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जैन समुदाय को अल्पसंख्यक के संवैधानिक दर्जे का विरोध करने वालों की खुलेगी अब पोल!

राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता और कट्टर आरएसएसपंथी गुलाबचंद कटारिया के समर्थन में गत सप्ताह आयोजित-प्रायोजित जैन समुदाय के लोगों का कथित प्रदर्शन आखीरकार फ्लाप शो हो कर रह गया!
सोहराबुद्दीन प्रकरण में मुंबई की एक अदालत में उनके खिलाफ दायर पूरक आरोप पत्र और अदालत द्वारा समन करने के बाद कटारिया समर्थकों ने जैन समुदाय को कटारिया के पीछे एकजुट बताने के लिये यह नौटंकी रची थी, जो फ्लाप शो साबित हुई।
हम आपको याद दिला दें कि उदयपुर में लगभग चार साल पहिले हुए आरएसएस के सम्मेलन को सफल बनाने के लिये जैन समुदाय के तीर्थ स्थल केसरियानाथ (ऋषभदेव) मंदिर मुद्दे की आड़ लेकर कट्टर हिन्दुत्ववादी तत्वों द्वारा जैन समुदाय पर उदयपुर जिले में जो हमले करवाये गये थे और जिनके कारण जैन समुदाय को तोडफ़ोड़ और आगजनी के चलते भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था और जिस की भरपाई आज तक नहीं हो पाई है तथा जैन समुदाय की एक बुजुर्ग महिला को डायन बताकर प्रताडि़त करने के मामलों में भी क्षेत्र के कद्दावर भाजपा नेता होते हुए भी गुलाबचंद कटारिया ने मौन साधे रखा। इन मौनी बाबा ने जैन समुदाय पर हुए अत्याचारों के किसी मामले में कभी भी विरोध का एक शब्द तक अपने मुंह से नहीं निकाला! सत्ता में पांच साल रह कर और राज्य के गृहमंत्री जैसे पद पर आसीन होने के बावजूद जैन समुदाय को अल्पसंख्यकों का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये सोचा तक नहीं! कटारिया के नजदीकी सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि वे, जैन समुदाय को हिन्दू मानते हुए उन्हें अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के खिलाफ हैं। शर्मनाक स्थिति यह है कि इनके लम्बे राजनैतिक जीवन काल में गुलाबचंद कटारिया ने जैन समुदाय के पूंजीपतियों, भू-माफियाओं, सरमायेदारों, बिल्डरों को जरूर मदद पहुंचाई होगी, लेकिन आम जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये चुप्पी साधे रखी! अब जब साहब अटक गये तो इन्हें और इनके दुमछल्लों को जैन समुदाय याद आया, वह भी अपने फायदे के लिये! थोडी सी भी शर्म है तो अवाम में साफ-साफ संदेश दो साहब जी कि गुलाबचंद कटारिया जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलवाने के हिमायती हैं। अन्यथा उम्मीद मत करो जैन समुदाय के सहयोग की! वैसे भी खुद आरएसएस पंथी भाजपाई भी जैन समुदाय पर आरोप लगा रहे हैं कि जैन समुदाय भाजपा को हराना चाहता है!
खैर, एक बात साफ है कि 1991 की जनगणना हो या फिर ताजा 2011 की जनगणना के आंकड़े हों, जैन समुदाय की कुल आबादी देश की आबादी का आधा प्रतिशत भी नहीं है। अगर मुसलमान, सिक्ख और जैन समुदाय से निकले बौद्ध जिनकी आबादी जैन समुदाय से अधिक है, अल्पसंख्यक माने जा सकते हैं, तो जैन समुदाय क्यों नहीं?
जैन समुदाय के साथ समस्या यह रही है कि इस समुदाय की बागडोर अरबपति, पूंजीपतियों, बिल्डरों, भूमाफियाओं के कब्जे में रहने के कारण आम जैन समुदाय की आवाज इन सेठियों की गद्दियों में दब कर रह जाती थी। लेकिन अब जैन समुदाय के मध्यम वर्ग, निम्र एवं निम्रतम वर्गों के युवाओं और आर्थिक सामाजिक रूप से शोषित तबके में अपने ही समाज का शोषण करने वाले इन पूंजीपतियों, भूमाफियाओं, बिल्डरों, सरमायेदारों, कालेधन के कुबेरों के खिलाफ धर्म युद्ध करने का सोच जाग्रत होता जा रहा है। युवाओं ने अब साफ-साफ कहना शुरू कर दिया हे कि उन्हें स्वामीवात्सल्य शब्द की आड़ में किसी सेठिये के टुकड़े नहीं चाहिये, उन्हें चाहिये जैन संस्कृति के साहित्य के विकास के लिये अकादमी, जैन शिक्षण संस्थाओं, धार्मिक संस्थाओं को संरक्षण, पोषण और स्वायत्ता, सरकारी नौकरियों में आरक्षण, स्वरोजगार के लिये वित्तीय सहायता, महिलाओं और बालिकाओं को विशेष आर्थिक पैकेज, उच्च शिक्षा के लिये आर्थिक सहयोग जैसे मुद्दों पर तत्काल शासकीय-प्रशासनिक कार्यवाही। युवाओं में आक्रोष इस कदर बढ़ता जा रहा है कि वे जैन समुदाय में बैठे पूंजीपति शोषक वर्ग जो आम जैन समुदाय के हित में कार्य नहीं करता है उनके भ्रष्ट आचरणों की ढोल की पोल अवाम के सामने खोने और उनके सफेदपोश नकाबों के नीचे छिपे काले चेहरों को उजागर के लिये एकजुट हो गया है!
जैन समुदाय के अगड़ों से आम जैन समुदाय की यही अपेक्षा है कि वे अपना व्यक्तिपरक सोच बदलें और आम जैन समुदाय के हित संरक्षण के लिये आगे आयें। गुलाबचंद कटारिया प्रकरण उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाना। गुलाबचंद कटारिया प्रकरण कानून और व्यवस्था का व्यक्तिगत मामला है और जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाना आम जैन समुदाय के सामुहिक हित का संवैधानिक मामला है!

 
AGRAGAMI SANDESH

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