोजना। नतीजन एक दिन दिखावे की नौटंकी के बाद महिला कल्याण ठण्डे बस्ते में दाखिल दफ्तर हो जाता है अगले हादसे की इन्तजार में!