जयपुर (अग्रगामी) पिछले अंकों में हमने श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ परम्परा की मण्डोवरा गद्दी को खुर्दबुर्द करने और श्रीपूज्य जी के उपासरे को ताले में जकडऩे की अवैध कब्जा करने वालों राजेन्द्र कुमार छाजेड़, पदमचंद गोलेछा और सुशील कुमार बुरड़ की करतूतों को बयां किया था। हमने पिछले अंक में बताया था कि इन अवैध कब्जाकर्ताओं ने हैरीटेज श्रेणी में आनेवाले श्रीपूज्य जी के उपासरे के भवन को बदरंग कर दिया वहीं मुख्यद्वार पर स्थित हृंकार यंत्र के प्रभाव को भी भवन के वास्तु को बिगाड़ क्षीण करने का षडयन्त्र रचा है। हमने इससे सम्बन्धित फोटो भी पिछले अंकों में साया किये थे।
हम याद दिलादें कि राजेन्द्र कुमार छाजेड़ को श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की पिछली कार्यकारिणी से अनियमितताओं के चलते बर्खास्त करने की नौबत आ गई थी, लेकिन संघ की प्रेस्टिज को देखते हुए कोषाध्यक्ष पद से इन से इस्तीफा ले लिया गया था। खरतरगच्छ संघ की वर्तमान कार्यकारिणी में भी ये महाशय सहवरण के जरिये टपके हैं और उपाध्यक्ष पद पर काबिज हैं! अपनी फजीहत के मद्देनजर इनकी हिम्मत चुनाव लडऩे की भी नहीं हुई।
मण्डोवरा गद्दी के भवन श्रीपूज्य जी के उपाश्रय पर दादागिरी से कब्जा जमाने वाले एक अन्य शक्स पदमचंद गोलेछा भी वर्तमान में श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ में पदाधिकारी हैं और इस मण्डोवरा गद्दी के पास स्थित विजयगच्छ के ऋषभदेव मंदिर और उससे सलग्र उपाश्रय पर भी अवैध कब्जा जमाये बैठे लोगों में से एक हैं। हम इस मुद्दे पर भी विस्तार से आगे लिखेंगे।
लेकिन इससे पहिले हम कुछ चौंकाने वाले तथ्यों पर चर्चा करेंगें। कुछ दस्तावेजों की फोटो प्रतियां अग्रगामी संदेश के सम्पादक एवं फारवर्ड ब्लाक के राजस्थान स्टेट जनरल सेक्रेटरी हीराचंद जैन के हाथ लगी है। इन दस्तावेजों ने हकीकत में राजेन्द्र कुमार छाजेड़, पदमचंद गोलेछा, सुशील कुमार बुरड़ एवं माणकचंद गोलेछा सहित कई अवैध रूपसे धार्मिक स्थलों पर कब्जा करने वालों की कलई खोल कर रख दी है।
जयपुर नगर निगम ने राजेन्द्र कुमार छाजेड़, किरायेदार सुन्दरलाल जैन और सुरेन्द्र कुमार सीपानी को 11 मार्च, 2013 को नोटिस भेज कर श्रीपूज्य जी के उपाश्रय के स्वामित्व एवं भवन निर्माण स्वीकृति जयपुर नगर निगम में प्रस्तुत करने हेतु निर्देश दिये थे।
इन नोटिसों के जवाब में राजेन्द्र कुमार छाजेड़ ने लिखा है कि मैं श्री मण्डोर खरतरगच्छ संघ का सचिव/मंत्री नहीं हूं। यहां सवाल उठता है कि जयपुर नगर निगम ने अपने नोटिस में कहीं भी श्री मण्डोर खरतरगच्छ संघ शब्दावली का उल्लेख ही नहीं किया है। लेकिन उनके इस जवाब ने उनके द्वारा श्रीपूज्य जी के उपाश्रय पर अवैध कब्जे की साजिश का भण्डाफोड़ तो कर ही दिया है।
उधर किरोदार सुरेन्द्र कुमार सीपानी ने अपने जवाब में स्वीकार किया है कि ''हम ने प्रथम मंजिल में एक कमरा एवं उसके साथ सलग्र एक छोटा कमरा ले रखा है।" सीपानी ने अपने जवाब में स्वीकार किया है कि इसमें ''अर्धव्यवसायिक" कार्य होता है। उनहोंने अपना सेल्स टैक्स नम्बर आरएसटी/आईएन 23/01664 व टिन नम्बर 08292201614 का भी पत्र में उल्लेख किया है। इससे साफ हो गया है कि मण्डोवरा गद्दी के उपाश्रय के प्रथम तल पर व्यवसायिक गतिविधियां संचालित हैं।
एक अन्य किरायेदार सुन्दरलाल जैन ने भी अपने जवाब में माना है कि प्रथम मंजिल पर गद्दी है और ''अर्धव्यवसायिक" कार्य होता है। उन्होंने अपना टिन नम्बर 08192256959 अपने जवाब में अंकित किया है। जिससे साफ जाहिर होता है कि मण्डोवरा गद्दी के इस उपाश्रय की प्रथम मंजिल पर व्यवसायिक गतिविधियां संचालित हैं जोकि स्थापित कानूनों और स्वर्गीय आचार्य श्री जिन धरणेन्द्र सूरि की वसीयत में उल्लेखित निर्देशों का गम्भीर उलंघन है और गैरकानूनी है।
उपरोक्त हकीकतों के मद्देनजर यह साफ हो गया है कि राजेन्द्र कुमार छाजेड़ और किरायेदार सुन्दरलाल जैन तथा सुरेन्द्र कुमार सीपानी ने उपाश्रय भवन के स्वामित्व सम्बन्धी कोई दस्तावेज भी पेश नहीं किये हैं।
उधर मडोवर खरतरगच्छ संघ के लैटरहैड पर तथा मण्डोवर खरतरगच्छ संघ की सील पर दिनांक 07 मार्च, 2013 को मंत्री की हैसियत से हस्ताक्षरित अपने पत्र में अवैध कब्जाधारी सुशील कुमार बुरड़ ने स्वीकारा है कि उनकी तथाकथित कमेटी ने उपाश्रय को किराये पर देने का फैसला लिया। राजेन्द्र कुमार छाजेड़, पदमचंद गोलेछा और सुशील कुमार बुरड़ का फर्जीवाड़ा देखिये कि सुशील कुमार बुरड़ द्वारा प्रयुक्त लेटरहैड में संस्था का नाम श्री मण्डोर खरतरगच्छ संघ अंकित है ओर जो रबर मोहर उनके द्वारा प्रयुक्त की गई है वह मण्डोवर खरतरगच्छ संघ की है। जबकि पिछले पांच सौ सालों से श्री मण्डोर खरतरगच्छ संघ और मण्डोवर खरतरगच्छ संघ नाम का कोई संघ/समिति जयपुर में अस्तित्व में नहीं था और न ही है। साथ ही ये संघ/समिति/कमेटी राजस्थान सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट अथवा देवस्थान विभाग से पंजीकृत भी नहीं है। इससे साफ जाहिर हो जाता है कि श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ मण्डोवरा गद्दी को हथियाने की साजिश के तहत यह फर्जीवाडा किया जा रहा है।
अब अवैध कब्जाकर्ताओं में से एक सुशील कुमार बुरड़ की एक दूसरी नौटंकी पर नजर डालें! सुशील कुमार बुरड़ ने जयपुर नगर निगम को प्रेषित अपने पत्र दिनांक 14 मार्च, 2013 में स्वीकार किया है कि उन्होंने धार्मिक स्थान को किराये पर दिया है। जयपुर नगर निगम के अफसरों को गुमराह करने के लिये इस पत्र के साथ सुशील कुमार बुरड़ ने उपाश्रय के स्वामित्व के कागजात एवं स्वर्गीय आचार्य श्री जिन धरणेन्द्र सूरि की पंजीकृत वसीयत की प्रति भी सलग्र नहीं की। क्योंकि उनमें साफ-साफ लिखा है कि इसे किराये पर नहीं दिया जा सकता है और न ही हस्तान्तरित किया जा सकता है।
अब अवैध कब्जाकर्ताओं में से एक सुशील कुमार बुरड़ का तीसरा झूंठ देखिये! नगर निगम जयपुर को लिखे अपने पत्र दिनांक 14 मार्च, 2013 में सुशील कुमार बुरड़ ने एक सफेद झूंठ लिखा है कि इस धर्म स्थल पर कोई नया निर्माण नहीं किया गया है। लेकिन अग्रगामी संदेश के पास उपलब्ध दस्तावेजों की फोटो प्रतियां दर्शाती है कि दिनांक 17 अगस्त, 2006 को अवैध कब्जाधारियों सुशील कुमार बुरड़, पदमचंद गोलेछा और राजेन्द्र कुमार छाजेड़ ने अपने सहयोगियों के साथ मिल कर नया निर्माण करने की योजना बनाई। यह जानते हुए भी कि यह गैरकानूनी है और स्वर्गीय आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि की वसीयत में उल्लेखित निर्देशों का उलंघन है, वहीं इस गैरकानूनी अवैध निर्माण के लिये जयपुर नगर निगम से वैधानिक रूप से भवन निर्माण की स्वीकृति भी नहीं ली। यही कारण है कि मण्डोवरा गद्दी के इस श्रीपूज्य जी के उपाश्रय की मिल्कियत और भवन निर्माण स्वीकृति के कागजात जयपुर नगर निगम को पेश करने में इनके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही है।
एक अत्यन्त शर्मनाक करतूत इस तिकड़ी की यह भी समझने लायक है कि स्वर्गीय श्री माणकचंद बुरड़ (जोकि जयपुर की ओसवाल पंचायत के वरिष्ठ पंच रहे स्वर्गीय तेजकरण जी बुरड़ के पुत्र थे) द्वारा अपने बड़े भाई स्वर्गीय श्री मुन्नीलाल जी बुरड़ की स्मृति में स्वर्गीय आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि के जीवनकाल में ही लगाये गये शिलापट्ट को उखाड़ कर जिस जगह शिलापट्ट लगाया था वहां सारी धार्मिक प्रक्रियाओं को तिलांजली देकर उपाश्रय की छत पर विराजित भैरवनाथ की मूर्ति को बिना किसी विधि-विधान के थरपा दिया गया।
ज्ञातव्य रहे कि स्वर्गीय माणकचंद बुरड़ उन व्यक्तियों में से रहे हैं, जिनका श्रीपूज्य जी के उपाश्रय से सम्बन्धित स्वर्गीय आचार्य जिन धरणेन्द्र सूरि जी की वसीयत लिखवाने और उसको लागू करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस वसीयत की प्रति स्वर्गीय माणकचंद बुरड़ से पदमचंद गोलेछा हथिया कर ले गये थे। हम उस कहानी को भी आगे बयां करेंगे जो बतायेगी इनके सोच के स्तर का पैमाना!
शायद श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के श्रावक बंधुओं की जानकारी में सुशील कुमार बुरड़ और राजेन्द्र कुमार छाजेड़ के बिजनिस पार्टनर के स्वरूप की जानकारी न हो, लेकिन वक्त आने पर हम इन की इस अन्दरूनी हकीकत को भी गहराई में जाकर उजागर करेंगे। इससे पहिले अगले अंकों में हम श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ मण्डोवरा परम्परा की इस गद्दी के मामले में ओर भी तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध करवायेंगे अगले अंकों में। क्रमश: