पहले तृणमूल और फिर डीएमके की समर्थन वापसी के बाद यूपीए सरकार अपने दम पर खड़ी रहने की हालत में नहीं रह गई है। समाजवादी पार्टी और बीएसपी के बाहरी समर्थन से वह कुछ महीने और चल सकती है, या किसी संयोग से अपना कार्यकाल भी पूरा कर सकती है। लेकिन ये पार्टियां अगर आने वाले दिनों में अपने समर्थन की हर जायज-नाजायज कीमत वसूलने की कोशिश करेंगी तो सरकार के चलने से अच्छा उसका गिर जाना ही होगा!
समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह ने अपने बयानों से यह संकेत दे दिया है कि अगला आम चुनाव सत्तापक्ष के सहयोगी की तरह लडऩे में उनकी कोई रुचि नहीं है। जवाब में केंद्र सरकार की एक कोशिश वित्तमंत्री पी. चिदंबरम को आगे रखकर आर्थिक उपायों के जरिये इस पहलवान पॉलिटिशयन को मनाने की है, वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी साफ कर दिया है कि सहयोगियों को खुश रखने के लिए वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे आर्थिक सुधारों और शासन व्यवस्था पर आंच आती हो।
तृणमूल ने मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश और डीएमके ने श्रीलंका संबंधी नीति के मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापस लिया। ये दोनों बातें प्रधानमंत्री की खींची हुई लक्ष्मण रेखा के दायरे में आती हैं। अगले कुछ महीनों की सत्ता राजनीति कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की शतरंज से तय होगी। क्या यूपीए सरकार, दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस सचमुच नवंबर तक आम चुनाव कराना चाहती है, जैसा मुलायम सिंह ने हाल में अपने सूत्रों के हवाले से कहा?
लगता नहीं कि इससे कांग्रेस को कोई बड़ा फायदा होने वाला है। दो ही चीजें उसको जल्दी चुनाव के लिए तैयार कर सकती हैं। मई में होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सफाया, और उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छा मानसून। इसके बावजूद चुनाव में जाने का जोखिम कांग्रेस तब तक नहीं उठाएगी, जब तक उसकी सरकार के बारे में कुछ अच्छी बातें चर्चा में न आ जाएं।
सभी मंत्रालयों को पाइपलाइन में पड़ी परियोजनाएं तुरंत शुरू करने का निर्देश और 74 हजार करोड़ के रुके प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी यह बताती है कि इस तरफ वह कदम बढ़ा चुकी है। अब विपक्ष को भी सिर्फ सरकार विरोध तक सीमित रहने के बजाय अपने पॉजिटिव अजेंडा पर चर्चा शुरू कर देनी चाहिए।
समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह ने अपने बयानों से यह संकेत दे दिया है कि अगला आम चुनाव सत्तापक्ष के सहयोगी की तरह लडऩे में उनकी कोई रुचि नहीं है। जवाब में केंद्र सरकार की एक कोशिश वित्तमंत्री पी. चिदंबरम को आगे रखकर आर्थिक उपायों के जरिये इस पहलवान पॉलिटिशयन को मनाने की है, वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी साफ कर दिया है कि सहयोगियों को खुश रखने के लिए वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे आर्थिक सुधारों और शासन व्यवस्था पर आंच आती हो।
तृणमूल ने मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश और डीएमके ने श्रीलंका संबंधी नीति के मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापस लिया। ये दोनों बातें प्रधानमंत्री की खींची हुई लक्ष्मण रेखा के दायरे में आती हैं। अगले कुछ महीनों की सत्ता राजनीति कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की शतरंज से तय होगी। क्या यूपीए सरकार, दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस सचमुच नवंबर तक आम चुनाव कराना चाहती है, जैसा मुलायम सिंह ने हाल में अपने सूत्रों के हवाले से कहा?
लगता नहीं कि इससे कांग्रेस को कोई बड़ा फायदा होने वाला है। दो ही चीजें उसको जल्दी चुनाव के लिए तैयार कर सकती हैं। मई में होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सफाया, और उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छा मानसून। इसके बावजूद चुनाव में जाने का जोखिम कांग्रेस तब तक नहीं उठाएगी, जब तक उसकी सरकार के बारे में कुछ अच्छी बातें चर्चा में न आ जाएं।
सभी मंत्रालयों को पाइपलाइन में पड़ी परियोजनाएं तुरंत शुरू करने का निर्देश और 74 हजार करोड़ के रुके प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी यह बताती है कि इस तरफ वह कदम बढ़ा चुकी है। अब विपक्ष को भी सिर्फ सरकार विरोध तक सीमित रहने के बजाय अपने पॉजिटिव अजेंडा पर चर्चा शुरू कर देनी चाहिए।