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क्या श्वेताम्बर जैन समुदाय के पूंजीपतियों-सरमायेदारों को शर्म आयेगी?

जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय का संवैधानिक दर्जा दिलवाने में अडंगा डालने वाले भ्रष्ट-बेईमान और निकम्मे पूंजीपतियों की कलई अब धीरे-धीरे खुलती जा रही है। अजमेर में श्वेताम्बर जैन समुदाय को एकसूत्र में पिरोने के लिये राज्य के अजमेर जिला मुख्यालय पर स्थित प्रथम दादा गुरूदेव जिनदत्त सूरिश्वर की निर्वाण स्थली श्री जैन श्वेताम्बर दादाबाडी में आचार्य मणिप्रभ सागर के शिष्य मुनि मैत्रिप्रभ सागर ने अन्न-जल त्याग रखा है। उन्होंने दो टूक शब्दों में वहां के श्वेताम्बर समुदाय, जोकि ज्यादातर खरतरगच्छ आम्नाय से जुडा है, को स्पष्ट कर दिया है कि अगर श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ और श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ आपसी सहमति से विवाद खत्म नहीं करते हैं तो वे अपनी जीवन को लेकर कठोर निर्णय भी ले सकते हैं।
ज्ञातव्य रहे कि श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ से जुड़े ये दोनों संघ श्री जिनदत्त सूरिश्वर की निर्वाण एवं समाधी स्थल इस दादाबाडी के नियन्त्रण के अधिकारों को लेकर आमने-सामने हैं।
यह एक ही मामला नहीं है। बीकानेर के आचार्य जिन चंद्रसूरि और उनके सहयोगियों ने जयपुर के मशहूर उपाध्याय श्री श्यामलाल जी यति के उपाश्रय और उसमें स्थित 162 साल पुराने दादा जिन कुशलसुरि के चरण एवं तिर्थंकर कुंन्थूनाथ स्वामी के जिनालय को शहीद कर वहां कॉमर्शियल काम्प्लेक्स बनाने के लिये तलघर का निर्माण करवा दिया। हालांकि भारी विरोध के बावजूद अब ये लोग दड़बों में घुसे हैं।
उधर खरतरगच्छीय मण्डोवर परम्परा की जयपुर पीठ के श्रीपूज्य जी के उपाश्रय की पहली मंजिल पर समाज के ही मसल्समैनों ने कॉमर्शियल निर्माण करवा कर वहां जवाहरात की गद्दियां खुलवादी। लगभग 140 वर्ष से अधिक पुराने इस पुरामहत्व के निर्माण को भी बदरंग कर दिया गया है। समाज के कुछ प्रबुद्धजन अब सक्षम प्रशासनिक और वैधानिक कार्यवाही करने का फैसला कर चुके हैं। इस ही तरह स्थानीय मौनबाडी में गैर कानूनी तरीके से अवैध निर्माण चालू है।
एक तरफ श्वेताम्बर समाज की सम्पत्तियों पर पूंजीपति-सरमायेदार और उनके पिछलग्गू धर्म की आड़ में कब्जा जमा कर बैठे हैं और इन सम्पत्तियों का व्यावसायिकीकरण करने में अपनी जोर आजमाइश कर रहे हैं वहीं जैन समाज के मंदिरों में चोरियां होना और जैन साधु-साध्वियों पर अजैनियों के हमले आम बात है। लेकिन सम्पत्ति पर कब्जा जमाने की होड़ में जुटे बेशर्म-बेगैरत पूंजीपतियों-सरमायेदारों और उनके दुमछल्लों को जैन संस्कृति को अक्षुण्ण रखने, जैन संस्कृति के साहित्य, धार्मिक स्थलों, मूर्तियों की सुरक्षा, जैन समाज के युवाओं, महिलाओं, बच्चों के सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान की लेशमात्र परवाह नहीं है।
जैन समुदाय को भारत गणतंत्र के संविधान में दिये गये अधिकारों के क्रम में अगर राजस्थान में जैन समुदाय को उसका संविधान प्रदत्त अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त हो जाता है तो राज्य में जैन संस्कृति, जैन समुदाय की सांस्कृतिक पहिचान विलुप्तता के कागार से हट कर मुख्यधारा में आजाती है। जैन समुदाय के सांस्कृतिक धार्मिक स्थलों पर पूंजीपतियों-सरमायेदारों और उनके दुमछल्लों की पकड़ ढीली हो सकती है। जैन समुदाय एकसूत्र में बंध सकता है।

 
AGRAGAMI SANDESH

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