सुकमा-जीरम घाटी प्रकरण देश के सत्ताधीशों के लिये अहम मसला होना चाहिये था, लेकिन आईपीएल स्पाट फिक्सिंग को नेताओं द्वारा अहम मुद्दा बना दिया गया। सुकमा-जीरम घाटी प्रकरण में राजनेता पानी पी-पी कर माओवादियों-नक्सलियों को कोस रहे हैं, लेकिन इन राजनेताओं के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि माओवादी-नक्सलवादी जैसी समस्याओं से कारगर ढंग से निपटने में असफल रहने के लिये जुम्मेदार है कौन?
नगालैण्ड की नगा समस्या, बोडो आदिवासियों की समस्या, मणिपुर का जनआंदोलन, मिजो समस्या, आंध्र में तेलंगाना समस्या, माओवादी संगठनों का दबाव, जम्मू-काश्मीर में अलगाववाद की समस्या सहित देश में समस्याओं की भरमार है। ये समस्याऐं कोई एक दिन में पैदा नहीं हुई और न ही एक दिन में इतने विशाल पैमाने पर फैली! कई समस्याऐं तो देश की आजादी के साथ ही शुरू हुई और आज तक उनका समाधान नहीं हो पाया है। केंद्र में जो भी सरकार आई, उसने इन समस्याओं का ताकत के बूते पर हल निकालने की कोशिश की और उन्हें लटकाये रखा जो कि अनुचित था। इन समस्याओं को सुलझाने में सत्ताधीश असफल रहे।
अभी भी सत्ताधीशों के पास पूरा वक्त है कि इन समस्याओं को ताकत के बूते पर हल करने की हरकतों से बाज आयें और इन समस्याओं पर गहराई से मंथन कर अवाम के हितों के मद्देनजर सर्वमान्य हल निकालें। वर्ना जिस तरह केंद्र सरकार इन समस्याओं को अटका कर लटका रही है उसका यह तरीका देश के विखण्डन का रास्ता बन सकता है या फिर देश खूनी क्रान्ति के रास्ते पर जा सकता है।
अगस्त 1974 में वीकेआरवी राव ने बेंगालूरू में साफ-साफ शब्दों में कहा था कि देश में खूनी क्रान्ति सम्भव है और उसके तत्काल बाद जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सम्पूर्ण क्रान्ति का आंदोलन चला लेकिन कांग्रेसी और भाजपाई शायद इससे सबक नहीं ले पाये हैं!
नगालैण्ड की नगा समस्या, बोडो आदिवासियों की समस्या, मणिपुर का जनआंदोलन, मिजो समस्या, आंध्र में तेलंगाना समस्या, माओवादी संगठनों का दबाव, जम्मू-काश्मीर में अलगाववाद की समस्या सहित देश में समस्याओं की भरमार है। ये समस्याऐं कोई एक दिन में पैदा नहीं हुई और न ही एक दिन में इतने विशाल पैमाने पर फैली! कई समस्याऐं तो देश की आजादी के साथ ही शुरू हुई और आज तक उनका समाधान नहीं हो पाया है। केंद्र में जो भी सरकार आई, उसने इन समस्याओं का ताकत के बूते पर हल निकालने की कोशिश की और उन्हें लटकाये रखा जो कि अनुचित था। इन समस्याओं को सुलझाने में सत्ताधीश असफल रहे।
अभी भी सत्ताधीशों के पास पूरा वक्त है कि इन समस्याओं को ताकत के बूते पर हल करने की हरकतों से बाज आयें और इन समस्याओं पर गहराई से मंथन कर अवाम के हितों के मद्देनजर सर्वमान्य हल निकालें। वर्ना जिस तरह केंद्र सरकार इन समस्याओं को अटका कर लटका रही है उसका यह तरीका देश के विखण्डन का रास्ता बन सकता है या फिर देश खूनी क्रान्ति के रास्ते पर जा सकता है।
अगस्त 1974 में वीकेआरवी राव ने बेंगालूरू में साफ-साफ शब्दों में कहा था कि देश में खूनी क्रान्ति सम्भव है और उसके तत्काल बाद जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सम्पूर्ण क्रान्ति का आंदोलन चला लेकिन कांग्रेसी और भाजपाई शायद इससे सबक नहीं ले पाये हैं!